आज मैं आपको मध्य प्रदेश के सागर जिले के बारे में बताती हूं।सागर में दीवाली से ज्यादा ग्यारस का महत्व है।यह दीवाली के ठीक ग्यारहवें दिन मनाया जाता है। सागर में मेरी दीदी कम दोस्त रहती है। वहीं एक बार वहां ग्यारस देखने बुलाये थे आज उसी के बारे में आप लोगों के साथ शेयर करती हुं।
कार्तिक के नवमी को तो मैं पहुंची ही थी तो पहले दिन पुरा इतिहास पता चला और उस दिन जम के सोयी... नींद बहुत अच्छी आई थी क्योंकि दीदी-जीजा जी के हाथ की लिट्टी और चोखा मस्त खा लिए थे। जीजा जी कटरा बाजार के तीन बत्ती का फेमस जमना मिठया की चिरौंजी की बर्फी खाकर तो... वहां की सबसे फेमस मिठाई है। पुरा दिन सोने के बाद शाम को सागर के झील किनारे घुमने का प्रोग्राम सब बनाये।
मकराना से हम लोग ओटो से झील के पास आये।क्या नजारा था। ओह माय गॉड... मेरे मुंह खुले के खुले रह गए वो देख कर..झील के चारों बगल बहुत सुंदर लाइटिंग, बोटिंग की व्यवस्था..खोमचे वाले..गोल गप्पे वाले,आइस क्रीम वाले ..ये सब और इसमें चार चांद लगा रहे थे।
हम लोग खुब इंजाय किए।फिर लौटते समय महाराजा रेस्टोरेंट में सब खाना खाएं।कल हो के मकरोनिया बाजार, कटरा बाजार, तीन बत्ती पुरा घुम घाम के थक गए। फिर दिन आया एकादशी का ,आज तो यहां दिवाली के जैसा माहौल है।सब लगे हुए हैं।पुरी साफ-सफाई,दीदी मिठाई बनाने में है।
मैं भी जल्दी जग के तैयार हो गई, किचन में पहुंची की कुछ हेल्प कर देते हैं।तब दीदी बोले कि आज ग्यारस है। कार्तिक मास के एकादशी को मनाते हैं।वर्ष भर की सभी एकादशी में कार्तिक शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व है। इसे देवप्रबोधनी एकादशी या देव उठानी एकादशी के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस दिन चार महीने शयन के बाद भगवान विष्णु जगते हैं।
शास्त्रों में बताया गया है कि देवप्रबोधनी एकादशी के दिन देवता भी भगवान विष्णु के जगने पर उनकी पूजा करते हैं। इसलिए पृथ्वी वासियों को भी इस दिन भगवान विष्णु के जगने पर उनकी पूजा करनी चाहिए। पुराणों में बताया गया है कि जो लोग देवप्रबोधनी एकादशी का व्रत रखते हैं उनकी कई पीढ़ियां विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करने के योग्य बन जाती हैं। ऐसा करने से मांगलिक कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होती है और पूरा साल सुखमय व्यतीत होता है।
इसलिए आज के दिन पुरे घर को अच्छी तरह सजाते हैं। पुरा दिया से सजाते हैं।ढेर सारी पकवान मिठाई बनाकर सब बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। उस दिन खुब इंजाय कर फिर कल सवेरे सागर के आसपास घुम्ने गये।
नौरादेही सेंचुरी, चंडीका मदिर, हरसिद्धी मंदिर, महादेव मंदिर, सागर झील, गढपरहा के हनुमान, लाख बंजारा झील, भाग्योदय तीर्थ, राहतगढ़ झरना, नेमिनगर जैन तीर्थ आदि हर जगह घुम कर फिर कामायनी एक्सप्रेस से घर की ओर निकल पड़े।
सागर का इतिहास
सागर का इतिहास 1660 ईंश्वी से है। निहालशाह के वंशज ऊदनशाह थे,। लाखा बंजारा झील के किनारे उन्होंने एक छोटा किला बनवाया, उसके बगल में शहर बसाया। जिसका नाम परकोटा रखें, आज यही शहर सागर बन गया और परकोटा एक मुहल्ले में बदल गया है। सागर बिल्कुल देश के बीच सि्थथत है इसलिए सागर को भारत का हृदय भी कहा जाता है। सागर का सबसे पुराना विश्व विद्यालय हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय है। सेना की छावनी के कारण जाना जाता है | अभी अभी इसका नाम भाग्योदय अस्पताल के कारण भी प्रसिद्ध हुआ जिसका नाम करण जैनों के प्रसिद्ध संत श्री विद्यासागर महाराज के नाम पर रखा गया है | यहाँ पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज एवं फारेंसिक साइंस प्रयोगशाला भी है | पौराणिक साक्ष्यों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि इस जिले का भूभाग रामायण और महाभारत काल में विदिशा और दशार्ण जनपदों में शामिल था।
सागर शहर का बाजार
कार्तिक के नवमी को तो मैं पहुंची ही थी तो पहले दिन पुरा इतिहास पता चला और उस दिन जम के सोयी... नींद बहुत अच्छी आई थी क्योंकि दीदी-जीजा जी के हाथ की लिट्टी और चोखा मस्त खा लिए थे। जीजा जी कटरा बाजार के तीन बत्ती का फेमस जमना मिठया की चिरौंजी की बर्फी खाकर तो... वहां की सबसे फेमस मिठाई है। पुरा दिन सोने के बाद शाम को सागर के झील किनारे घुमने का प्रोग्राम सब बनाये।
मकराना से हम लोग ओटो से झील के पास आये।क्या नजारा था। ओह माय गॉड... मेरे मुंह खुले के खुले रह गए वो देख कर..झील के चारों बगल बहुत सुंदर लाइटिंग, बोटिंग की व्यवस्था..खोमचे वाले..गोल गप्पे वाले,आइस क्रीम वाले ..ये सब और इसमें चार चांद लगा रहे थे।
हम लोग खुब इंजाय किए।फिर लौटते समय महाराजा रेस्टोरेंट में सब खाना खाएं।कल हो के मकरोनिया बाजार, कटरा बाजार, तीन बत्ती पुरा घुम घाम के थक गए। फिर दिन आया एकादशी का ,आज तो यहां दिवाली के जैसा माहौल है।सब लगे हुए हैं।पुरी साफ-सफाई,दीदी मिठाई बनाने में है।
मैं भी जल्दी जग के तैयार हो गई, किचन में पहुंची की कुछ हेल्प कर देते हैं।तब दीदी बोले कि आज ग्यारस है। कार्तिक मास के एकादशी को मनाते हैं।वर्ष भर की सभी एकादशी में कार्तिक शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व है। इसे देवप्रबोधनी एकादशी या देव उठानी एकादशी के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस दिन चार महीने शयन के बाद भगवान विष्णु जगते हैं।
शास्त्रों में बताया गया है कि देवप्रबोधनी एकादशी के दिन देवता भी भगवान विष्णु के जगने पर उनकी पूजा करते हैं। इसलिए पृथ्वी वासियों को भी इस दिन भगवान विष्णु के जगने पर उनकी पूजा करनी चाहिए। पुराणों में बताया गया है कि जो लोग देवप्रबोधनी एकादशी का व्रत रखते हैं उनकी कई पीढ़ियां विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करने के योग्य बन जाती हैं। ऐसा करने से मांगलिक कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होती है और पूरा साल सुखमय व्यतीत होता है।
इसलिए आज के दिन पुरे घर को अच्छी तरह सजाते हैं। पुरा दिया से सजाते हैं।ढेर सारी पकवान मिठाई बनाकर सब बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। उस दिन खुब इंजाय कर फिर कल सवेरे सागर के आसपास घुम्ने गये।
नौरादेही सेंचुरी, चंडीका मदिर, हरसिद्धी मंदिर, महादेव मंदिर, सागर झील, गढपरहा के हनुमान, लाख बंजारा झील, भाग्योदय तीर्थ, राहतगढ़ झरना, नेमिनगर जैन तीर्थ आदि हर जगह घुम कर फिर कामायनी एक्सप्रेस से घर की ओर निकल पड़े।
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