सावन शुरू हो चुका है और सावन में देवघर का विश्व प्रसिद्ध मेला भी शुरू हो गया। यह महीना बाबा भोलेनाथ का है,हर साल सावन में कांवर लेकर लाखों लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर बाबा को जल चढ़ाने आते हैं। बिहार सुल्तानगंज से कांवर जल भर कर पैदल झारखंड बाबाधाम देवघर आते हैं। 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा 2-3 दिन में पुरी करते हैं।
पुरे रास्ते सरकारी और निजी सुविधा उपलब्ध रहती है। हर थोड़ी दूर पर पानी, भोजन, रहने की सुविधा। मेडिकल सुविधाएं भी उपलब्ध रहती है। रास्ते भर कृत्रिम बारिश की सुविधा है, सड़क को भी पैदल चलने लायक किया गया है। अभी पुरे रास्ते लाइट की व्यवस्था है कि लोगों को किसी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े।
कहा जाता है सबसे पहले भगवान राम ने कांवर यात्रा की थी, तब से यह प्रचलन है। पुरे रास्ते बोल बम के नारे से गुंजायमान रहती है। पैदल कांवरियों को बम कहा जाता है जो बम थक कर बैठ जाते हैं दुसरे बम उनका सहारा बन मनोबल बढ़ाते चलते हैं। 105 किलोमीटर का रास्ता आसानी से कट जाता है।
हर जगह सीसीटीवी कैमरे, एलईडी लाइट से सजा देवघर, पुरा शहर भगवा रंग में रंगा गया है। देवघर में जल चढ़ा कर फिर वासुकीनाथ जाते हैं। सुल्तानगंज से चल कर फिर 2-3 दिन में देवघर पहुंचते तब शिव गंगा में संकल्प कर लाइन लगते जो नंदन पहाड़, बरमसिया होते हुए बाबा मंदिर पहुंच जल चढ़ाते हैं।
इस समय बाबा के मंदिर में अभी अर्घा लग जाता है भीड़ के कारण। जगह जगह पर बड़ा बर्तन रख दिया जाता है कि जो थक गए या कष्ट में है तो उस बर्तन में डाल दिजिए और वो बर्तन फिर बाबा पर चढ़ा दिया जाता है। फिर पुजा कर प्रसाद मे चुड़ा, पेरा, इलाइची दाना सब खरीद कर ले जाते।
पुरे रास्ते सरकारी और निजी सुविधा उपलब्ध रहती है। हर थोड़ी दूर पर पानी, भोजन, रहने की सुविधा। मेडिकल सुविधाएं भी उपलब्ध रहती है। रास्ते भर कृत्रिम बारिश की सुविधा है, सड़क को भी पैदल चलने लायक किया गया है। अभी पुरे रास्ते लाइट की व्यवस्था है कि लोगों को किसी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े।
कहा जाता है सबसे पहले भगवान राम ने कांवर यात्रा की थी, तब से यह प्रचलन है। पुरे रास्ते बोल बम के नारे से गुंजायमान रहती है। पैदल कांवरियों को बम कहा जाता है जो बम थक कर बैठ जाते हैं दुसरे बम उनका सहारा बन मनोबल बढ़ाते चलते हैं। 105 किलोमीटर का रास्ता आसानी से कट जाता है।
हर जगह सीसीटीवी कैमरे, एलईडी लाइट से सजा देवघर, पुरा शहर भगवा रंग में रंगा गया है। देवघर में जल चढ़ा कर फिर वासुकीनाथ जाते हैं। सुल्तानगंज से चल कर फिर 2-3 दिन में देवघर पहुंचते तब शिव गंगा में संकल्प कर लाइन लगते जो नंदन पहाड़, बरमसिया होते हुए बाबा मंदिर पहुंच जल चढ़ाते हैं।
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द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा/ देवघर
इस समय बाबा के मंदिर में अभी अर्घा लग जाता है भीड़ के कारण। जगह जगह पर बड़ा बर्तन रख दिया जाता है कि जो थक गए या कष्ट में है तो उस बर्तन में डाल दिजिए और वो बर्तन फिर बाबा पर चढ़ा दिया जाता है। फिर पुजा कर प्रसाद मे चुड़ा, पेरा, इलाइची दाना सब खरीद कर ले जाते।
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