मेला जहां मनोरंजन और व्यापार एक साथ होते हैं, मेला लगाने के पीछे लोगों की शायद मंशा रही होगी एक-दूसरे से मिल अपने सामानों का आदान-प्रदान करना। जैसे गांव में जो भोजन भंडारे होते उसका कारण एक ये भी होता हम अपने लोगों को जानते, उनकी खुबी-कमी..कभी कोई जरूरत हुआ तो याद रहता हां वो ये काम कर सकता। शादी विवाह से संबंधित जानकारी मिल जाती, कुछ नया जानने को मिलता।
उसी तरह मेरा लगाने का भी यही कारण रहा होगा कि दूर दूर से लोग आए कुछ अपनी जरूरत का सामान खरीदें कुछ बेचें। मेला अलग अलग तरह का होता जैसे धार्मिक मेला जिसमें धर्म का प्रचार, भगवान के विचार लोगों तक पहुंचाना आदि जैसे कुंभ मेला, कथा वाचन... एक होता सांस्कृतिक मेला इसमें हम अपनी पौराणिक संस्कृति को लोगों के बीच रखते हैं जिससे वो आगे तक चलता रहे। हमारा अगला जेनेरेशन हमारा इतिहास जानें इसमें आल्हा रूदल, रामलीला आदि आता।
फिर आता आर्थिक मेला जो सबसे महत्वपूर्ण है ये हमारे व्यवसायिक, किसान आदि के लिए है। जिसमें हम अपना अपना सामान खरीद बेच करते। पहले के जमाने में जब पैसे नहीं चलते थे तो लोग 5-6 गांव मिलाकर हाट लगाते थे जिसमें सब किसान अनाज, बुनकर कपड़े, चप्पल जूते वाले अपना सामान लाते एक दूसरे को जरूरत के हिसाब से अदला बदली कर लेते थे।
इसी को वृहत आकार दिया गया जो मेला बना, जहां दूर दूर शहर के लोग आते अपने अपने सामान का बिक्री कर पैसे कमाते। इसमें कोई जानवर लाता है तो कोई लकड़ी का सामन, कोई सब्जी, कोई तलवार मतलब हर चीज यहां मिलता। मनोरंजन भी होता, व्यापार भी होता, देश दुनिया का ज्ञान भी मिलता या एक लाइन में कहें तो मेला लगने का मुख्य कारण है लोगों की आपसी संबंध बढ़ाना जिससे मनोरंजन के साथ साथ कुछ उपार्जन भी हो सकें।
अभी कुंभ मेला लगा था उसमें लोगों को पुण्य तो मिला ही कितने लोगों को लाखों का रोजगार भी मिला। हर शहर में साल में 2-4 मेला लगता ही है, इससे वहां के लोगों को एक आजीविका भी मिलता, मनोरंजन भी होता। बिहार में भी मेला बड़े बड़े पैमाने पर लगता, सोनपुर मेला का नाम आप सब जानते होंगे एशिया का सबसे बड़ा मेला में नाम आता है यहां पहले हाथी, घोड़े, ऊंट, बहुतायत मात्रा में मिलते थे। अब तो सरकार के कुछ नियम के कारण ये जानवर नहीं मिलते लेकिन अभी भी गाय, भैंस, बकरी आदि अलग अलग किस्म की मिलती है। हम इस पोस्ट में इसी तरह बिहार में लगने वाले मेला के बारे में जानेंगे...
बिहार में लगने वाले मेला का लिस्ट....
1. सोनपुर मेला -
बिहार ही नहीं एशिया में सबसे बड़ा पशु मेला सोनपुर मेला है। यह पटना से 25 किलोमीटर दूर गंगा और गंडक के किनारे स्थित सोनपुर में लगता है। यह मेला चंद्रगुप्त मौर्य काल के पहले से ही लगते आई है। यहां नौटंकी नाच, सर्कस, जादूगर, झूला आदि मनोरंजन के लिए आता है। यह कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होता पुरे एक महीना रहता, इस साल थोड़ा लेट हो गया चुनाव के कारण 9 नवंबर से शुरू हुआ। अभी तक 4 लाख से ऊपर लोग आ गए हैं।
मेला में अभी 16 इंच और 24 इंच के घोड़े आकर्षित कर रहे हैं लोगों को, दुसरी ओर एक आदमी की 13 इंच की मुछें को देख लोग दंग हो रहे। सैंड आर्टिस्ट सैंड पर गज-ग्राह युद्ध को उकेड़ा है तो कहीं 66 इंच का घोड़ा मेला में रौनक बनाएं है। वो कहते है ना कि सुई से लेकर तलवार तक सब मिलता वही है यहां सब कुछ बिकता है। एक बार अवश्य आइए मेला का लुत्फ उठाएं।
सोनपुर मेला को हरिहर क्षेत्र मेला भी कहा जाता है क्योंकि यहां एक ही शिवलिंग में हरि यानि भगवान विष्णु और हर यानि भगवान शिव विराजमान हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसको स्वयं ब्रह्मा जी ने बनाया था। एक और पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान राम माता सीता के स्वयंवर के लिए जा रहे थे तो इस मंदिर का निर्माण कर पूजा कर तब गये थे। यह मंदिर गंगा और गंडक के पास है।
2. गौशाला मेला खगड़िया
यह मेला भी कार्तिक मास में लगता है, इस साल चुनाव और बाढ़ के पानी के कारण थोड़ा लेट हो गया। ना तब ये मेरा कार्तिक मास के एकादशी से पूर्णिमा तक रहता। यहां लकड़ी से बने बहुत सारी चीज़ें मिलती हैं। यहां झूला, कुश्ती, बहुत सारी दुकानें लगती है। यहां आसपास के हर जिले से लोग आते हैं। 140 साल पुराना मेला है , यह बाढ़ से प्रभावित एरिया है। इस साल ये मेला 21 नवंबर से 30 नवंबर तक चलेगा, ऐसे 15-20 दिन आगे तक मेला और रहता है।
3 . मकर संक्रांति मेला राजगीर
यह मेला राजगीर में मकर संक्रांति यानि पौष मास में लगता है। यहां 5 जल कुंड है जिसमें स्नान किया जाता है। गर्म पानी का भी कुंड है, ठंडे पानी का भी है अब तो यहां घूमने के लिए ग्लास का ब्रीज भी है। इस मेले को 1959 में राजकीय मेला का दर्जा मिला। यहां हस्तशिल्प, कृषि उत्पाद, पशु मेला बच्चों के लिए बहुत सारी प्रतियोगिता भी होती।
4. पितृपक्ष मेला गया
यह धार्मिक मेला है जहां अपने पितरों को पिंडदान के लिए मेला लगता है। यह आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से शुरू होता है और अमावस्या तक लगता है। यहां पुरे 16 दिन लाखों की संख्या में देश और विदेश से लोग आते हैं। कहा जाता है यहां पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।
5. जानकी नवमी मेला
यह मेला मधुबनी, सीतामढ़ी में मनाया जाता है। यह माता सीता के जन्मोत्सव का मेला है। यह वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के नवमी को लगता है, 5-6 दिन का मेला लगता है। इसमें रामलीला लगता, नाटक होता, झूला आदि मनोरंजन के लिए लगता है।
6. सिमरिया मेला बेगुसराय
यह गंगा स्नान का मेला लगता है। कार्तिक मास में यहां दूर दूर से लोग आते हैं एक महीने का कल्पवास करते हैं। पिछले साल तो अर्धकुंभ मेला का भी आयोजन किया गया था।
हर एरिया में एक बड़ा मेला जरूर लगता है जैसे मुजफ्फरपुर में हरदी मेला, नवादा में काकोलत मेला, कटिहार में कल्याणी मेला और भी बहुत हैं। आप और किसी मेला के बारे में जानते हैं तो अवश्य बताएं, हम उनके बारे में लिखना चाहेंगे।
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