कल वो जमाने बाद दिख गया,
कुछ देर तो पहचानने में लगे,
या यूं कहें कि पहचान तो गये
बस बात करने की हिम्मत नहीं हुई,
सहसा हिम्मत कर पुछ ही बैठे.
कितना बदल गये हो,
आंखों पे मोटे मोटे चश्में और
बाल से सफेदी झांक रही..
उसने भी कहा तुम तो आज
भी वैसी ही हो, हंसती हो तो गालों
पर आज भी क्यूट सा डिंपल बनता..
मैंने हंसी छुपाते हुए कहा और
ये शहर कैसे आना हुआ तुम तो मंजिल
की चाह में सब छोड़ कर चले गए थे
फिर अचानक कैसे... वो अपने भर्राई
आवाज में बोला मैं समझ ही नहीं.
पाया मेरी मंजिल क्या थी, मैं तो बस एक
सपने के पीछे भागा जो ना किसी का
हुआ तो मेरा क्या होता।
और तुम कैसी हो ये पुछ उसने सब्र
की बांध पर जैसे तीर मारा..
लेकिन अब तो पत्थर हो चुकी मैं
उससे कहती ही क्या, जब उस समय
कुछ न कह सकी तो आज भी
चुप रहना वाजिब था।
कुछ देर चुप्पी के बाद मैंने कहा
चलो घर में मेरे बच्चे इंतजार कर
रहे होंगे उसने कहा मुझसे मिलवाओगी नहीं,
कुछ हक तो मेरा भी होगा उनपर,
मैं सब छोड़ अब तुम्हारे पास आना
चाहता हूं मैं फिर तुम सब को अपना
बनाना चाहता हूं, तुम्हारी दुनिया
फिर आबाद करना चाहता हूं,
तुम्हारे साथ फिर जीना चाहता हूं।
मेरे ह्रदय में जैसे चीर देने वाली पीड़ा हुई,
आंखों के सामने आज भी हर रात
वो रात हावी रहती,
आज भी वो रात मुझे सोने नहीं देती
जब हमारे 10 साल पुराने विश्वास
को किसी और के लिए रौंद कर
उसके साथ रहने चले गए,
मैं रोती रही गिड़गिड़ाती रही
तुमने मुड़ कर भी नहीं देखा,
मेरे गोद में 3 महीने की गुड़िया
और 4 साल का आरव था..
तुमने तो अम्मा बाबू जी को भी
मेरे भरोसे छोड़ सारे रिश्ते तोड़
चले गए फिर आज क्यों,
ऐसा क्यों जो आज लौट आए।
अब बचा ही क्या मेरे पास..
इतने सालों में मैंने सब कैसे किया,
दुनिया का सामना एक अकेली
औरत इतनी जिम्मेदारी सब कितना
मुश्किल था,
और आज तुम साथ मांगने आए हो।
लेकिन उसकी फरेबी आंखें
मैं कैसे ना समझती,
इतने साल जिस चेहरे का
हर रंग देखी थी आज कैसे ना पहचानती ...
मैंने कहा मेरी दुनिया में अब
तुम्हारे लायक कुछ नहीं बचा,
यहां तुम्हारा कुछ नहीं अब टुटने
की मेरी हिम्मत नहीं तुम आज
भी वही हो जो सालों पुराने थे,
मैं उसको छोड़ हमेशा के लिए आगे बढ़ गई.....
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