हिंदू मुस्लिम में क्युं बढ़ रही तकरार

     हम भारतीय कभी मानते थे कि हिंदू-मुस्लिम भाई भाई, लेकिन अब ये भाई चारा बस लिखने के लिए शायद रह गई है। हर बात को आजकल हम लोग बस धर्म से जोड़ कर देखते हैं। हर छोटी से छोटी घटना में दर्द बाद में दिखता है लेकिन धर्म पहले। मरने वाले कौन थे किस धर्म के थे। जो जिस धर्म का है वो उसका सपोर्ट या विरोध करता। मरने वाले के दु:ख दर्द का कोई लेना देना नहीं है, ना ही उसके परिवार को हम जानते। बस अरे हिंदू था तो हिंदू आ जाओ, अरे मुस्लिम था तो आ जाओ...

     कभी कभी लगता है जब से ये सोशल मीडिया आया है तब से तो और ये बढ़ गया है। लाइक, कमेंट और पेज व्युज बढ़ाने के लिए पोस्ट कर देते कि फलां जगह ये हुआ और फलां धर्म का था, फलां धर्म वाले ने ऐसा किया। बस सब लगे बरसने, मन‌ में एक तरह का विचार धीरे धीरे घर कर जाता वो धर्म के लोग बुरे ही हैं उनकी अच्छाई फिर कभी नहीं दिखती।

     ये लोग बस कोई और नहीं कुछ टुच्चे किस्म के लोग ही हैं जो दोनों को लड़ा अपनी रोटी सेंक रहे। लेकिन उन टुच्चों से बड़े हमलोग हैं जो उनके पीछे- पीछे चल देते। आज भी जो समझदार इंसान है उनके लिए रहीम चाचा रहीम चाचा ही है, उनके बगीचे में आम अमरूद तोड़ने जाते ही जाते, मिश्राइन चाची के यहां अभी भी लड्डू खाने जाते।

     अभी कुछ दिन पहले एक जगह रेप हुआ बच्ची का‌ उस दरिंदे तो उसी समय मार के फेंक देना चाहिए था लेकिन पहले उसे धर्म से जोड़ा हिंदू था, फिर दुसरी घटना ‌‌‌हुई अरे ये मुस्लिम था। ये कोई ना‌ देखा कि वो एक हैवान था, मरने वाली बच्ची उस ऊपर वाले की बनाई एक नन्ही सी जिंदगी थी।‌ लेकिन यहां तो हम अपने धर्म की माला फेरना बंद नहीं करते "अरे क्या हुआ मरी जो मरी धर्म का विरोध करो ना"

    कब हम सब एक हों और उस हैवानियत को खत्म करें। जिससे हिंदू- मुस्लिम दोनों सुरक्षित रहे। क्यों ना पहले इंसानियत देखें फिर धर्म। ये मीडिया, नेता सब अपनी अपनी रोजी-रोटी कमा रहे, अपना घर भर रहे और हम लोग धर्म के नाम पर लूटा रहे। क्युं ना हम फिर एक जैसे भाई भाई बन कर रहे। एकसाथ रहे तो दुनिया पर राज करेंगे ना तब फिर दुनिया हम पर राज करेगी।एक साथ हो अन्याय के खिलाफ लड़े ना कि धर्म के नाम एक दूसरे को मारते रहे।

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