कब से शुरू हो रहे हैं पितृपक्ष, जानिए श्राद्ध की तिथियां

     हिंदू धर्म के अनुसार सबसे ज्यादा पुण्य माता पिता की सेवा और उनके मरने के बाद उनकी आत्मा को मुक्ति देने के लिए श्राद्ध करने से मिलता है। हर मां बाप की एक ही इच्छा होती है उनके बच्चे उनको गया जी, काशी जी और कुछ कुछ जगह है जहां उनको हमेशा के लिए मुक्ति देते हैं। पितृपक्ष जो 16 दिनों का होता है उसमें लोग श्राद्ध कर अपने पितरों का आशीर्वाद लेते हैं, आइए पितृपक्ष के बारे में विस्तार से जानें..

  

        कब से शुरू हो रहे हैं पितृपक्ष....

      पितृपक्ष भाद्रपद की पुर्णिमा से शुरू हो कर‌ आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। यह 16 दिनों का होता है।‌‌‌इस बार यह 10 सितंबर से शुरू होकर 25 सितंबर तक चलेगी। इस पितृपक्ष में कहा जाता है हमारे पूर्वज‌ धरती पर आते हैं और वो मुक्ति मांगते, जो आदमी इस श्राद्ध को पुरा नही करता है उसे पितृ दोष लगता। जिनके माता पिता, परलोक सिधार गए उन सब को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

      पितृपक्ष में श्राद्ध करने का प्रमाण हमारे रामायण में भी है। जिसमें माता सीता ने अपने ससुर दशरथ जी को पिंड दान कर उन्हें मुक्ति दी। पिंड दान के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें..... पिंडदान क्या है और कैसे होता है


        जानिए श्राद्ध की तिथियां....

     10 सितंबर  - पूर्णिमा श्राद्ध
     11 सितंबर  - प्रतिपदा श्राद्ध
‌‌।    12 सितंबर  - द्वितीय श्राद्ध
     13 सितंबर  - तृतीया श्राद्ध
   14 सितंबर  - चतुर्थी श्राद्ध
   15 सितंबर   - पंचमी श्राद्ध
   16 सितंबर -  षष्ठी श्राद्ध
   17 सितंबर  -  सप्तमी श्राद्ध
   18 सितंबर  - अष्टमी श्राद्ध
   19 सितंबर  - नवमी श्राद्ध
   20 सितंबर  - दशमी श्राद्ध
    21 सितंबर - एकादशी श्राद्ध
    22 सितंबर - द्वादशी श्राद्ध, संन्यासियों का श्राद्ध
   22 सितंबर  - त्रयोदशी श्राद्ध
   24 सितंबर - चतुर्दशी श्राद्ध
   25 सितंबर - अमावस्या श्राद्ध

    पितृपक्ष में गाय और कौवों को अवश्य कराएं भोजन


       जिनको पिंड नहीं पड़ता उनकी आत्मा तड़पती रहती है। कहा जाता है कि जब कोई पिंड देने जाता है तो गांव के सारे पुर्वजों को पुकारता है कि कोई छुटे तो नहीं है। वहां जाकर एक अनाम पिंडी बना तब उसका पूजा करते। 

    हर जगह कोई ना कोई ऐसा जरूर होता जो‌ मर गए या कहीं कुछ एक्सीडेंट ‌‌‌हो‌‌ गया उनकी आत्मा तो तड़पती हैं। इसलिए गांव से कोई भी जाता तो अपने इष्ट पितृों को पिंड देने देता कि जो जहां है उनकी आत्मा को शांति मिले।

गया में पिंडदान का महत्व

    श्राद्ध परंपरा की शुरुआत


   श्राद्ध की परंपरा की शुरुआत महाभारत के अनुसार‌ " जब महाभारत में उतने लोग मारे गए तब भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा - ये सब अकाल मृत्यु से मरे हैं, इनकी आत्मा भटकेगी, इसलिए इनका श्राद्ध जरुरी है। भीष्म पितामह ने कहा - सबसे पहले अत्रि मुनि ने महर्षि निमी को श्राद्ध का उपदेश दिया। यह सुनते के बाद महर्षि निमी ने श्राद्ध शुरू किया और उन्हें पितृ ऋण से मुक्ति मिल गई।

     इसके बाद ऋषि निमी ने और भी ऋषि मुनियों को श्राद्ध के बारे में बतलाया। अन्य ऋषि भी पितृदोष से मुक्त होने के लिए श्राद्ध करने लगे और ये प्रचलन शुरू हो गया। रामायण में भी पिंड देने का उल्लेख किया गया है। दशरथ की मृत्यु के बाद माता सीता ने पहले पिंड दिया था। वो कहानी अगले भाग में बताएंगे। ये बातें पौराणिक कथाओं और लोगों के सुन कर हम लिखे हैं।


    पिंड कहां कहां दिया जाता है  


  महाभारत में कहा गया है जो व्यक्ति फल्गू नदी के तट पर पिंडदान करता है उसे भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं। सबसे उत्तम गया का पिंड माना जाता है। फिर हरिद्वार, गंगासागर, पुरी, पुष्कर, बद्रीनाथ, कुरूक्षेत्र, चित्रकुट, काशी, कानपुर मुसानगर का यमुना तट पर, रूद्रप्रयाग, त्रियुगीनारायण या सरस्वती कुंड, अयोध्या सहित 55 जगह और है जहां पिंड दान होता है।    

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