उत्पन्ना एकादशी कब है और ये खास क्यों मानी जाती है

 उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। मार्गशीर्ष को हमारे यहां अगहन मास भी कहा जाता है। 4 महीने जब भगवान विष्णु क्षीर सागर में सोने चले जाते हैं तो सभी मांगलिक कार्य इन चातुर्मास में बंद रहता है।अगहन मास से ही मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। शादी विवाह इस माह में बहुत होते हैं। कहा जाता है उत्पन्ना एकादशी करने से मोह माया से मुक्त हो बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।


      उत्पन्ना एकादशी कब है जानें शुभ मुहूर्त और ये खास क्यों मानी जाती है....



   उत्पन्ना एकादशी 30 नवंबर मंगलवार को सुबह 4.13 से 01 दिसंबर बुधवार 02.13 तक है। पारण द्वादश तिथि को होता है इसलिए पारण बुधवार को सूर्योदय के बाद होगा।


     उत्पन्ना एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा.... 

     पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में एक मरु नाम का असुर था। वो बहुत अत्याचारी था, उसने आकाश, पाताल, इंद्रलोक तीनों लोकों में तबाही मचा रखी थी। इंद्र को भी अपना बंधक बना लिया। उसके अत्याचार से परेशान सभी देवता भगवान शिव के पास गए। भगवान शिव ने उन्हें विष्णु जी भगवान के पास भेज दिया।


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  भगवान विष्णु ने देवताओं की व्यथा सुन असुर मरु से रण क्षेत्र में युद्ध करने गए। कहा जाता है 10 हजार साल तक युद्ध चला। सारे असुर सेना मारे गए, मरु तब भी हार नहीं माना। मरु घायल हो कर गिर पड़ा तो भगवान विष्णु घायल अवस्था में छोड़ बद्रीकाश्रम के हेमवती गुफा में विश्राम करने चले गए। भगवान विष्णु नींद में थे तो मरु वहां आ कर उनको मारने का प्रयास किया।

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     तब एक खुब तेज रोशनी आई, जिसमें से एक देवी प्रकट हुई और उस देवी ने मरु का संहार किया। वह देवी भगवान विष्णु से उत्पन्न हुई थी। इस दिन को तब से उत्पन्ना एकादशी के रूप में मनाया जाने लगा। भगवान विष्णु ने उस देवी को आशीर्वाद दिया जो लोग मोह माया से बंधे हो, उनको भगवान विष्णु तक यही देवी पहुंचाएंगी। इनकी पूजा से सुख समृद्धि बनी रहेगी।


       उत्पन्ना एकादशी व्रत के नियम....

    उत्पन्ना एकादशी व्रत दशमी तिथि से ही शुरू कर दिया जाता है। रात खाना खाने के बाद ब्रश अच्छी तरह कर लेनी चाहिए कि खाना का कुछ फंसा ना रहे दांतों में। एकादशी के सुबह सवेरे जग कर स्नान ध्यान, पूजा पाठ करें।


     इस व्रत को हरि वासर नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दोपहर को पितृ तर्पण के लिए शुभ है। इस दिन तर्पण करने से पूर्वजों के पाप का नाश हो स्वर्ग मिलता है। इस दिन भजन कीर्तन करना चाहिए। पूजा पाठ के अंत में भगवान से क्षमा जरूर मांगना चाहिए।


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