बच्चों के बड़े होने पर बुढ़े माता-पिता

     आजकल इतने वृद्धाश्रम खुल रहे उसका कारण लोग बच्चों को या अपने दिए संस्कार को मानते हैं। लोगों को अपने दिए संस्कार भी ग़लत लगने लगते हैं। जहां तक संभव है हर मां बाप अपने बच्चों को अपने से बेहतर जिंदगी देना चाहते, बहुत हद तक देते भी है लेकिन कुछ लोग की मजबूरी होती होगी,पैसे या और चीजों की जो उनकी हर चीज पूरी नहीं कर पाते....

      हमारे भारतीय समाज में हर मां बाप खुद भुखे रह कर अपने बच्चों की भविष्य के लिए जमा करते। खुद एक कपड़े में गुजार देते बच्चों के लिए 10 सेट कपड़ा। मेरे नजर में शायद ये ग़लत है। क्या इतना करने के बाद भी बच्चे हमें समझ पा रहे हैं। उनकी नज़र में मां बाप गलत साबित हो रहे, भले वो‌ भी कल अपने बच्चों के लिए जमा करने में क्यों ना लग जाए।

    क्यों ना हम लोग एक नया समाज बनाएं।एक Trend बनाएं। बच्चों को पढ़ा लिखा उनको उनके परिवार बसा कर अपनी दुनिया बसाएं। अमुमन शादी के 2-3 साल बाद हम अपनी फैमिली प्लान करने लगते। फिर बच्चे को पढ़ाने लिखाने के दौरान ना जाने कितने compromise करते, हर रोज कुछ न कुछ हमलोग को । बच्चे के लिए त्यागना पड़ता..

    और जब बच्चे बड़े हो जाते तो बुढ़े माता-पिता को कहते हमने आपको ऐसे रहने कहा, वो आपकी मर्जी थी।जब बच्चे की खुशी के लिए मां बाप ना जाने कितनी अपनी खुशी कुर्बान कर दी। अंत तक भी हम लोग उन्ही का सोच कर खर्च ना‌ करता,अपनी जिंदगी ना जीते कि मरने के बाद कुछ और मिले और बच्चे नाम लें..

     हम तो कहते हैं क्यों ना हम भी वो जिंदगी जिएं जिसमें अपने लिए सब हों। बच्चों को पढ़ा लिखा उनकी शादी कर आप अपनी जिम्मेदारी से खुद को मुक्त कर दें। फिर बस अपना समय, अपनी खुशी, अपने शौक पुरे करें। उस समय स्कूल फीस के कारण घुमने ना जा पाए थे अब निकल जाते ...

    हर वो चीज जो उस समय ना कर पाए अब जी लेते। वृद्धाश्रम तब भेजते माता पिता को जब वो शरीर से भी लाचार हो जाते। पुरी जिंदगी ये अफसोस रहता हम अपनी जिंदगी ना जी सके। और ज़िंदगी का जब अंत होना होगा वृद्धाश्रम में मरे या कहीं मंदिर-मस्जिद बच्चे अपने नाम के लिए या दिखावे के नाम पर ही अंतिम संस्कार कर‌‌ ही देते। ना करने वाले तो घर में भी मरने पर छोड़ देते...

  नोट- ये मेरी व्यक्तिगत सोच है, आप अपनी राय अवश्य दें..

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