देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के बारे में आप सब जानते ही होगे। यह ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग देवघर झारखंड में स्थित है। यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसमें माता सति और बाबा भोलेनाथ एवं साथ है। माता सती के 52 शक्तिपीठों में से एक यहां एक शक्तिपीठ है। माता सती का हृदय यहां गिरा था इसलिए इसे हृदयापीठ बैद्यनाथ मंदिर भी कहते हैं। यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है इसलिए इस शिवलिंग को मनोकामना लिंग भी कहते हैं।
सावन के महीने में यहां लाखों की भीड़ लगती है। सावन के एक एक सोमवार को यहां लाख डेढ़ लाख लोग जल चढ़ाने आते हैं। देवघर से 105 किलोमीटर दूर बिहार के सुल्तानगंज से जल ले कर पैदल आते हैं बाबा को जल चढ़ाने के लिए। बाबा बैद्यनाथ ने मुझे अपने शरण में छोटा सा आशियाना दें दिया है इसलिए मैं एक एक बारिकी आपको इस पोस्ट में बताउंगी। मैंने लगभग सभी ज्योतिर्लिंग दर्शन कर लिए, इसलिए मैं आपको बारहों ज्योतिर्लिंग के बारे में बताउंगा। आप बस बने रहे मेरे साथ, अगर कोई सवाल हो तो अवश्य पुछे। कमेंट करे शेयर करें....
देवघर कैसे पहुंचे....
देवघर आने के लिए देवघर हवाई अड्डा जिसका नाम है अटल बिहारी वाजपेई अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा अभी पुरी तरह शुरू नहीं हुआ है। निर्माण तो पुरा हो गया बस दो साल से कोरोना के कारण थोड़ा सा काम बाकी हैै 17 September 2021से शुरू हो सकती है तब आप हवाई जहाज से सीधे देवघर हवाई अड्डा आ सकते। हवाई अड्डा से ओटो ,टेम्पो, टैक्सी सब मिल जाएगा। रेलवे से आने के लिए आपको इसके सबसे बगल जसीडीह रेलवे स्टेशन आना पड़ता। देवघर रेलवे स्टेशन भी है लेकिन हर जगह से यह जुड़ा नहीं है।
जसीडीह रेलवे स्टेशन से देवघर बाबा मंदिर 6 किलोमीटर है। जहां ओटो वाला आपको शेयरिंग ओटो में 15 रूपया लेता और पर्सनल ओटो लेने पर 120 रुपए, इससे एक भी रूपए ज्यादा कहे तो तुरंत कहिए टावर चौक पर ही घर है😀😀 जस्ट जोक हर कोई बाहरी देख फायदा उठाना चाहता है तो वो भी क्यों पीछे रहें। ओटो आपको टावर चौक पहुंचा देगा वहां हर बजट का होटल है। टावर चौक से 15 रुपए रिक्शा लेता जो आपको बाबा मंदिर के गेट तक छोड़ आता। देवघर की कुछ बातें और ज्यादा जानने के लिए मेरे इस ब्लाग पर जाएं...
लाॅक डाॅउन में बाबा मंदिर
। देवघर नंदन पहाड़
नंदन पहाड़
बाबा मंदिर के परिसर के मंदिर
माता पार्वती का मंदिर
बाबा बैद्यनाथ मंदिर की स्थापना...
भगवान बैद्यनाथ की स्थापना रावण द्वारा की गई थी। रावण बहुत बड़ा शिव भक्त था। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वो हवन कर रहा था ।और अपना एक एक कर सर काट कर यज्ञ आहुति में चढ़ा रहा था ।जब दसवां सर काटने लगा तो भगवान शिव उसको मनचाहा वरदान मांगने कहे। रावण कामना लिंग को ही अपने साथ लंका चलने का वरदान मांगा। भगवान भोलेनाथ तैयार हो गए लेकिन एक शर्त रखी कि अगर बीच में कहीं मुझे रख दिए तो मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। भगवान शिव के कैलाश छोड़ने की बात पर सारे देवी-देवता परेशान हो कर भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
भगवान विष्णु ने वरुण देव को रावण के पेट में घुस कर जोर से लघुशंका उत्पन्न करने को कहा।रावण कैलाश से चला ही था कि लघुशंका महसूस हुई।देवघर आते आते उसको लघुशंका की तीरती इच्छा महसूस हुई। रावण अपना विमान उतार कर लघुशंका करने की सोची। वहीं एक ग्वाला मिल गया रावण उसको कहा मेरा ये सामान पकड़ो मैं थोड़ी देर में आ रहा हूं। ग्वाला बोला ठीक है रावण जब शुशु करने गया तो वो घंटों शुशु करता रहा जिससे एक तालाब बन गया।इधर ग्वाला भगवान शिव को यही रख कर चला गया।वो ग्वाला कोई और नहीं स्वयं भगवान विष्णु थे। जब रावण लौट कर आया तब तक भगवान स्थापित हो चुके थे। रावण भगवान को यहां से ले जाने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ। उसने समझ लिया ये सब भगवान की ही माया थी।कामन लिंग यहीं स्थापित हो गए।
कुछ लोग कहते हैं कि परली महाराष्ट्र में स्थित है तो वो ग़लत है। शिवपुराण के अनुसार पुर्वोत्तर दिशा में जहां चिताभुमी और हृदयपीठ एक साथ हो वहां असली बाबा बैद्यनाथ धाम है। यहां चंद्रकांता मणि भी है। यहां सैकड़ों सालों का सबूत है कि लाखों ल़ोग हर साल जल चढ़ाने आते हैं। 105 किलोमीटर दूर गंगा नदी जो कि भागलपुर के सुल्तानगंज में है वहां से पैदल जल चढ़ाने आते हैं। देवघर से 42 किलोमीटर दूर दुमका जिले में बाबा वासुकीनाथ स्थिति है वहां भी लोग जल चढ़ाने जाते हैं।
पंचशुल और गठबंधन....
बाबा मंदिर के प्रांगण में टोटल 22 मंदिर है। शिवरात्रि के अवसर पर दो दिन पहले मंदिर पर से पंचशूल उतारा जाता है जिसके दर्शन मात्र से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। इस दिन गठबंधन भी खोल दिया जाता है। तब शिवरात्रि के दिन फिर पुरी पूजा होने के बाद पंचशूल लगाया जाता है। भगवान का जब गठबंधन उतरता तो लाल रंग का कपड़ा होता जिसे भक्त गण भगवान शिव का आशीर्वाद समझ कर हमेशा अपने पास रखते हैं। यहां जो भी जोड़े आते सब इस गठबंधन को बंधवाते है। पंचशुल को उतार कर एक निश्चित स्थान पर रखकर उसकी पूजा कर फिर वही स्थापित कर दिया जाता है। पंचशुल को मंदिर से नीचे लाने और फिर ऊपर स्थापित करने का अधिकार एक ही परिवार को प्राप्त है।
पूजा और संध्या आरती का समय....
बाबा बैद्यनाथ का पुजा सुबह 4 बजे होता है जिसे सरकारी पूजा कहते हैं। ये पूजा यहां के सरदार पंडा करते हैं। उसके बाद मंदिर में पुरा दिन जलार्पण होता है फिर दो बजे के बाद मंदिर को फिर से धो साफ कर संध्या पूजन के लिए तैयार करते हैं।शाम के समय बाबा का श्रृंगार देखने लायक होता है।जेल के कैदियों द्वारा सालों से मुकुट बनाया जाता जिसे शाम के समय बाबा पर चढ़ाया जाता है। श्रृंगार दर्शन करने को लोग बहुत आते हैं। बाबा की आरती भी होती है। सावन के समय में समय ऊपर नीचे होता है।
विशेष पूजा.....
देवघर बाबा बैद्यनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि, एक जनवरी, सरस्वती पूजा, दूर्गा पूजा, सावन में बहुत भीड़ लगती है। सरस्वती पूजा के समय में बाबा पर अबीर चढ़ाने मिथिला से बहुत लोग आते हैं।
देवघर और इसके आसपास घुमने की जगह....
देवघर और उसके आस पास घुमने की बहुत सारी जगहें हैं। देवघर में नंदन पहाड़, त्रिकुट पर्वत जहां रोप वे का आंनद लें सकते हैं। तपोवन जहां पहाड़ पर घूम सकते, छोटा सा मंदिर है और हां कुछ नटखट बंदर हैं उनसे बच के😀। नौलखा मंदिर, सत्संग आश्रम जो अनुकूल चंद्र जी का आश्रम है, पगला बाबा एक सिद्ध बाबा का आश्रम है। फिर इंजाय करने के लिए बहुत सारे माॅल, आईलैक्स, डोमिनोज पिज्जा ये सब आपको मिलेंगे।
यहां खाने पीने का बहुत अच्छा और सस्ता होटल आसानी से मिल जाएगा। मंहगे भी बहुत है । देवघर का पराठा, दही, मटन जिसे अट्ठे कहा जाता वो बहुत फेमस है। देवघर आने पर आप किसी को पुछिए परांठे वाली गली आपको पहुंचा देगा, जहां हर तरह के परांठे आपको सही दाम पर आसानी से मिल जाएगा।
देवघर का प्रसाद पेड़ा, चुरा, इलाइची दाना, चुरी सिंदुर, काला या लाल धागा होता है। इसे अवश्य लें जाए और आप अपने परिवार और रिश्तेदारों में बांटे। देवघर पूजा करने के बाद लोग दुमका जिले के वासुकीनाथ मंदिर जाते हैं। जिसे फौजदारी बाबा कहा जाता है। उनकी बारे में अगर जानना चाहते हैं तो कमेंट करें, शेयर करें...
आप सभी हमारे द्वादश ज्योतिर्लिंग सीरीज में बने रहें हम आपको पुरा भारत दर्शन कराएंगे...मेरा जो अपना अनुभव है उसी आधार पर.... बाकी बम भोले...जय बाबा बैद्यनाथ...
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