मां सरस्वती विद्या की देवी हैं। इनकी पूजा बसंत पंचमी के दिन होती है। इस बार सरस्वती पूजा 5 फरवरी को है। सरस्वती पूजा विद्यार्थियों का दिन होता है, इसमें किताब, काॅपी और कलम की पूजा होती है। साजो सामान जैसे तबला, हारमोनियम, वीणा, गिटार आदि की पूजा करते हैं। मां सरस्वती से अपने लिए विद्या में निपुण होने की प्रार्थना करते हैं।
सरस्वती माता कब है और पूजन विधि.......
सरस्वती पूजा 5 फरवरी शनिवार को है। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6.59 से दिन के 12.35 तक है। माता की पूजा के लिए सबसे पहले नहा कर पीला वस्त्र धारण करें। माता का आसन भी पीला रखें और माता को पीला साड़ी लपेटें। फिर दायें हाथ में जल ले खुद को और अपने आसन को शुद्ध करें। दायें हाथ में जल लें कहें ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।। य: स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्मभ्यन्तर: शुचि:।। ओम पुनातु पुण्डरीकाक्षा: पुनातु पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।। इस मंत्र को तीन बार बोलते हुए अपने पर और सभी पुजन सामग्री पर छिड़क शुद्ध कर लें।
ओम केशवाय नमः,ओम माधवाय नमः, ओम नारायणा नमः बोलकर आचमन करें और हाथ धो लें। अब आसन शुद्धि का मंत्र पढ़ें,धरती को छु कर बोले-- ओम पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्।। अब पूजा का संकल्प लें,फिर गणेश जी और नवग्रह देवता की पूजा करें। माता को पीला फूल, पीला फल चढ़ाएं। माता को घी के दीप, धूप, अगरबत्ती जलाएं और नैवेद्य अर्पित करें।
सरस्वती माता की मूर्ति का अंतिम रूप दे रहे हैं अब कारीगर, हर गली, स्कुल में बच्चे अपनी यथा शक्ति अनुसार मुर्ति बैठाते हैं। मूर्ति बनने की तमन्ना तो दिसंबर से ही शुरू हो जाता है। सरस्वती पूजा की तैयारी अब जोड़ शोर से शुरू हो गई है, चंदा जमा करना भी हो रहा।
सरस्वती पूजा जब हमारा बचपन इसमें गुजरा.....
सरस्वती पूजा में मजा बहुत आता है। याद है बचपन हम सब कभी ना कभी अपने दरवाजे पर सरस्वती पूजा अवश्य किए हैं। रात भर सारे मुहल्ले के बच्चे पेपर काट चिपकाना, अपने कला का प्रदर्शन तो हम यहीं सबसे पहले शुरू करते थे खुद को ना जाने कितना बड़ा डेकोरेटर समझते, सब अपनी समझ अनुसार सजाते अपने पंडाल को। मां के बक्से में सबसे सुंदर सुंदर साड़ी ला यहां पंडाल में झालर बनाते।
रात भर जगना है इसलिए उस समय आज के जैसा ना गाना डाउनलोड करने के नेट और ना SD कार्ड होता। बड़ा सा भीसीआर (VCR) कैसेट किराए पर लाते थे। सब अपनी अपनी पसंद का फिल्म रात भर कंबल लपेटे उस पंडाल को सजाना और फिल्म देखना सच में कितना मासुम बचपन हम सब ने जिया, जहां मां बाप भी निश्चित थे कि बच्चे है आज कल तो क्या हो जाए कहना मुश्किल है।
बसंत पंचमी पर पीले वस्त्र का महत्व
फिर सुबह 2-4 लोग लगते प्रसाद काटने में गाजर, बुनिया, सेव, मिश्रीकंद, बेर सब काटने की जिम्मेदारी एक जन को और बांटने की जिम्मेदारी एक को मिलती थी। मां आती सरस्वती जी को अच्छी तरह साड़ी पहना देती तब तक पंडित जी भी पूजा कराने आ जाते। हम सब में एक बड़ा भाई हेड होता था जो पूजा पर बैठेगा। वो नहा कर धोती पहन आ जाता पंडित जी पूजा कराते और दक्षिणा में हम लोग जो दे रख लेते।
पूजा के बाद पुरे गांव का पंडाल घुमते फिर लगता अपने पंडाल जैसा तो किसी का सजा हुआ ना है। उस समय बस लड़के बहन का रिश्ता पुरे गांव को मानते कि जिससे ज्यादा लगाव है उसको थोड़ा प्रसाद में बुनिया ज्यादा मिलेगा। हां बगल गांवों से जो आती उसे एक दूसरे की भाभी कह सब प्रसाद में अच्छी अच्छी चीज़ देती, ये प्यार भी बस निश्छल प्रेम होता जहां कभी ना इजहार होता ना कभी उससे बात बस समझ लेते कि ये स्पेशल है।
आजकल अब वो जमाना भी नहीं रहा, अब प्यार पाक नहीं बस जरूरत हो गया, इस साल इसके साथ अगले साल फ़िर कोई और, अब सरस्वती पूजा में लड़कियों नहीं रूकती क्योंकि मां बाप को अनहोनी का डर रहता, बच्चे भी अब बहुत समझदार हो गए। अब हाथ में मोबाइल गाना का तो बात भी मत कीजिए। अब बस अपने इंजाय के लिए पूजा होता है, सजाने के लिए बाहर से लोग आते, अश्लील वीडियो और गाने चलते। रात भर दारू बीयर सिगरेट पीते की थक जाते हैं। अब पूजा नहीं बस पूजा के नाम पर अपने शौक पूरे करते।
काश फिर वही बचपन आए वहीं सच्चा मन लाए और सब प्रसाद में खीर की पार्टी कर थकान दूर करें।
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