नवरात्रि के नौ दिन के दौरान मां के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री की पूजा की जाती है। इन दिनों लोग व्रत रखते हैं और दसवें दिन कन्या पूजन के बाद व्रत खोलते हैं।
आज बेगुसराय के आसपास के दुर्गा स्थान के बारे में बात करते हैं। बेगूसराय के बीहट, लखनपुर, जयमंगला जी, पानापुर, मुंगेर वाली माता जहां कहा जाता सच्चे मन से यहां जो मांगा जाता माता सब पुरा करती है। यहां का आंचल(खोंइचा) भरना अपने आप में एक आशिर्वाद है।
यहां खोंइचा भरने के लिए ना जाने कितनी सुनी गोदें आती है और आंचल भर के ले जाती है। माता यहां सब मुराद पूरी करती है। आइए पहले बीहट की बड़ी माता का दर्शन...
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यहां पर बलि की प्रथा है।लखनपुर वाली मां के दर्शन के लिए कई राज्यों से पहुंचते हैं भक्त आस्था का केंद्र है लखनपुर दुर्गा मंदिर सीएस ऑफिस में बनता है।
मुंगेर वाली माता- .
मां चंडिका का मंदिर बिहार के मुंगेर जिला मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर गंगा के किनारे स्थित है।इसके पूर्व और पश्चिम में श्मशान है।इसीलिए इसे 'श्मशान चंडी' के रूप में भी जाना जाता है ।नवरात्र के दौरान कई साधक तंत्र सिद्धि के लिए यहां जमा होते हैं।
मान्यता है कि इस स्थल पर माता सती की बाईं आंख गिरी थी ।यहां आंखों के असाध्य रोग से पीड़ित लोग पूजा करने आते हैं और यहां से काजल लेकर जाते हैं।लोग मानते हैं कि यह काजल नेत्ररोगियों के विकार दूर करता है।
जयमंगला जी-देश के 52 शक्तिपीठों में शुमार जयमंगला स्थान में मां के मंगलकारी रूप 'माता जयमंगला' की पूजा आदिकाल से होती आ रही है। यहां देवी सती का वाम स्कंध गिरा था। यह स्थान बेगूसराय जिले के मंझौल प्रखंड में अवस्थित है। यहां रक्तिम बलि की प्रथा नहीं है। पूरे नवरात्र यहां सप्तशती का पाठ चलता है जिसकी पूर्णाहुति हवन से होती है।यह कांवर झील से घिरा हुआ है, जहां हर साल देश-विदेश से लाखों की संख्या में पक्षी आते हैं।






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