कल वट सावित्री व्रत है।3 जून सोमवार को सभी सुहागन स्त्री वट वृक्ष का पूजन करेंगी। कल सोमवती अमावस्या भी है। सोमवार को अमावस्या पर रहा इसलिए। यह व्रत पत्नियां अपने पति की सारी बलाएं टालने के लिए और उनके सुख की कामना, आयु वृद्धि, संकट के निवारण के लिए करती है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने का विधान है और सावित्री सत्यवान की कथा सुनी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री यमराज के पास से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आती थी।
यह जेठ मास में अमावस्या और पूर्णिमा को मनाया जाता है। जो अमावस्या पर किसी कारण नहीं मना पाते वो पूर्णिमा को मनाती है।
हमलोग के यहां बहुत धुमधाम से नयी दुल्हन ये पुजती है। हर जगह के अलग-अलग रस्म होती है। मेरे यहां होली के पहले जिसका शादी होता वो पुजती में नहीं तब वो अगली होली के बाद पुजते है।
सबसे पहले वट वृक्ष के नीचे सारा सामान रखकर, सर पर बरगद का पत्ता बांधते हैं फिर पेड़ पर जल डालते हैं, उसके बाद बियन पर 5 जगह सारा सामान रखते। फिर आटा पेड़ से चिपका कर 7 बार धागा लपेटते। बियन पर रखे सामान को पेड़ की जड़ में रख कर फिर पेड़ को पति मान पंखा झेलते और गले मिलते। अपने पति की दीर्घायु और सारी बलाएं टालने का वरदान मांगती है। फिर सुहागिन स्त्रियों को सत्तु, चना, कच्चा आम, पकवान अपने हाथ से बांटती हैं।
यह जेठ मास में अमावस्या और पूर्णिमा को मनाया जाता है। जो अमावस्या पर किसी कारण नहीं मना पाते वो पूर्णिमा को मनाती है।
हमलोग के यहां बहुत धुमधाम से नयी दुल्हन ये पुजती है। हर जगह के अलग-अलग रस्म होती है। मेरे यहां होली के पहले जिसका शादी होता वो पुजती में नहीं तब वो अगली होली के बाद पुजते है।
वटवृक्ष पूजा पूजा
हमारे यहां सबसे पहले सुबह सुर्योदय के पहले स्नान ध्यान कर ही वट वृक्ष में जल डालते हैं। फिर सुर्योदय के बाद अच्छी तरह सज संवर कर सर पर कलश लेकर गीत गाते हुए निकलते हैं। एक हाथ से कलश और एक हाथ से टोकरी पकड़ कर रखते। टोकरी में सावित्री और सत्यवान की मूर्ति और बियन( पंखा) , चना, खीरा, कच्चा आम, सत्तु, आटे का बना पकवान, लीची, मिठाई और पेड़ को लपेटने के लिए धागा।सबसे पहले वट वृक्ष के नीचे सारा सामान रखकर, सर पर बरगद का पत्ता बांधते हैं फिर पेड़ पर जल डालते हैं, उसके बाद बियन पर 5 जगह सारा सामान रखते। फिर आटा पेड़ से चिपका कर 7 बार धागा लपेटते। बियन पर रखे सामान को पेड़ की जड़ में रख कर फिर पेड़ को पति मान पंखा झेलते और गले मिलते। अपने पति की दीर्घायु और सारी बलाएं टालने का वरदान मांगती है। फिर सुहागिन स्त्रियों को सत्तु, चना, कच्चा आम, पकवान अपने हाथ से बांटती हैं।
सावित्री सत्यवान की कथा
वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री के पति अल्पायु थे, उसी समय देव ऋषि नारद आए और सावित्री से कहने लगे की तुम्हारा पति अल्पायु है। आप कोई दूसरा वर मांग लें। पर सावित्री ने कहा- मैं एक हिंदू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं। इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है।
सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं। उन्हें आता देख यमराज ने कहा सावित्री से लौट जाने को कहा। कहा कि पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है। सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं।
बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के ये तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु, ऐसा ही होगा। उसके बाद सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था।
सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया।
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