जीतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत विधि और महत्व जानें

जीवित्पुत्रिका या जितिया पर्व हिन्दू धर्म में बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाए जाने वाले पर्वों में से एक है। जिसे अपनी संतान की मंगलकामना के लिए मनाया जाता है। इस पर्व को अधिकतर भारत के पूर्वी हिस्सों और उत्तर के कुछ हिस्सों में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन निर्जला उपवास किया जाता है जिसे माताएं अपनी संतान के उज्जवल भविष्य और लंबी आयु के लिए रखती है। अक्टूबर सोमवार को नहाय खाय का व्रत होगा। इस नहाय खाय में आप सबकुछ खा पी सकते हैं। अगर आप नानभेज है तो मछली खाना शुभ माना जाता है। सुर्योदय के पहले यानी मंगलवार के सुबह अष्टमी तिथि शुरू 2 अक्टूबर 2018 सुबह 4 बजकर 9 मिनट तक आप खा पी सकते हैं। पुरा दिन मंगलवार को एक बुंद पानी भी नहीं ले। अष्टमी तिथि समाप्त होगा 3 अक्टूबर 2018 सुबह 2 बजकर 17 मिनट उसके बाद खा सकते हैं। अगर आप बीमार है या व्रत नहीं संभले तो कुछ जुस या दुध पी लें। जीवित्पुत्रिका व्रत करने के लिए सुबह स्नान करने के बाद सबसे पहले सुबह स्नानादि करके व्रत का संकल्प लें। पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा करें। पूजा के लिए मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाएं। और उसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाएं। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्तों से पूजन करना चाहिए। ‌‌3 अक्टुबर को‌ पारण है।वैसे तो इस दिन सभी खाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से झोर भात, नोनी का साग, मड़ुआ की रोटी और मरुवा का रोटी सबसे पहले भोजन के रूप में ली जाती है।
   जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा के लिए ‌‌‌‌‌‌अगला‌ पोस्ट जरूर पढें। ये पोस्ट कैसे लगा कमेंट में लिखे।

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