महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ये मंत्र जाप करें

       महाशिवरात्रि पर हर‌ तरफ बम भोले का जयकारा गुंजते रहता है। बाबा भोलेनाथ जितना जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं उतना कभी कभी देर भी लगा देते हैं। जब गुस्सा करते हैं तो कामदेव को भस्म भी कर‌ देते और प्रसन्न होते तो रावण को अपना आत्मा भी देने में देर ना करते। भगवान शिव की तपस्या बहुत ऋषि मुनियों ने सालों साल की, रावण ने अपना दस सिर भी‌ चढ़ा दिया। भगवान प्रसन्न हो वर भी दे देते हैं।

       भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मंत्र जाप करना चाहिए। कम से कम रोज 11 या 21 बार नहीं तब 51000 भी‌ कर सकते। ज्यादा करने से कोई नुक्सान नहीं कम करने से भी कोई दिक्कत नहीं बस‌ मन से करना चाहिए। हम इस पोस्ट में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कुछ मंत्र बता रहे हैं जिन्हें अवश्य पढ़ें और भगवान से मनोकामना पूरी का आशीर्वाद लें।

महाशिवरात्रि 2022 कब है शुभ मुहूर्त जानें

       भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ये मंत्र जप करें...

        महामृत्युंजय मंत्र का जाप....

      ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धनम।
        उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

      रावण स्त्रोत... रावण का यह मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि में अवश्य पढ़ें....ये मंत्र पढ़ने में थोड़ा मुश्किल होता है इसलिए मैं इस मंत्र को सन्धि विच्छेद कर यानी अलग अलग कर आसानी से पढ़ने लायक बना‌ आपके लिए लायी हुं। एक बार अवश्य पढ़ें....

         रावण रचित शिव तांडव स्त्रोत....

      
     जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावि-तस्थले
    गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां भुजंग-तुंग-मालिकाम
     डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं
     चकार-चंड-तांडवं तनोतु न: शिव: शिवम् ।।१।।

     जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमण्-निलिम्प निर्झरी-
     विलोल-वीचि-वल्लरी-विराज-मान-मूर्धनि
     धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके
      किशोर-चंद्र-शेखरे रति: प्रति-क्षणं मम।।२।।

    धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धू-बन्धुर
    स्फुरद्-दिगन्त-संतित-प्रमोद-मान-मानसे
    कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरूद्ध-पदि-क्वचिद्
    दिगम्बरे मनो विनोद-मेतु- वस्तुनि ।।३।।

      जटा-भुजंग-पिड़गल-स्फुरत-फणा-मणि-प्रभा-
     कदम्ब-कुड़्कुम-द्रव-प्रलिप्त-दिग्वधू-मुखे
      मदान्ध-सिंधुर-स्फुरत्-त्वगुत्त-रीय-मेदुरे
     मनो विनोद-मद्भुतं बिभर्तु भूत-भर्तरि ।।४।।

       सहस्त्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
      प्रसुन-धूलि-धोरणी-विधू-सराड़्ध्रि-पीठभू:
     भुजंग-राज-मालया-निबद्ध-जाट-जूटक:
    श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु-शेखर:।।५।।

      ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धनंजय-स्फुलिड़गभा
    निपीत-पंच-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्
     सुधा-मयुख-लेखया विराज-मान-शेखरं
    महा-कपालि-सम्पदे शिरो जटाल-मस्तु न:।।६।।

    कराल-भाल-पट्टिका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्
    धनंजया-हुती-कृत-प्रचंण्ड-पंच-सायके
     धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-प्रकल्प
     नैक-शिल्पिनी-त्रिलोचने रतिमर्म।।७।।

      नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत
     कुहु-निशीथिनी-तम:-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धर:
     निलिम्प-निर्झरी-धरस्-तनोतु कृत्ति-सिन्धुर:
     कला-निधान-बन्धुर: श्रियं जगद् धुरंधर:।।८।।

       प्रफुल्ल-नील-पंकज-प्रपंच-कालिम-प्रभा
      वलिम्ब-कंठ-कंदली-रुचि-प्रबद्व-कंधरम्
      स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं 
     गजच्छि- दांध-कच्छिदं जयंत कच्छिदं बजे।।९।।

     अखर्व-सर्व-मंगला-कला-कदम्ब-मंजरी
     रस-प्रवाह-माधुरी-विजृम्भणा-मधु-व्रतम्
     स्मारान्तकं-पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
     गजान्त-कांध-कांतकं-तमन्त-कान्तकं भजे।।१०।।

     जयत्-वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद्-भुजंग-मश्वस
     द्विनिर्गमत्-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट्
     धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन्-मृदंग-तुंग-मंगल
      ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचंड-तांडव:शिव:।।११।।

     दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-भुजंग-मौक्ति-कस्त्रजोर्
     गरिष्ट-रत्न-लोष्ठयो: सुहृद-विपक्ष-पक्ष-यो:
     तृणारविन्द-चक्षुषो: प्रजा-मही-महेंन्द्रयो:
    सम-प्रवृत्ति-क:-कदा-सदा-शिवं-भजाम्यहम्।।१२।।

      कदा-निलिम्प-निर्झरी-निकुंज-कोटरे-वसन्
     विमुक्त-दुर्मति: सदा शिर:स्थ-मंजलिं वसन्त
     विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नक:
     शिवेति मंत्र मुच्चरण कदा सुखी भवाम्यहम्।।१३।। 

       इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुक्त-मोत्तमं स्तवं
      पठन् स्मरन् ब्रुवन-नरो विशुद्धि-मेति सन्ततम्
      हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं विमोहननं
      हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्।।१४।।

      पुजा वहां समये दश वक्त्र गीतं
     य: शम्भु-पूजन-परं-पठति-प्रदोषे।
     तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र-तुरंग-युक्तां
     लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भु:।।१५।।
      

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