होली का त्यौहार आते ही मन में रंग उमंग करने लगते हैं। होली वैसे तो फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है लेकिन होली खेलना लोग सरस्वती पूजा से ही कर देते। सरस्वती पूजा के विसर्जन से जो गुलाल अबीर होता है वो रामनवमी पर खत्म होता है। हम लोग के यहां तो होली के एक महीने पहले या एक महीने बाद जो भी बारात या कुटुंब आते थे उनको रंग में सराबोर कर देते, लोग इसका बुरा नहीं मानते थे वो भी इंजाय करते होली को। लेकिन आज कल होली बहुत सेपरेट हो गई, कोई रंग दे तो लोग बुरा मान जाते और मारने को उतारू हो जाते। लेकिन गांव में तो अब भी वहीं होली, कीचड़, मिट्टी, नाले वाली होती और जो मजेदार भी होती है। आज इस पोस्ट में होली कब है और होलिका दहन का शुभ मुहूर्त बताने जा रहे हैं...
होली कब है....
होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस बार फाल्गुन पूर्णिमा 9 मार्च को सुबह 03.03 में शुरू होकर रात 11. 16 में समाप्त होगी। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 06.28 से 08.09 तक है। रंगवाली होली 10 मार्च को खेली जाएगी।
होलिका दहन की पूजा में रक्षा सुक्त पाठ किया जाता है। होलिका दहन में पुुुआ, पकवान, गेहूं और चना की नई बालियां दी जाती है। गाांव के चौराहे पर गोबर के उपले, लकड़ी, घास सब डाल कर होलिका सजाते हैं। कुछ लोग किसी का खाट, झोपड़ी या घर का सामान बाहर में रहता वो होलिका में डाल देते जो गलत है बिना किसी से पुछे नहीं जलाना चाहिए। इसमें हम बुराई जलाते ना कि कोई सामान जला किसी का अहित करते।
होलिका दहन की पूजा में रक्षा सुक्त पाठ किया जाता है। होलिका दहन में पुुुआ, पकवान, गेहूं और चना की नई बालियां दी जाती है। गाांव के चौराहे पर गोबर के उपले, लकड़ी, घास सब डाल कर होलिका सजाते हैं। कुछ लोग किसी का खाट, झोपड़ी या घर का सामान बाहर में रहता वो होलिका में डाल देते जो गलत है बिना किसी से पुछे नहीं जलाना चाहिए। इसमें हम बुराई जलाते ना कि कोई सामान जला किसी का अहित करते।
होली क्यों मनायी जाती है...
हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था जो अपने आप को भगवान कहता था। वो अपने प्रजा को कहता था कि मेरी पूजा करो, जो नहीं करता उसको मारता था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम ध्रुव था, वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था, हिरण्यकश्यप उसको भी बोला भगवान विष्णु की पूजा छोड़ देना लेकिन वो पूजा करता रहा। जिस कारण वो अपने पुत्र को भी मारने का बहुत प्रयास किया।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का भगवान के तपस्या से एक ऐसा चादर मिला था जिसे ओढ़ने पर उस पर आग का असर नहीं होगा। हिरण्यकश्यप ने होलिका को कहा तुम ध्रुव को लेकर उस आग में बैठ जाओ तुम चादर ओढ़ लेना तुम बच जाओगे और ध्रुव जल कर मर जाएगा। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से चादर उड़ कर ध्रुव को ढक लिया और होलिका जल कर मर गई। अच्छाई का बुराई पर जीत हुआ इस खुशी में होली मनाने का प्रथा शुरू हुआ।
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