हमारे पुरखों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान या श्राद्ध किया जाता है, एक तब होता है जब वो मरते हैं उसके 13 दिन के भीतर और फिर एक बार पुरे वंश में मरे हुए लोगों का होता है जिसमें एक साथ सभी पुर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। जिसके बाद उन्हें मोक्ष मिलता है, यह भाद्रपद मास के पुर्णिमा से शुरू होता है और अश्विन मास के अमावस्या तक होता है। इसमें हम अपने पुर्वजों का तर्पण और पिंडदान करते हैं।
तर्पण तो घर में ही होता है पंडित जी द्वारा, लेकिन पिंडदान के लिए हम कुछ खास जगहों पर जाते हैं। जैसे बिहार में गया, हरिद्वार, मथुरा सहित और भी बहुत जगह है जो आगे पोस्ट में जानेंगे। इस पोस्ट में हम पितृपक्ष कब से शुरू हो रहा, श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के बारे में, पिंडदान कहां कहां किया जाता है के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। आपको अगर अच्छा लगे तो शेयर करें, कमेंट करें।
कब से शुरू हो रहा पितृपक्ष....
भाद्रपद मास पुर्णिमा 17 सितंबर को है उस दिन श्राद्ध पक्ष शुरू है और 2 अक्टूबर को अश्विन मास की अमावस्या को समाप्त होगा। पहला पितृपक्ष 18 सितंबर बुधवार अश्विन मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से शुरू होगी, 17 सितंबर मंगलवार को भाद्रपद मास की पुर्णिमा है इस दिन ऋषि मुनि का श्राद्ध तर्पण किया जाता है।
18 सितंबर बुधवार - प्रतिपदा श्राद्ध -
19 सितंबर गुरुवार - द्वितीय तिथि का श्राद्ध
20 सितंबर शुक्रवार - तृतीय तिथि का श्राद्ध
21 सितंबर शनिवार - चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
22 सितंबर रविवार - पंचमी तिथि का श्राद्ध
23 सितंबर सोमवार - षष्ठी और सप्तमी तिथि का श्राद्ध
24 सितंबर मंगलवार - अष्टमी तिथि का श्राद्ध
25 सितंबर बुधवार - नवमी तिथि का श्राद्ध
26 सितंबर गुरुवार - दशमी तिथि का श्राद्ध
27 सितंबर शुक्रवार - एकादशी तिथि का श्राद्ध
28 सितंबर शनिवार - तिथि का श्राद्ध
29 सितंबर रविवार - द्वादशी तिथि का श्राद्ध
30 सितंबर सोमवार - त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध
01 अक्टूबर मंगलवार - चतुर्दशी का श्राद्ध
02 अक्टूबर बुधवार - सर्वपितृ श्राद्ध
माना जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पुर्वज धरती पर आते हैं, इस पितृपक्ष में काली गाय को भोजन, कौंवे को भोजन और काली चींटी को भोजन करवाना चाहिए। इससे हमारे पुर्वज खुश हो आशीर्वाद दे तब जाते हैं। हमें पुर्वजों की मुक्ति के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए या फिर घर पर ही तर्पण करना चाहिए ना तब पितृदोष लगता है।
अगर आपके घर में लगातार कोई बिमार रहने लगा हो, वंशवृद्धि नहीं हो रही हो, काम धंधा भी वैसा नहीं चल पा रहा हो, घर में पीपल के पेड़ उगने लगे हो, संतान उत्पन्न नहीं हो रही अगर संतान है भी तो सही रास्ते पर ना चलने वाला हो, शादी विवाह में बाधा, हमेशा घर के सदस्यों किसी ना किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते आदि जैसी प्रोब्लम हो और कुंडली में भी पितृदोष चले तो पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण अवश्य करना चाहिए।
पितृपक्ष में श्राद्ध कब करना चाहिए....
श्राद्ध हमेशा मृतक के मरने वाली तिथि को करना चाहिए, जैसे हमारे माता-पिता, या जो भी है 23 जनवरी 2020 को मरे उस दिन हिंदी पंचांग के हिसाब से माघ मास का चतुर्दशी तिथि था हो पितृपक्ष का श्राद्ध भी इसी चतुर्दशी में करना चाहिए। हां अगर आपको मरने वाले आदमी की तिथि नहीं पता है तो ऐसे व्यक्तियों का श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या को करना चाहिए। अविवाहित व्यक्ति के मरने का श्राद्ध भरणी श्राद्ध यानी पंचमी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए।
नवमी तिथि के श्राद्ध को मातृ नवमी भी कहा जाता है इस दिन मां, दादी, नानी का श्राद्ध किया जाता है। पिंडदान तभी किया जाता है जब पति-पत्नी दोनों के पक्ष के माता-पिता जीवित नहीं रहें, जब तक किसी एक के भी कोई एक भी जीवित हैं तो पिंडदान नहीं किया जा सकता है। उनके लिए तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।
श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान में अंतर....
कहा जाता है कि श्राद्ध अपने पितरों के लिए श्रद्धा भाव से उनकी मुक्ति के लिए करते हैं, और तर्पण में हम तिल और जल मिलाकर उनकी देकर तृप्त करते हैं और पिंडदान उनके मोक्ष के लिए किया जाता है। पिंडदान बिहार के गया जिले के फल्गु नदी में किया जाता है।
पिंडदान कहां कहां किया जाता है.....
पिंडदान गया जी बिहार में, वाराणसी उत्तरप्रदेश में, पुष्कर राजस्थान में, ब्रह्म कपाल बद्रीनाथ उत्तराखंड में, यहां श्राद्ध करने से गया जी से 8 गुणा ज्यादा फल मिलता है। हरिद्वार, मथुरा, द्वारका जी में, उज्जैन और प्रयागराज में भी पिंडदान किया जाता है।
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