अक्षय नवमी पर आंवला पेड़ की पूजा क्यों की जाती है

      कार्तिक मास में तुलसी पूजन, आंवला पूजन का बहुत महत्व है। हिंदू धर्म में कार्तिक मास में सुर्योदय से पहले रोज स्नान कर तुलसी और आंवला में जल देने का विधान है।  कार्तिक मास का हर दिन कोई न कोई महत्वपूर्ण दिन ही है। ये माह देखा जाए तो विशेष रूप से माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का ही मास है। जैसे सावन माह भगवान शिव के लिए है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को अक्षय नवमी, आंवला नवमी, आरोग्य नवमी, कूष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस साल अक्षय नवमी 2 नवंबर 2022 बुधवार वार को है।


     अक्षय नवमी के दिन को आंवला नवमी कहने का कारण है कि पुरे कार्तिक मास हम आंवला वृक्ष की पूजा कर जल चढ़ाते हैं, पूजा करते हैं संतान प्राप्ति और उनके सुख वैभव के लिए धागा बांध पूजा करते हैं। इस‌ दिन हम लोग गंगा स्नान या किसी नदी, पोखर नहा कर आंवला पेड़ की पूजा करते हैं और इस दिन पेड़ के नीचे बैठ भोजन करते हैं। हमारे यहां आंवला पेड़ के नीचे चावल, दाल, सब्जी, पापड़ सब बना तब पुरे परिवार के साथ बैठ कर खाते हैं।


    आंवला नवमी का महत्व- पुराणों में कहा जाता है कि अक्षय नवमी के दिन ही श्री कृष्ण का युग द्वापर युग का शुभारंभ हुआ था। अक्षय नवमी के दिन भगवान कृष्ण वृंदावन गोकुल छोड़ मथुरा गए थे। इसलिए इस दिन वृंदावन परिक्रमा भी भी शुरू होता है।


      अक्षय नवमी पर करें ये उपाय


          * अक्षय नवमी भगवान विष्णु के लिए विशेष महत्व रखता है, इसलिए इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करें, दक्षिणवर्ती शंख से उनका अभिषेक करने से माता लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहती है।


      * अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष में दूध या जल अर्पित करें। मौली, अक्षत, फूल, नैवेद्य अर्पित करें, 8 बार मौली लपेट कर विष्णु सहस्रनाम पाठ करें।

आंवला खाने के फायदे इ

       * अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे ब्राह्मण को भोजन, दान, दक्षिणा दें कर खुद भोजन ग्रहण करें।


        * आंवला में भगवान विष्णु और भगवान महेश का वास होता है, एक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करने आए थे। भ्रमण करते करते उन्हें भगवान विष्णु और शिव भगवान की पूजा करने का मन हुआ तो वो पूजा के लिए तुलसी और बेलपत्र खोजने लगें। तभी अचानक उनकी नजर आंवला वृक्ष पर गई तो उन्होंने कहा इसमें तो तुलसी और बेलपत्र दोनों के गुण होते हैं। तो पूजा में आंवला ही चढ़ाएं इससे भगवान विष्णु और महेश दोनों प्रसन्न हुए और माता लक्ष्मी को वहीं दर्शन दिए।

      

     माता लक्ष्मी तब उसी आंवला वृक्ष के नीचे दोनों को भोजन कराएं। उसके बाद खुद भी भोजन किया, उस दिन का कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष का नवमी तिथि था। तभी से इस दिन आंवला नवमी मनाया जाने लगा।

Post a Comment

0 Comments