नवरात्रि कल से शुरू हो रहा है, कल 22 सितंबर को कलश स्थापना के साथ ही नवरात्र शुरू हो जाएंगे। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। यह माता का पहला रुप है, इस पोस्ट में हम मां शैलपुत्री के बारे में जानेंगे, उनका मंदिर कहां कहां है वो भी जानेंगे। कलश स्थापना कब से शुरू है
मां शैलपुत्री की कहानी....
पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। माता सती के पिता राजा दक्ष थे, एक बार उन्होंने एक बड़ा यज्ञ किया था जिसमें सारे देवी-देवता आमंत्रित थे लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं मिला था। माता सती को लगा मेरा मायका ही है मैं तो जब मन जा सकती हूं, भगवान शिव ने मना किया लेकिन माता सती नहीं मानी वहां चली गई। वहां राजा दक्ष के द्वारा भगवान शिव की अपमान सहन नहीं कर पाई माता सती वही अग्नि में भस्म हो गई।
अगले जन्म में फिर वही पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में आई। हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। इनका वाहन वृष है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके एक हाथ में कमल और दूसरे हाथ में त्रिशूल है। माता शैलपुत्री का प्रिय रंग पीला और सफेद है। माता का पसंदीदा भोग गाय के दूध से बनी चीजें हैं। माता को गुड़हल फूल और उजला कनेर पसंद है।
मां शैलपुत्री की पूजा करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है। जीवन में सफलता, सुख समृद्धि मिलती है।
मां शैलपुत्री का सबसे फेमस मंदिर...
वाराणसी -
मां शैलपुत्री का एक फेमस मंदिर वाराणसी में हैं, जहां नवरात्रि में बहुत भीड़ रहती है, आम दिनों में भी भीड़ होती है। यहां औरतें अपनी सुहाग के लंबी उम्र की कामना करती हैं। यहां माता को चुनरी और नारियल चढ़ाया जाता है। यह अलईपूर के वरूणा नदी पर यह मंदिर है, यह वाराणसी स्टेशन से 20 मिनट की दूरी पर स्थित, यहां जाने के लिए रिक्शा, ओटो सब आसानी से मिल जाता है। यह माता का शक्तिपीठ भी है,
उत्तराखंड -
मां शैलपुत्री को ही उत्तराखंड में नंदा देवी के नाम से पूजा जाता है। यह उत्तराखंड के चमोली जिले में है, यह भारत के सबसे दुसरी बड़ी चोटी पर स्थित है। इसे युनोस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। यह 280 किलोमीटर की बहुत कठिन और लंबा रास्ता है। यहां अगस्त से सितंबर में मेला लगता है।
गर्जिया देवी मन्दिर -
यह उत्तराखंड के नैनीताल के रामनगर में स्थित है। इसे भी मां शैलपुत्री का ही रूप माना जाता है। यह कोसी नदी के बीचोंबीच एक टीले पर स्थित है। नवरात्रि में बहुत भीड़ लगती है, सुबह 4 बजे से ही लाइन लगना शुरू हो जाता है। यहां माता को घंटी, छत्र या चुनरी चढ़ाया जाता है।

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