11 जुलाई से गुप्त नवरात्रि शुरू हो रहा है। माता की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। इस समय माता के शक्ति पीठों पर लोग दर्शन कर अपना जीवन धन्य करते हैं। हर जगह अलग अलग संख्या में शक्ति पीठों की गिनती मानी जाती है। आदि शक्ति पीठ की संख्या 4 मानी जाती है। कालिकापुराण में 26, देवी पुराण में 51, तंत्र पुराण, मार्कंडेय पुराण में 52, भागवत के अनुसार 108 शक्ति पीठ हैं। हम देवी पुराण के अनुसार 51 शक्ति पीठ के बारे में पुरे विस्तार से जानकारी दे रहे।
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माता के 51 शक्तिपीठ कहां कहां है....
51 शक्ति पीठ में अब बंटवारे के बाद 42 शक्ति पीठ अब भारत में स्थित है। बाकी पाकिस्तान, बांग्लादेश, तिब्बत और श्री लंका में चले गए। पाकिस्तान में 1 शक्ति पीठ, बांग्लादेश में 4 शक्ति पीठ, 1 श्री लंका, 1 तिब्बत और 2 नेपाल में स्थित है। आइए जानें इसके बारे में.....
शक्ति पीठ की कहानी-
पौराणिक कथा के अनुसार , राजा प्रजापति दक्ष के यहां माता जगदम्बिका के यहां सति के रूप में जन्म लिया। उनका शादी भगवान शिव से हुआ। भगवान शिव को प्रजापति बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। वो उनको अपमान करने का मौका खोजते रहते। एक बार प्रजापति दक्ष के यहां बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन था। पुरे ब्रह्मांड में सबको न्योता दिया उन्होंने लेकिन भगवान शिव और सती को नहीं बुलाया। भगवान शिव को तो सब मालूम था, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। नारद मुनि माता सती के पास पहुंच कर बताया कि आपके पिता के यहां इतना बड़ा आयोजन है। आप नहीं जा रहे हैं। माता सती भगवान शिव के यहां पर जा कर अपने पिता के पास जाने का प्रस्ताव रखा।
लेकिन भगवान शिव ने जानें से मना कर दिया। माता वापस आये, तो नारद मुनि ने कहा अपने मायके जाने के लिए भी पुछना होगा।बस माता सती अपने पिता के पास पहुंच गई। वहां जाकर माता सती अपने पिता से न्योता ना देने का कारण पुछी तो राजा दक्ष भगवान शिव के बारे में अपमान जनक बातें कहने लगे। माता सती को बहुत चोट पहुंचा इस बात से और क्रोध में आकर वो अग्नि कुंड में कूद पड़े। भगवान शिव को पता चला वो उनके जले शरीर के साथ तांडव कर रहे थे। इतना क्रोध था कि पृथ्वी नाश हो जाती तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती को टुकड़े - टुकड़े कर दिए। ये उनके शरीर का टुकड़ा जहां जहां गिड़ा। शक्ति पीठ कहलाया। जानते हैं शक्ति पीठ के बारे में....
हिंगलाज_माता_मन्दिर-
माता के 51 शक्ति पीठ में एक शक्ति पीठ शरहद पार पाकिस्तान के कब्जे बलूचिस्तान में है। इस शक्ति पीठ की सेवा मुस्लिम करते हैं। मुस्लिम इसको नानीपीर नाम से पुजते है। यह हिंगोल नदी और चंद्रकूप पहाड़ पर स्थित है।इस कारण इसको हिंगलाज माता कहा जाता है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि यह मंदिर 2000 साल पहले भी यही था। यहां भगवान राम भी अपने यात्रा के दौरान दर्शन किए थे। हिंदू ग्रंथों में वर्णित है कि यहां परशुराम के पिता जमदग्नि ने तपस्या की थी। यहां माता के सिर का भाग गिरा था।
हर साल यहां 22 अप्रैल से यात्रा शुरू होती है। यात्रा में गिने-चुने लोग ही होते हैं। भारत से लोगों को वीजा नहीं मिलता है और पाकिस्तान में हिन्दू की संख्या बहुत कम है। सबसे पहले यात्री 300 फूट ऊंचे ज्वालामुखी शिखर पर चंद्र कुप ताल के दर्शन करते हैं। यहां से भभूत लेकर 35 किलोमीटर दूर पहाड़ों की तलहटी में स्थित हिंगलाज देवी का दर्शन करते हैं।
मुस्लिम इसपर लाल कपड़ा, इत्र और अगरबत्ती चढ़ाते हैं। यहां माता से मनचाही इच्छा पूरी करने के लिए माता का चुल पर चलते हैं। मंदिर के प्रांगण में 10 फीट का बाड़ा बना दिया जाता है। उसको अंगारों से भर दिया जाता है। भक्त उस अंगारे पर चलते हैं। भक्त इस पर चलते भी है उनको कोई नुक़सान नहीं होता है।
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