छठ पूजा मन्नतों का पर्व

       जब घर हो बेगूसराय बिहार तो छठ पूजा के बारे में जानकारी अच्छी तरह से है ही। छठ पूजा मन्नतों का पर्व है। इसमें छठ मैैया आप की सारी मनोकामनाएं पूरी करती है।

       छठ पूजा हमारा सबसे बड़ा पर्व है। यह बिहार, बंगाल, यूपी और नेपाल के कुछ एरिया में मनाया जाता है। यह आस्था का महापर्व चार दिन चलता है। दीवाली के दुसरे दिन ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। यह पर्व सिर्फ हिन्दू ही कुछ मुस्लिम भी मनाते हैं।हम बिहार के लोग जहां भी रहते ये पर्व बहुत हर्षोल्लास से मनाते हैं।यह बेगूसराय के सिमरिया घाट सेे दिल्ली के यमुना घाट और मुुंबई के जुहु बीच पर भी मनाते हैं।

     छठ भगवान सूर्य का पर्व है।यह साल में दो बार मनाया जाता है। माना जाता है कि छठ माता सूर्य देव की बहन है और उन्हें खुश करने के लिए सूर्य की आराधना करना काफी जरूरी होता है और इसके लिए सुबह के समय खड़े होकर सूर्य देव को जल चढ़ाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ पूजा को लेकर बहुत सी पौराणिक कथाएं हैं..

द्रोपदी की छठ पूजा

   पांचों पांडव जब सारा राज-पाट हार गए।उनके पास कुछ नहीं बचा। तब भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को छठ पूजा करने की सलाह दी, द्रोपदी पुरे नियम पुर्वक छठ पूजा की। और वापस अपना राज्य सत्ता उसको मिला।

भगवान राम की छठ पूजा

        पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान राम सूर्यवंशी थे जिनके कुल देवता सूर्य देव थे। भगवान राम लंका से रावण वध के बाद जब राम और सीता अयोध्या लोटने लगे तो पहले उन्होंने सरयू नदी के तट पर अपने कुल देवता सूर्य की उपासना की और व्रत रखकर डूबते सूर्य की पूजा की। यह तिथि कार्तिक शुक्ल की षष्ठी थी। अपने भगवान को देखकर वहां की प्रजा ने भी यह पूजन आरंभ कर दिया। ऐसा माना जाता है तब से छठ पूजा की शुरुआत हुई।

    और भी बहुत सारी कथाएं हैं छठ को लेकर।छठ की तैयारी तो दुर्गा पूजा से ही शुरू हो जाती है। पहले लोग बांस का बना हुआ डाला सूप खरीदते हैं। जिसमें छठ का सामान रखकर तब हाथ उठाते हैं। 

    दीवाली के दो दिन बाद गेंहू कुटना सुखाना होता है। यह पर्व बहुत नियम निष्टा वाला होता है।जरा सी भूल चुक से पाप की भागीदारी बन जाते हैं।पुरा घर धो कर जहां गेंहू सुखाते उसको पुरा धोते हैं। गेंहू को पहले ओखली में कुटते है,फिर अच्छे से धो कर सुखाकर जाता में पीसते है।अब तो मील पर भी पीसाने लगे हैं।

    इस पर्व में बिना सिला हुआ कपड़ा पहनते हैं।बस साड़ी या धोती पहन कर छठ करते हैं।छठ के लिए किसी नदी या तालाब पोखर में जाते हैं।ना तब घर के आंगन में ही गड्ढा कर उसमें पानी भर कर उसी में मनाते हैं।

     छठ चार दिनों का महान पर्व है।पहल दिन नहाय खाय का पावन‌ होता है। इसमें जो व्रत करती है वो‌ अरवा‌ चावल,चना दाल और कद्दु का सब्जी खाती है। और सबको यही प्रसाद में सबको बांटा जाता है। 8 नवंबर को बुधवार को नहाय खाय है।

    दुसरे दिन खरना होता है। इसमें व्रती पुरा दिन भुखे रहती है और रात में शुद्ध गाय के दूध में खीर बनाकर खाती हैं और सबको प्रसाद देकर आशीर्वाद देते हैं। 9 नवंबर को खरना‌ होगा।

    तीसरे दिन पकवान,लड्डू, बनाते हैं।फिर शाम में सुर्य की पुजा के लिए डाला बंधाता है। जिसमें सेब, नारियल ,नारंगी ,नींब, नारियल,सिंघारा,केतारी,मुली,हल्दी,सुथनी जितना फल उपलब्ध हो सारे ले कर भगवान को अर्घ्य देते हैं। 10 को पहला अधर्य दिया जाएगा। 

     चौथा दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ पूजा का समापन हो जाता है। 11 को सुबह में फिर भगवान सुर्य को जल अर्पित किया जाएगा। फिर अगले साल का इंतजार करते हैं।

    

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