नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की‌ पूजा विधि जानें

        नवरात्रि के नौ दिन में माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। माता का छठा दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। मां कात्यायनी को पापी और दुष्टों दानवों को नाश करने वाली देवी भी कहा जाता है। कात्यायनी माता की पूजा से रोग और भय का नाश होता है।मां कात्यायनी का जन्म कात्यायन ऋषि के घर हुआ था, इसलिए इनको कात्यानी कहा जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं,इनका वाहन सिंह है।



          मां कात्यायनी के पूजा का महत्व और माता का स्वरूप......


        मां कात्यायनी की पूजा करने से विवाह में देरी हो रही हो तो शीघ्र विवाह होता है। विवाह योग्य युवक-युवतियों अगर सच्चे मन से माता की पूजा करें तो उनको मन पसन्द जीवन साथी मिलता है। माता कात्यायनी को श्रृंगार का सामान चढ़ाएं। पढ़ने लिखने वाले के लिए भी कात्यायनी माता का पूजा करने से सफलता मिलेगी।

      माता का स्वरूप तेज से भरा, चेहरे पर सुर्य के सामान चमक है। माता कात्यायनी की चार भूजाएं हैं, दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में, नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है। माता की साधना से धर्म, मोक्ष, काम और अर्थ की प्राप्ति होती है।

       मां कात्यायनी की पूजा विधि....

       मां कात्यायनी की पूजा संध्या को गोधुलि बेला में किया जाता है। माता की पूजा में लाल या पीले वस्त्र पहने, माता को लाल रंग या पीले रंग का फूल चढ़ाएं। माता को शहद का भोग लगाएं। माता को शीघ्र विवाह हेतु पूजन के लिए हल्दी की तीन गांठ, पीले फूल और दीपक से पूजा करें। नवरात्रि के छठे दिन से कन्या पूजन किया जाता है बहुत जगहों पर तीनों दिन कन्या पूजन किया जाता है। अगर आप भी कन्या पूजन करें तो विशेष लाभ मिलेगा। कम से कम दो कन्याओं को भोजन और यथा संभव दक्षिणा दें। षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी और नवमी को कन्या भोजन शुभफलदायी है।

      कहा जाता है ब्रजवासी गोपी भगवान कृष्ण जैसा पति पाने के लिए कालन्दी यमुना के तट पर मां कात्यायनी की पूजा की थी। ऊं ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै मंत्र का 108 बार जाप करें।

      माता का ध्यान - वन्दे वांछित मनोरथार्थ चंद्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरुढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्।।
स्वर्णाज्ञा चक्र स्थितां षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि।।
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखि नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयुर, किंकिणि रत्नकुंडल मण्डिताम्।।
प्रसन्नवदना पंवाधरां कांतकपोला तुंग कुचामन।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभीम।।

       मां कात्यायनी की कथा -


      पौराणिक कथा के अनुसार माता कात्यायनी महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुए। महर्षि कात्यायन ने ही माता का पालन पोषण किया। महिषासुर नाम का राक्षस जब पुरी पृथ्वी पर अपना आतंक फैला रखा था, तब भगवान विष्णु, महेश और ब्रह्मा ने अपना अपना अंश देकर देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने देवी की कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण ‌‌‌‌यह देवी कात्यायनी कहलाती है।

    महर्षि कात्यायन की इच्छा थी कि माता उनके घर जन्म लें। माता ने उनकी यह इच्छा पूरी की।अश्वीन कृष्ण चतुर्दशी को उनका जन्म हुआ। कात्यायन ऋषि ने सप्तमी,अष्टमीऔर नवमी को इनकी पूजा की और दशमी को महिषासुर का वध किया।

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