वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त....
अमावस्या शुरू - 29 मई 2022 रविवार दोपहर 2.54 से शुरू
अमावस्या समाप्त - 30 मई 2022 सोमवार शाम 4.59 तक
इसलिए 30 मई सोमवार को वट सावित्री व्रत रखा जाएगा।
वट सावित्री पूजा का महत्व....
हिंदू धर्म के अनुसार वट वृक्ष में भगवान विष्णु, भगवान शिव और ब्रह्मा जी का वास होता है। भगवान विष्णु वट वृक्ष के तना जटाओं में, ब्रह्मा जी जड़ में और भगवान शिव वट वृक्ष के ऊपरी भाग में स्थित है। इस पेड़ की मन से पूजा करने पर सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। जब सत्यवान की मृत्यु हो जाती है तो माता सावित्री इसी पेड़ के नीचे बैठ यमराज से सत्यवान को वापस लाई थी।
वट सावित्री की पूजा विधि ....
अभी कोरोना काल है वट सावित्री पूजा में भीड़ में ना
ही जाएं तो अच्छा है, इसमें वट वृक्ष की पूजा होती है इसलिए पुजा के एक दिन पहले ही या फिर उसी दिन सुबह सुबह वट वृक्ष का एक डाल लेकर चलें आएं घर में किसी गमले में उसे लगा उसकी पूजा करें। भीड़ में ना जाएं ये आपकी और आपके परिवार के लिए फायदेमंद होगा।
अब घर में उस पेड़ की डाल लगा, उसके नीचे गोबर से लीप दें या अच्छी तरह धो लें जमीन को सुख जाए तो उसपर रंगोली बना सकते हैं । अब महिलाएं सज संवर कर सूर्योदय के समय पहले जल दें। वो भगवान सुर्य को जल दें, फिर भगवान ब्रह्मा,विष्णु, महेश को स्मरण कर वट वृक्ष में जल दें।
एक बांस की टोकरी में सावित्री सत्यवान की मूर्ति, कच्चा धागा, भींगा चना, गुड़, आंटा या सत्तू सना हुआ कच्चा आम, लीची, फूल, बांस का पंखा, अक्षत, चंदन, रोली, बिन्दी, सिंदूर सब रख लें। अब बट वृक्ष को पति मान उनकी पूजा करें। वट वृक्ष का एक पत्ता तोड़ सर में खोंस लें। मतलब बाल में जुड़ा में बांध लें।
जल देते हुए कहें- अवैधव्यं च सौभाग्यं देही त्वं मम् सुव्रते
पुत्राण पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणाध्र्य नमोस्तुते.
जल दें ही दिए हैं। अब पेड़ में पांच जगह आंटा या सत्तू चिपका दें। उसपर सिंदूर लगाएं। अब मौली की धागा उसमें चिपकाते हुए 7 फेरे ले हर फेरे में एक चना वहां डाल दें। अब वहां एक और वट वृक्ष का पत्ता तोड़ उस पर 5 जगह चना, गुड़, लीची,अक्षत, चंदन, सब रख जल चढ़ाएं। जल मीठा हो तो और अच्छा क्योंकि आप अपने पति के लिए सब रख रहे।
हर फेरे के साथ उस पेड़ के गले मिले। फिर सब कुछ कर पंखे से उस वट वृक्ष को हवा दे। अपने पति की लंबी उम्र की कामना करें। इन मंत्रों का जाप करें....
वट सावित्री की कथा....
पौराणिक कथा के अनुसार मद्र देश के एक बड़े राजा थे जिनका नाम अश्वपति था, उनको बहुत दिन तक संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ था। तब उन्होंने माता सावित्री की पूजा की सौ यज्ञ किए, तब उनके घर में एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ। जिनका नाम उन्होंने माता सावित्री के नाम कर सावित्री रखा। वो कन्या रूप की धनी थी।
कन्या जब बड़ी हुई तो राजन् को उनके विवाह की चिंता होने लगी। मन लायक कहीं वर मिल नहीं रहा था तब राजा ने खुद सावित्री को वर चुनने के लिए भेज दिया। सावित्री को साल्व देश के राजकुमार सत्यवान पसंद आ गया। सावित्री ने राजा अश्वपति को बताया तो वो भी शादी के लिए तैयार हो गये। तभी नारद मुनि आएं उन्होंने कहा सत्यवान शादी के 12 वर्ष बाद ही मृत्यु को प्राप्त होगा।
सावित्री फिर भी डटी रही शादी सत्यवान से ही करना है। राजा ने सावित्री की शादी सत्यवान से करा दिया। शादी के कुछ दिन सावित्री पति और सास ससुर समेत जंगल में रहने लगे। वहां पुजा पाठ करने लगी। पति धर्म का निर्वाह सच्चे मन से करती थी। जब मौत का समय नजदीक आया यमराज सत्यवान को लेने आए वो भी यमराज के पीछे पीछे चल दी।
सत्यवान की मृत शरीर को वहीं वट वृक्ष के नीचे रख कर। वो यमराज के पीछे चल दी। यमराज सावित्री की निष्ठा से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तब सावित्री ने कहा मैं सौ पुत्रों की मां बनुं। यमराज तथास्तु कर जाने लगे सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी, यमराज बोले हे देवी अब क्या चाहिए । बोली सौ पुत्रों का वरदान दे दिये पति वापस करेंगे तब ना बस यमराज उनकी बुद्धि मत्ता से प्रसन्न हो उनको राज पाठ और पति के साथ खुश रहने का आशीर्वाद दिया।
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