अनंत चतुर्दशी कब है और इसका महत्व जानें

     अनंत चतुर्दशी यह भादो मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है, और अपने बांह पर धागा बांधा जाता है जिसे रक्षा सूत्र भी कहते हैं। इसे बांधने से सारे‌ दुख दूर हो जाते हैं। इस दिन 10 दिन से रह रहे गणपति बप्पा को विसर्जित किया जाता है। अगले साल जल्दी आने की कामना के साथ उन्हें विदा किया जाता। महाभारत में जब पांडव को वनवास मिला‌ तो भगवान कृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी करने को कहा जिससे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। यह व्रत करने से दरिद्रता दूर होती है। दुर्घटनाओं और बिमारियों से निजात मिलता है।

       अनंत चतुर्दशी कब है

   यह 12 सितंबर को है। यह 12 सितंबर सुबह 5.06 से 13 सितंबर 7.35 तक है। यह कोई सामाजिक पूजा नहीं है यह व्यक्तिगत पूजा है। बहुत लोग खुद ये पूजा कर लेते बहुत लोग पंडित जी को बुला कर‌ पूजा करवाते हैं। मेरे यहां पंडित जी आते हैं। 7-8 बजते बजते पंडित जी आ जाते। हमारे गांव में ‌‌‌‌सभी के यहां ये पूजा होता है।

      इस पूजा में जो धागा बांधा जाता है उसमें 14 गांठ होती है। महिलाएं वो धागा बांए बाजू में और पुरुष दाहिने बाजू में बांधते हैं। ये 14 गांठ भगवान विष्णु के 14 लोकों का प्रतीक है- अतल, वितल, रसातल, सुतल, पाताल, तलातल, भू, भुवः ,स्वः, सत्य, तप, जन, मह और तल। अनंत चतुर्दशी में सत्यनारायण कथा के जैसे ही पूजा होती है।

      अनंत चतुर्दशी की कथा

     पौराणिक कथा के अनुसार एक थेऋषि हुआ करते थे उनका नाम सुमंत था। उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उनकी एक पुत्री हुई जिसका नाम सुशीला था, अपने नाम के अनुरूप ही वह बहुत सुशील और शांत थी। सुशीला थोड़ी बड़ी हुई तो उसकी मां का देहांत हो गया। अब ऋषि सुमंत को उसकी चिंता सताने लगी, बिना मां की बच्ची कैसे पलेगी।।

    इस कारण उन्होंने दुसरी शादी कर ली उसका नाम कर्कशा था। अपने नाम का गुण उसमें कुट कर भरा था हमेशा किच किच कड़ते रहती। सुशीला को भी बुरा भला कहते रहती। सुमंत ऋषि सुशीला के दुख से दुखी होते लेकिन क्या कर सकते थे,कर्कशा उनकी भी कोई बात नहीं मानती। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी शादी कौन्डिन्य ऋषि के साथ कर दी।

     कौन्डिन्य ऋषि वहीं सुशीला के माता पिता के साथ रहने लगे। लेकिन कर्कशा के स्वभाव के कारण उन्हें वहां से जाना पड़ा। दोनों वन वन भटक रहे थे। काम कर तलाश में इधर-उधर घूम रहे। एक दिन घुमते घुमते जंगल पहुंचे, वहां उन्होंने देखा कि बहुत ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ सारी स्त्री पूजा कर एक दूसरे के हाथ में ‌‌‌‌‌‌‌‌धाग बांध रही है। 

     सुशीला गई तो सबसे पूछा तो इस व्रत करने से सभी दुख दूर होते हैं। वो भी कथा सुनी और धागा बांधी, धीरे धीरे उसके दिन बिफड़ने लगे। काम मिलने लगा और उनके सारे दुख दूर हो गया। इस बात से कौन्डिन्य ऋषि को घमंड हो गया था। एक साल बाद फिर अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत की पूजा कर सुशीला आई तो कौन्डिन्य ने हाथ में बंधे धागा के बारे में पुछा तो बोली इसी कारण तो हम लोग ऐसे अमीर हुए।

    इस बात से कौन्डिन्य ऋषि को बहुत जोर से गुस्सा आया। उन्होंने कहा ये सब मेरे मेहनत के कारण है और हाथ से धागा खोल फेंक दिया। भगवान अनंत को अपमान करना अच्छा नहीं लगा। एक साल होते होते कौन्डिन्य ऋषि की हालत फिर वैसी हो गई या उससे ज्यादा ही बूरी हो गई।‌ तब उन्हें एक प्रतापी ऋषि मिले उनके दुख का कारण बताया और बोला 14 सालों तक अनंत चतुर्दशी का व्रत करें। इससे आपके दुख दूर हो जाएंगे। उन्होंने नियम कर्म से पूजा की फिर वो खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगे।

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