क्यों ना इस बार गांव चले - 2

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  में घर चलने की बात से,मन‌ व्यथित हो गया ।और हमने घर जाने का मन बना लिया। लेकिन सोचने भर से घर तो जा नहीं सकते बस बहुत तैयारी करनी पड़ती है। पहले टिकट चेक किए अवलेवल है कि नहीं,फ्लाइट का टिकट दिल्ली तक तो हो गया, बाकी दिल्ली से बिहार तक का टिकट खोज रहा था। लेकिन दिवाली छठ में टिकट खोजना, भुसे के ढेर से सुई खोजना आसान है लेकिन छठ में टिकट खोजना ओह.. खैर अब जाने का मन बना लिया तो जाना ही है। हमने भगवान पर छोड़ पैकिंग शुरू कर दी। आज पुरे दो साल बाद घर जा रहा था। किसके लिए क्या लेना है, दीवाली है मां बाबूजी के लिए तो सबसे पहले शापिंग होगी। बाजार गया और बाबूजी के लिए एक अच्छी कुर्ता और बंडी लिया सबसे पहले,जिसे पहन‌ बाबूजी सबसे पहले ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌। पूरा गांव घुंमेंगे और सबको कहेंगे मेरा अमन लाया है। मां के लिए साड़ी मां दुसरी कोई साड़ी पहनती नहीं उसके लिए सुती की साड़ी कितना खोजने के बाद मिला। मां बाबूजी की शापिंग तो हो गई। भैया-भाभी के लिए कपड़े और छोटी के लिए लैपटॉप यहां सस्ते दामों में मिल जाता है। बाकी शोपिंग अब वहां जाकर कर लुंगा।मन में जानें का इतना उमंग था कि अब आंखों में नींद कहां थी।याद आ रहा था जब मुझे दुबई में नौकरी का बुलावा आया था। मैं बहुत खुश था विदेश जाउंगा खुब पैसे कमाऊंगा मजे करुंगा लेकिन यहां आया तो पता चला कि पैसा कमाना कितना मुश्किल है। मां रो रही थी कि कैसे उतना दुर जानें दे जहां कोई अपना नहीं है। जब पहली बार बाहर पढ़ने गया तो मां कितना रोई थी।रोये तो बाबूजी भी थे बस पता नहीं चलने दिया कभी। यहां आ कर तो जैसे सबकुछ पीछे छूट गया। बात तो सबसे हो जाती है, लेकिन जब़ थककर रुम पर आता तो लगता है काश मां एक बार सर पर हाथ फेर कर कहे कैसे हो ,"बेटा... बहुत मेहनत कर लिये अब घर आ जाओ😭😭😭" छोटी की सगाई हो गई ना जा सका क्योंकि छुट्टी नहीं मिली हां भैया वहीं से मोबाइल से विडियो काल करवा दिए सब कुछ देख लिया।एक मोबाइल ही तो सहारा है जिससे दुरी भी कम लगती। शादी दिसंबर में होना तय हुआ मुझे तो छुट्टी नहीं ही मिलती लेकिन अब घर जा रहा हूं तो शादी निपटा ही लुंगा। तभी फोन की घंटी बजी तो सपने से बाहर आया। मां का फोन था.... बाकी अगले भाग में..

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