Holi kab hai 2024

      हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पर्व होली है, होली ही ऐसा पर्व है जिसमें अमीर गरीब, जाति पाति धर्म सब भूल एक दूसरे के रंग में लोग रंग जाते हैं। होली में बस एक ही रंग होता है वो है खुशियों का, सब प्यार, दोस्ती के रंग में डूबे नजर आते हैं। बसंत ऋतु खत्म होते ही फाल्गुन माह अपने रंग में आ जाती.... होली देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है, सबको इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। सब गिले शिकवे भुलाकर रंग में डूब जाते। होली भाईचारे, प्रेम और सौहार्द का पर्व है, बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। हम तो होली खाने और प्यार में रंगने का पर्व मानते हैं.....आइए जानते हैं इस साल होली कब है..... 


      होली कब है 2024....


      होली फाल्गुन मास की पुर्णिमा को मनाया जाता है, उसके एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है। इस बार तिथि के कारण बहुत लोगों में कंफ्यूजन का विषय है होली मनाएं कब...... 

      24 मार्च 2024 को फाल्गुन पूर्णिमा है जो सुबह 9.54 से शुरू ही होगा और 25 मार्च 2024 को दिन के 12.29 तक पुर्णिमा तिथि रहेगा। बहुत जगहों पर उदय तिथि को माना जाता है इसलिए होली 25 मार्च को मनाया जाएगा.... 

      होलिका दहन कब है 2024.....


     होलिका दहन 24 मार्च 2024 को है। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11.13 से 12.27 तक है। 

      होली के 8 दिन पहले होलाष्टक लगता है जिसमें सारे शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। शादी - विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश कोई शुभ कार्य नहीं होता है यह होलाष्टक 16 मार्च 2024 से शुरू हो रहा और 24 मार्च तक चलेगा....

      होली क्यों मनाया जाता है.......

     होली बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है, होली मनाने की बहुत सारी पौराणिक कथाएं हैं। होली पुरे दुनिया भर में खेली जाती है बस कहीं कहीं इसके नाम अलग है, होली खेलने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। हम‌ लोग कीचड़, रंग से होली खेलते विदेशों में मड बाथ नाम से लोग कीचड़ से नहाते हैं। 

      एक पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु नाम का असुर था जो अपने प्रजा से खुद को भगवान की तरह पुजा करवाना चाहता था। डर के मारे उसकी सारी प्रजा उसे पुजती थी लेकिन उसके खुद के पुत्र भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करता था। वो भक्त प्रह्लाद को बहुत बार समझाया लेकिन ना मानने पर उसे बहुत बार मारने की कोशिश करने लगा। हर बार भगवान विष्णु उसे आ कर बचा लेते थे।

    एक बार हिरण्यकशिपु की बहन थी होलिका जिसे वरदान में एक चादर मिला था जिसे ओढ़ने के बाद आग में उसे कोई नुक्सान नहीं पहुंचा सकता था। हिरण्यकशिपु के कहने पर भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर होलिका आग में बैठ गई। भगवान विष्णु की कृपा से चादर उड़ कर भक्त प्रह्लाद को ढक दिया और होलिका उस दिन जल कर मर गई। बस उसी दिन से होलिका दहन मनाया जाने लगा।

     तब से हर साल हम लोग होलिका की चिंता तैयार करते हैं जिसमें कचड़ा, झाड़, लकड़ी सब डाल का आग लगाते हैं। यह गांव के चौराहे पर मनाया जाता है। होलिका दहन के कुछ टोटके होते हैं जो आपको अगले पोस्ट में बताएंगे। इस टोटके को करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।‌

     राधा कृष्ण के प्रेम की होली सबसे सुहावनी लगती है। बरसाने, मथुरा वृन्दावन में होली के दिन एक‌ अलग माहौल ही रहता है। वहां की लट्ठमार होली हो या बरसाने की रंगपंचमी देखते ही बनती है। 

     हमारे महादेव की होली तो राख और श्मशान घाट में मचती है। मसाने की होली महादेव खेलते, उन्हें चिंता भस्म की होली पसंद है।


        होली पर खान पान.....

   होली बस रंगों का त्योहार नहीं है खाने पीने का भी त्योहार है। देश के अलग अलग हिस्सों में होली के दिन अलग अलग खाना बनता है। इस दिन मालपुआ, गुझिया, दही बड़ा, ठंडई, दाल कचौड़ी, खुरचन, आलू टिक्की, टिक्की चाट और भी बहुत तरह के पकवान बनाए जाते हैं। आपके यहां क्या बनता है होली स्पेशल कमेंट कर अवश्य बताएं।‌

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