अभी पितृपक्ष का समय चल रहा है, यह 15 दिन हिंदू धर्म के लिए अपने पुर्वजों को पिंड देने का सबसे उत्तम समय है। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। पिंडदान के लिए बहुत सारी जगह है पर गया जी का स्थान उत्तम बताया गया है क्योंकि यहां माता सीता और भगवान राम ने भी पिंडदान किया था। हम इस पोस्ट में गया जी में पिंडदान का महत्व और सीता माता ने किसको शाप दिया ये विस्तार से बताएंगे।
पितृपक्ष कब से शुरू हुई और पिंडदान कहां कहां किया जाता है
गया जी में पिंडदान का महत्व.....
हमारे पुराणों में वर्णित है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए सबसे अच्छा उपाय है पिंडदान, पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। जब किसी की मृत्यु होती है तब लोग गुरुर पुराण का पाठ कराते हैं, उसमें वर्णित है कि ब्रह्मा जी जब श्रृष्टि बना रहे थे तो असुर कुल में गया नाम का असुर का निर्माण हुआ। वैसे तो प्रवृत्ति से असुर ना था वह, वह अपने असुर कुल के नाम को सम्मानित करने के लिए भगवान विष्णु का हजारों साल तक तपस्या किया, और भगवान विष्णु प्रसन्न होकर दर्शन दिए और बोले मांगों क्या मांगते हो...
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गयासुर ने कहा - भगवान आप मेरे शरीर में वास करें, जो कोई मुझे देखे उसके सारे पाप नष्ट हो स्वर्ग मिले। भगवान तथास्तु कर अंतर्ध्यान हो गए। ये वरदान मिलते ही सभी लोग पाप करते और उसके दर्शन कर स्वर्ग पहुंच जाते, कोई भय ना रहा मोक्ष का सभी देवता परेशान हो गए। सब पहुंचे विष्णु भगवान के पास बोले कोई उपाय कीजिए प्रभू ना तब ये धरती का क्या होगा। भगवान विष्णु ने कहा आप सब जाइए उसका अंत नजदीक है। गया सुर तपस्या में था तभी भगवान विष्णु ने गदा से वार किया और गयासुर मर गया, मरने से पहले भगवान ने उसको वरदान दिया जिस जगह गयासुर मरा है, वहां मरने के बाद मृत आत्मा की शांति यहां पिंड देने से होगी और आज वो जगह गया के नाम से जाना जाता। पुराण में कहा गया है गया के लिए निकलते ही स्वर्ग में पितरों के लिए सीढ़ियां बनने लगती है।
कहा जाता है कि फल्गु नदी के तट पर बिना पिंडदान के पिंडदान मान्य नहीं है। यहां पहले 360 वैदियां थी अब 48 है जिसमें पिंडदान किया जाता है। यहां पिंडदान के लिए देश विदेश से लोग आते हैं। कहते हैं 21 पीढ़ियों में से कोई एक पिंड दान कर दिया तो सारे कुल का पिंडदान हो जाता है।
सीता माता ने किसको शाप दिया...
रामायण में वर्णित है सीता माता ने चार को शाप दिया, गाय, फल्गु नदी कौआ और पंडित जी... क्यों शाप दिया ये कहानी जानें..... कथा के अनुसार वनवास के दौरान जब दशरथ जी के मृत्यु की सूचना मिली तो भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता श्राद्ध करने गया जी आए। भगवान राम और लक्ष्मण पिंड का सामान लाने गए और बहुत समय हो गया। सुबह से दोपहर हो चली थी, पिंडदान का समय निकलता जा रहा था, सीता माता की परेशानी बढ़ रही थी।
तभी दशरथ जी की आत्मा पिंडदान की मांग कर दी। माता सीता बोले थोड़ा समय दीजिए भगवान आते होंगे, लेकिन अत्यधिक विलंब के कारण दशरथ जी बोले तुम भी मेरी पुत्री समान हो, मुझे पिंड दो तो मैं स्वर्ग की ओर प्रस्थान करूं। माता सीता असमंजस में थे लेकिन ससुर की व्याकुलता भी जायज थी इसलिए गाय, फल्गु नदी, कौआ और पंडित जी को साक्ष्य मान जो कुछ सामान था उसी से पिंडदान कर दिए।
थोड़ी देर में जब भगवान राम और लक्ष्मण आए तो सीता माता ने कहा कि पिंडदान कर दिए। आप चाहें तो इन चारों से पुछ सकते हैं। जब भगवान राम उन चारों से पुछा तो वो मुकर गए इससे माता सीता को बहुत गुस्सा आया, वो बहुत दुखी हुई और ससुर जी को याद कर दर्शन देने के लिए प्रार्थना करने लगी। तभी दशरथ जी आए और भगवान राम को बोले मेरा पिंड दान सीता कर दी है ये चारों झुठ बोल रहे।
माता सीता दुखी और गुस्से से इन चारों को शाप दे दिया कि ब्राह्मण कितना भी खाए, धन कमाए हमेशा दरिद्र ही रहेगा। फल्गु नदी सूख जाएगा, गाय कितना भी पुज्य हो झूठा खाएगी, दर बदर भटकती रहेगी। कौआ अकेले कितना भी खा ले भूखा रहेगा और लड़ झगड़ के खाएं तब पेट भरेगा यही शाप मिला। ये सब सच भी अभी तक हो रहा आप देख लें।
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