चैत्र नवरात्र 2022- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

       2 अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरू हो चुका है, कल नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्री की पूजा का दिन था आज नवरात्र का दूसरा दिन यानी 3 अप्रैल को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का दिन है। नवरात्र के नौ दिन माता का नौ रूप अलग अलग पूजा और मनोकामना के लिए करते हैं जैसे माता का ब्रह्मचारिणी रूप हमें बुद्धि और ज्ञान देती है। यह माता का सौम्य रूप में जिसमें माता ब्रह्म मतलब तप या तपस्या, ब्रह्मचारिणी मतलब तप को आचरण करने वाली। मां के इस रूप की पूजा करने से संयम, शांति, वैराग्य, सदाचार जैसे गुण मिलते हैं।


      मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कैसे करें...

    सुबह स्नान ध्यान कर पूजा पर बैठे‌। सफेद या पीला वस्त्र पहने। पूजा के लिए अक्षत, रोली, मिश्री, फूल, लौंग, इलायची, अगरबत्ती, धुप, अग्नि, लाल आसन  बैठने के लिए, माला,‌‌‌ कच्चा दूध या दूध से बनी मिठाई, शक्कर पंचामृत सब रख लें।

       सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें , फिर कलश,  दशदिक्पाल, नवग्रह, नगर देवता, ग्राम देवता , ये सब पूजा आपको रोज करना होगा, फिर माता को फूल चढ़ाएं मां ब्रह्मचारिणी को लाल गुल्हर, चमेली फूल या कमल का फूल बहुत पसंद हैं। फिर रोली, अक्षत, तिल, लोंग, इलाइची अर्पित करें। दूध या पंचामृत से स्नान कराएं, फिर गंगा जल से स्नान कराएं। माता के सामने दिया, अगरबत्ती जलाएं। माता को प्रसाद के रूप में दूध, शक्कर, पंचामृत का भोग लगाएं। माता को हमेशा सात्विक प्रसाद अर्पित करें।‌‌‌‌‌फिर दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा पाठ करें।       

      मां ब्रह्मचारिणी की कथा....


     ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली। इनके एक हाथ में तप की माला और दूसरे में कमंडल होती है। छात्र और तपस्या करने वालों के लिए इनकी पूजा बहुत फलदाई होती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से चंद्रमा मजबूत होता है।

        एक कथा के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी पूर्वजन्म में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म ली थी। वो माता सती ही थी जो अग्निकुंड में भस्म हो गए थे। वो इस जन्म में भी भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी। नारद जी ने भी इनको कहा तो ये भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या करने जंगल में चली गई। हजारों साल तक देवी ने कड़ी तपस्या की और अन्न त्याग कर जंगल के फूल और बिल्व पत्र खाएं। कुछ समय बाद वो सब भी खाना छोड़ निर्जल और निराहार रहने लगी। फिर सारे देवी-देवताओं और ऋषि मुनि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव से विवाह करने का वरदान दिया।

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