"मोह के धागे" कितना छोटा शब्द है लगता है ना लेकिन इसका मतलब कितना बड़ा होता है। कभी गौर किए हैं हम लोग इसी मोह के धागे से सबसे जुड़े रहते हैं। जब कभी इस धागे में गांठ पर जाती या टुट जाती तो तकलीफ नहीं होती। क्योंकि बहुत तकलीफ़ होती तब ही ये मोह के धागे टुटते है। कभी सुनते होंगे फलां आदमी का मरते मरते सबसे मोह टुट गया था। अब उसे मोक्ष मिल जाएगा। आइए इस मोह के धागे का एक उदाहरण देते...
आदमी का मोह- एक बूंद जब मां के गर्भ में जाता है तब एक शरीर की रचना होती है। मां को ये मोह उसी दिन से हो जाता है कि उसकी परछाई दुनिया में आ रहा। "मोह" पिता को भी होता है कि उसका अंश आ रहा। लेकिन शायद पिता अपनी जिम्मेदारी के कारण वो मोह के धागे जोड़ नहीं पाता। मां 9 महीने उस बीज की सेवा और सपनों का ऐसा मोहजाल बुन लेती कि वो उस जाल से अंतिम समय तक नहीं निकल पाती। एक समय के बाद शायद पिता वो मोह के धागे तोड़ लेते, लेकिन मां उस धागे से बंधी रहती।
बच्चा जब दुनिया में आ जाता सारी दुनिया से वो मोह में बंध जाता है। सबसे ज्यादा मां से बंधता है कि वो उसके आहार का जरिया है। फिर थोड़ा बड़ा होता स्कूल जाने लगता तो घर का मोह कुछ देर के लिए छुट जाता। कल तक जो बच्चा एक घंटा भी अपने माता-पिता से दूर नहीं जाना चाहता था अब शायद 4 घंटे के लिए वो मां से अलग हो जाता। पहला दिन रोता है फिर उस मोह के धागे में थोड़ी खिंचाव पड़ती और फिर बच्चे रोज जाने लगते।
बच्चा थोड़ा और बड़ा हो जाता अब और ज्यादा समय स्कूल में बिताने लगता,ये मोह के धागे में और खिंचाव आता। बच्चा उसके बाद काॅलेज और दोस्तों में रहने लगता तो ये मोह के धागे उसके लिए जंजीर लगने लगता। ये धागे अब तक बच्चों के तरफ से ही खींच रहे। मां बाप अभी भी उस मोह के धागे को उस पहली बूंद जितना ही लपेटे हुए है।
फिर बच्चे अपने काम की दुनिया में आ जाते वो धागे और तन जाते। मां बाप कभी रोक टोक दे तो व़ो उस मोह के जंजाल से भागना चाहते। फिर शादी हो जाती उस बच्चे का मोह अब अपने परिवार से जुड़ जाता। मां बाप अभी भी उसको अपने धागे में बांध कर रखना चाहते हैं। लेकिन वो बच्चा भी अपनी जरूरतों और जिम्मेदारी के चलते शायद अपने मोह के धागे तोड़ लेता है मां बाप से।
मां बाप को बच्चा अभी भी वहीं लगता है जैसे वो जन्म के समय था। जिसे दुनिया की कोई समझ नहीं है, लेकिन बच्चे भी अब तक ठोकरें खाते-खाते दुनिया को समझ चुके होते। शायद यहां मां बाप गलत होते हैं उन्हें अपने बच्चों के मन की करने देनी चाहिए। वो भी तो दुनिया देखे, लेकिन ये मोह के धागे ऐसे होते हैं ना कि बच्चों को छोड़ने देते ही नहीं।
बच्चा बड़ा होकर अपने परिवार से जैसे जैसे वो धागा मजबूत करता इधर मां बाप से जुड़े धागे टुटने लगते। और एक दिन आता मां बाप भी अपने उस धागे को तोड़ देते उनको लगता बच्चा मेरे साथ गलत कर रहा। लेकिन उनका सोचना शायद गलत है।
आपको कैसा लगा मेरा ये पोस्ट कमेंट जरुर करें..आगे तब और कुछ इस बारे में लिखेंगे।
आदमी का मोह- एक बूंद जब मां के गर्भ में जाता है तब एक शरीर की रचना होती है। मां को ये मोह उसी दिन से हो जाता है कि उसकी परछाई दुनिया में आ रहा। "मोह" पिता को भी होता है कि उसका अंश आ रहा। लेकिन शायद पिता अपनी जिम्मेदारी के कारण वो मोह के धागे जोड़ नहीं पाता। मां 9 महीने उस बीज की सेवा और सपनों का ऐसा मोहजाल बुन लेती कि वो उस जाल से अंतिम समय तक नहीं निकल पाती। एक समय के बाद शायद पिता वो मोह के धागे तोड़ लेते, लेकिन मां उस धागे से बंधी रहती।
बच्चा जब दुनिया में आ जाता सारी दुनिया से वो मोह में बंध जाता है। सबसे ज्यादा मां से बंधता है कि वो उसके आहार का जरिया है। फिर थोड़ा बड़ा होता स्कूल जाने लगता तो घर का मोह कुछ देर के लिए छुट जाता। कल तक जो बच्चा एक घंटा भी अपने माता-पिता से दूर नहीं जाना चाहता था अब शायद 4 घंटे के लिए वो मां से अलग हो जाता। पहला दिन रोता है फिर उस मोह के धागे में थोड़ी खिंचाव पड़ती और फिर बच्चे रोज जाने लगते।
बच्चा थोड़ा और बड़ा हो जाता अब और ज्यादा समय स्कूल में बिताने लगता,ये मोह के धागे में और खिंचाव आता। बच्चा उसके बाद काॅलेज और दोस्तों में रहने लगता तो ये मोह के धागे उसके लिए जंजीर लगने लगता। ये धागे अब तक बच्चों के तरफ से ही खींच रहे। मां बाप अभी भी उस मोह के धागे को उस पहली बूंद जितना ही लपेटे हुए है।
फिर बच्चे अपने काम की दुनिया में आ जाते वो धागे और तन जाते। मां बाप कभी रोक टोक दे तो व़ो उस मोह के जंजाल से भागना चाहते। फिर शादी हो जाती उस बच्चे का मोह अब अपने परिवार से जुड़ जाता। मां बाप अभी भी उसको अपने धागे में बांध कर रखना चाहते हैं। लेकिन वो बच्चा भी अपनी जरूरतों और जिम्मेदारी के चलते शायद अपने मोह के धागे तोड़ लेता है मां बाप से।
मां बाप को बच्चा अभी भी वहीं लगता है जैसे वो जन्म के समय था। जिसे दुनिया की कोई समझ नहीं है, लेकिन बच्चे भी अब तक ठोकरें खाते-खाते दुनिया को समझ चुके होते। शायद यहां मां बाप गलत होते हैं उन्हें अपने बच्चों के मन की करने देनी चाहिए। वो भी तो दुनिया देखे, लेकिन ये मोह के धागे ऐसे होते हैं ना कि बच्चों को छोड़ने देते ही नहीं।
बच्चा बड़ा होकर अपने परिवार से जैसे जैसे वो धागा मजबूत करता इधर मां बाप से जुड़े धागे टुटने लगते। और एक दिन आता मां बाप भी अपने उस धागे को तोड़ देते उनको लगता बच्चा मेरे साथ गलत कर रहा। लेकिन उनका सोचना शायद गलत है।
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