नागपंचमी कब है और इसका महत्व जानें

    सावन महीने बाबा भोले का महीना है, इसमें बाबा की पूजा बहुत जोर शोर से की जाती है। इसी महीने बाबा के नाग की पूजा भी की जाती है। नागपंचमी सावन के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों के पंचमी तिथि को होती है। इस बार कृष्ण पक्ष की पंचमी 22 जुलाई को और शुक्ल पक्ष की पंचमी 5 अगस्त को है। संयोग है इस बार दोनों नागपंचमी सोमवार को ही पड़ रहा है।


     नागपंचमी बिहार, झारखंड उत्तर प्रदेश, बंगाल ये सब जगह धुम धाम से मनाया जाता है। बिहार में तो बहुत जगह मेला भी लगता है। बिसहरी स्थान मतलब जहां नागों की पूजा होती है वहां इसका महत्व बहुत है। इस दिन सांप को दूध और धान का लावा चढाया जाता है।

    भगवान शिव के गले में नाग विराजते हैं और भगवान विष्णु का शैय्या है नाग। इसके पूजा का तो महत्व इसी से बढ़ जाता है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने कालिया नाग को इसी दिन हराया था। बचपन में जब नदी किनारे वो खेल रहे थे तो कालिया नाग सब गांव वालों को परेशान कर रखा था,बस नदी में कुद कर उन्होंने उसके फन पर नाच उसको हराया उस जीत को नागपंचमी मनाते हैं।

    एक कथा के अनुसार राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से हुई थी। उनके बेटे जन्मजेय ने इसका बदला लेने के लिए पुरे नागवंश को ही खत्म करने का प्रण लिया। जिसके लिए उन्होंने नाग यज्ञ करना शुरू किया। तब ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने इसे रोका। इस दिन सावन शुक्ल पक्ष का पंचमी तिथि था। तक्षक नाग सहित पुरे सांपों का वंश बच गया इसलिए इस दिन नाग पंचमी मनाने की परंपरा शुरू हुई।

    इस दिन धरती की खुदाई नहीं करना चाहिए। इस दिन किसी सांप को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाना चाहिए। घर के प्रवेश द्वार पर नाग के चिन्ह बनाने चाहिए। दूध और धान का लावा शिवमन्दिर या सपेरे को देना चाहिए।
   

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