कुंभ में आने वाले नागा साधुओं के बारे में जानें

       कुंभ मेला 2021 का भव्य आयोजन हरिद्वार में 14 जनवरी से शुरू हो गया है। कुंभ स्नान में सबसे प्रमुख स्नान होता है शाही‌ स्नान। शाही स्नान 11 मार्च महाशिवरात्रि से शुरू हो रहा है और 27 अप्रैल तक ये चलेगा। जानें कब कब है शाही स्नान इस‌ शाही स्नान में सबसे महत्वपूर्ण अखाड़ा परिषद और नागा साधुओं का‌ स्थान होता है। 

हरिद्वार के आसपास के दर्शनीय स्थल

       कुंभ स्नान में शाही स्नान का विशेष महत्व होता है। इस शाही स्नान में शाही अंदाज में ही स्नान किया जाता है। 13 अखाड़े है उन सब‌ के मठाधीश है शाही स्नान के दिन तेरहों अखाड़े के साधु संत और नागा साधु स्नान ‌करने आते हैं। सब हाथी, घोड़े और बैंड बाजा सब लेकर आते हैं।‌ अखाड़ा के बारे में आगे चर्चा करेंगे। अभी नागा साधु के बारे में विस्तार से जानते हैं।‌ उन सब अखाड़े में आप पुरा शरीर भस्म लगाएं नागा साधुओं को देखते होंगे। हम इस पोस्ट में उनके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और अगली पोस्ट में अखाड़ा क्या होता, कैसे बनता ये सब जानेंगे।‌ आप सब बस बने रहे हमारे साथ..

        आप इन नागा साधुओं को कुंभ मेला में ही देखते होंगे। आपके मन में अवश्य ये सवाल उठता होगा कि फिर ये सब गायब कहां हो जाते हैं। ये नागा बनते क्यों हैं, इनका जीवन कैसा होता होगा, इनके खाने रहने सब के बारे में हम बात करेंगे। नागा की लाल लाल घुरती आंखें ना जाने कितने राज छुपाए रखती है। ये बिना मतलब किसी को ना देखते ना किसी से बोलते, चुपचाप अपना डमरू, त्रिशूल लिए स्नान करते फिर अपने जगह चले जाते हैं।

      नागा साधु बनने की परंपरा ‌क्यो शुरू हुई.....


      नागा साधु बस साधु नहीं होते हैं। ये एक ट्रेंड सैनिक होते हैं। इन्हें हर हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है। लेकिन उसका दुरुपयोग कभी नहीं करते हैं। सबसे पहले जानते हैं ये नागा साधु बनते क्यों हैं। हमारे देश पर समय समय पर कुछ विदेशी ताकत आक्रमण करती रही है आम आदमी उससे लड़ने में सक्षम नहीं थे तो आदिगुरु शंकराचार्य ने नागा साधुओं का एक जत्था तैयार किया। जहां उनकी जरूरत होती है ये चुपचाप आते हैं अपना काम कर फिर गायब....

        कुंभ स्नान के बाद फिर ये नागा साधु कहां गायब हो जाते हैं......


         आप कुंभ मेला में बहुत सारे साधु देखते हैं लेकिन फिर ये कम ही दिखाई देते हैं। इसका कारण यह है कि कुंभ स्नान के बाद ये सब हिमालय या जंगल, पहाड़ आदि में तपस्या करने चले जाते हैं। माना जाता है कि इनके पास एक शक्ति होती है जिससे इन्हें दुसरे साधु जिसे कोतवाल कहते हैं, यह कोतवाल हर अखाड़ा में होता है जो इन नागा साधु और अखाड़े के महामंडलेश्वर के बीच ताड़ का काम करते हैं। जब जब इन नागा साधुओं की जरूरत होती है तो उन तक संदेश पहुंचा देते।

अखाड़ा क्या है और इसका इतिहास

      ये नागा साधु हिमालय में जा कर तपस्या करते, जड़ी बूटी खोजते हैं। वहीं गुफा में निर्वस्त्र हो कहीं तपस्या करते रहते इन्हें ठंड, गर्मी का कोई असर ना होता। भूख प्यास जंगली कंद मूल खा मिटा लेते। कभी कभी भेष बदलकर ये एक जगह से दूसरी जगह चले जाते हैं। ये अक्सर रात में ही निकलते, जंगल होकर ज्यादा जाते हैं। कही जमीन पर सो गए, किसी से कोई बात नहीं अपने में रमे रहते। ये काशी, उत्तराखंड, हिमाचल, गुजरात आदि जगहों पर आपको दिख जाएंगे।

       नागा साधु बनते कैसे है.....

 

      नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल होती है। ये हर कोई नहीं बन सकता है। नागा साधु बस अनपढ़, गंवार नहीं होते बड़े बड़े डॉ, इंजीनियर भी कभी कभी नागा साधु बन जाते हैं। इसके लिए पहले उनको अपने अखाड़े की सेवा करनी होती जब उनको लगता अब ये तैयार है तो अखाड़े के गुरु उस व्यक्ति को गंगा तट पर ले जाते हैं। नागा बनने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले उनको एक मौका दिया जाता है कि वो अपने परिवार में लौट जाएं।


       नागा साधु बनने से पहले उनको 6 साल तक बस लंगोट में रखा जाता है। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है जब अखाड़े के गुरु को विश्वास हो जाता इनका अपने इंद्रियों पर पूर्ण काबू हो गया है तब वो उनको गंगा तट लें जाते हैं और सबसे पहले पिंडदान अपना और अपने परिवार का करने के लिए कहते हैं। पिंडदान के समय उनका गोत्र, परिवार, सारे संस्कार( पूर्व जन्म के, नागा साधु बनना नया जन्म माना जाता) वहीं गंगा में विसर्जित कर दिया जाता है। 


     तब उन्हें एक ऐसी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता जो अत्यंत दर्द भरा होता है।‌ जिसे संतोड़ा कहा जाता है मतलब इनकी इंद्री तोड़ दी जाती है। जिसे निपुण अखाड़े के साधु ही करते हैं।‌फिर पुरी रात ऊं नमः शिवाय का जाप करते हैं।फिर गंगा में 108 डुबकी लगाई जाती है। गंगा स्नान से निकल कर इन्हें दंडी त्याग कराया जाता है। ये सब प्रक्रिया अखाड़े के ध्वज के नीचे होती है। इन्हें फिर जनेऊ दिया जाता, शिखा काट गंगा जल में प्रवाहित कर फिर चिंता भस्म लगाया जाता, हवन भस्म, रूद्राक्ष माला, त्रिशूल देते तब ये पूर्ण रूप से नागा साधु बन जाते हैं।


       हरिद्वार में नागा साधु बनने की प्रक्रिया को बर्फानी, नासिक में बनने पर खिचड़िया, प्रयाग में बनने पर नागा को राज राजेश्वरी और उज्जैन में बनने पर खुनी नागा कहा जाता है।


      अब अगले पोस्ट में आपको अखाड़े के बारे में बताने वाले हैं। आपको मेरा पोस्ट कैसा लगा कमेंट कर अवश्य बताएं। शेयर और सब्सक्राइब करें। यात्रा संबंधी जानकारी चाहते हैं तो मेरे इस ब्लाग पर अवश्य जाएं।भारत में मंदिर से जुड़े यात्रा

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