मेजर शैतान सिंह, जिनके नाम से चीनी सैनिक आज भी डरते

     मेजर शैतान सिंह जिनका आज जन्मदिन है। जो भारतीय सेना के जांबाज सिपाही थे, जिनके नाम से आज भी चीनी सेना डरती है। ये कहानी नहीं सच्चाई है जब 1962 में भारत चीन का युद्ध हुआ था, और भारत जीत गई जबकि ना तो इसके पास उतने हाईटेक हथियार थे ना ही‌ उतने जवान और ना ही उस हड्डी कंपाती ठंडी से बचने को कपड़े। ये युद्ध मेजर शैतान सिंह के अगुवाई में जवान सब लड़े। इसलिए इनको मरने के बाद परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

     मेजर शैतान सिंह के अंदर 120 जवान थे और चीनी ‌‌‌सैनिक की संख्या 2000 थी। मेजर शैतान सिंह का अदम्य साहस और सेना सब का जोश तब यहां विजय मिली। यहां लद्दाख की जमा देने वाली ठंड में 17,800 फीट की पर्वत की ओट में रेजांगला दर्रे पर हमारे जवान देश की सुरक्षा में तैनात थे।
  
     18 नवंबर 1962 को जब चीन ने भारत पर हमला किया। उस समय 13 वीं कुमाऊनी बटालियन की C कंपनी अपने 120 जवानों के साथ थी। जब हमले की आशंका थी तो‌ मेजर शैतान सिंह ने अपने अधिकारियों से मदद मांगी, लेकिन अधिकारियों ने अपनी असमर्थता बताते हुए कहा कि आप लोग पीछे हट जाओ। चौकी छोड़ दो, चौकी छोड़ना मतलब हार स्वीकार करना था। जो किसी भी फौजी के लिए मौत के बराबर है।

      मेजर शैतान सिंह भी पीछे नहीं हटने का फैसला लिया। भारतीय सेना में हर किसी के पास बस 400 राउंड गोलियां थी और हथगोले भी कम ही थे। मेजर शैतान सिंह ने अपने सभी सिपाहियों को बुलाया और सारी स्थिति बताई। वो लोग की संख्या अधिक है और हम लोग हर मामले में कम। पीछे से भी कोई मदद मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। ऊपर से आदेश है आप चौकै छोड़ दें। जिस जिस को जाना है वापस जा सकते हैं।ले

      लेकिन पुरी दुनिया को पता है भारतीय सेना का साहस। वो मौत को गले लगा सकती लेकिन पीछे नहीं हटती। सभी ने युद्ध लड़ने का फैसला किया। मेजर शैतान सिंह ने बहुत अच्छी रणनीति बनाई, उन्होंने कहा एक‌ भी गोली जाया ना जाएं। और ना तो दुश्मन के लिए बंदूक लो मारते चलो। भारतीय सेना ने इतना अच्छा लड़ा कि ये युद्ध इतिहास में भी जाना जाएगा।

    सुबह लड़ाई शुरू हुई, शाम तो चीनी सेना को डर लग गया कि भारतीय सेना की संख्या अधिक है हम जीत नहीं पायेंगे। वो डर से पीछे हो गए। इधर मेजर शैतान सिंह को एक चौकी पर तैनात सिपाही का हौसला अफजाई करने यहां से वहां कर रहे थे उनको गोली लगी और वो घायल हो गए। उनके साथी हवलदार ने उनको नीचे चले जाने कहा लेकिन मेजर शैतान सिंह जाने के लिए तैयार ना हुए, क्योंकि उनके ‌‌‌‌‌साथ एक सिपाही अगर जाता तो यहां 10 चीनी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ सैनिक हावी हो जाते।

    उन्होंने यही रहने का फैसला किया। सिपाही को शहीद‌ होता देख, ये भी गोली चलाने लगे। जब सारे चीनी ‌‌‌‌‌भाग गए और पोस्ट जीत गए। दो महीने बाद गड़ेडिया जब भेड़ चराने आए तो बर्फ में दबी लाशें देखे। सिपाही जिनके हाथ में अभी भी बंदूक पर थी, अंगुली ट्रीगर पर थी। गड़ेरिया ने दुसरे पोस्ट पर‌ जा भारतीय सेना को‌ बताई सारी बातें। जब भारतीय सेना आ गई तो देखें भारतीय सेना का शरीर और कुछ दूरी पर चीनी सिपाही के 1000 से अधिक लाशें गिरी है।

     आज 01 दिसंबर को मेजर शैतान सिंह का जन्मदिन है। उनका जन्म 01 दिसंबर 1924 को जोधपुर जिले के बंसार गांव राजस्थान में हुआ था। उनका पूरा नाम शैतान सिंह भाटी था। उनके पिता प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस में भारतीय सेना के साथ खड़े थे। जहां उनके साहस के लिए उनको ब्रिटिश सरकार से ऑडर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर से नवाजा गया। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी थे।
 

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