दिसंबर से ही शुरू हुआ था 6 साल‌ पहले मौत का खेल

      दिसंबर 2019 एक देश जहां से मौत का खेल शुरू हुआ था देखते ही देखते पुरी दुनिया इसकी चपेट में आ गई थी। पुरी दुनिया कुछ समय के लिए थम सी गई थी आज भी वो समय याद कर रूह कांप जाती...हर जगह बस लाश ही लाश दिखती थी, यह दुनिया की सबसे बड़ी महामारी में गिना जाने लगा, कितना लोग मरे इसका डाटा पुरी तरह आज भी नहीं मिल पाया है। एक देश जहां से ये वायरस शुरू हुआ और पुरी दुनिया इसके चपेट में आ गई। 

    जब ये वायरस लोगों की जान लेने लगी, शुरुआत में तो पता ही नहीं चला कि क्या किया जाए आखिर, लाॅकडाउन लगे, लोग घर से बाहर निकलना बंद कर दिए। दवा, फल,‌ सब्जी बस खुला था उसमें भी बहुत ऐतिहात बरता जा रहा था, एक खांसी या सर्दी की आवाज़ ही लोगों के लिए काफी थे। पुरा अगर बगल खाली हो जा रहा था। डर मौत का उसी समय समझ आया, काढ़ा, आयुर्वेद, ताली, थाली सब बजने लगे, लेकिन भगवान की असीम कृपा रही हम सब उस कठिन समय को पार भी किए और सुरक्षित हैं। हां बहुत क्षति भी हुई बहुत घरें उजड़ गई लेकिन सरकार का सराहनीय क़दम बहुत लोगों की जान बचाने में सहायक रही।

         दिसंबर से ही शुरू हुआ था 6 साल‌ पहले मौत का खेल...

   दिसंबर को 6 साल‌ पहले सब कुछ शांत था तभी चीन के वुहान शहर में एक वायरस एक्टिव हुआ जिसे कोविड - 19 नाम दिया गया। 27 दिसंबर को एक ऐसा व्यक्ति जो पेरिस में रहता था उसमें निमोनिया के लक्षण थे जो चीन से ही आया था उसमें कोविड 19 के वायरस पाए गए थे। भारत में पहला कोविड का मरीज केरल में मिली थी जो चीन के वुहान से आई थी जिसे सुखी खांसी और बुखार का लक्षण था।
30 जनवरी तक वहां 3 मरीज हो गये तीनों मेडिकल के छात्र थे जो चीन के वुहान से ही आए थे। फ़रवरी और मार्च में फिर दो - तीन मरीज में लक्षण दिखें जो‌ बाहर से आए थे फिर जयपुर में लक्षण बहुत लोगों के आने लगे। उसी समय होली था उसमें बाहर से आने वालों की संख्या बहुत थी।

    बाहर से जो आ रहे थे अपने साथ वायरस यहां ला रहे थे देखते ही देखते 100 पहुंच गई थी। 14 मार्च रात की रात भारत के सभी पड़ोसी देश का बोर्डर सील कर दिया गया, नेपाल, भुटान, बांग्लादेश, म्यानमार, पाकिस्तान सबको भारत आने वाले रास्ते सील कर दिया गया। 22 मार्च को पहला जनता कर्फ्यू लगा प्रधानमंत्री के आदेश से जिसमें लोगों का घर से निकलना बिल्कुल बंद था‌ बस जरूरी सेवा दवा,‌ किराना स्टोर ही खुला रहेगा। फिर 24 मार्च को 21 दिनों का कर्फ्यू जारी किया गया लेकिन बहुत लोग उसकी अवहेलना कर सड़क से, गाड़ी से जैसे जिसको बना अपने घर लौटने लगे। 

    सच कहिए तो उसी में लोगों को अपने गांव में एक घर का कितना ज़रूरत है उसका एहसास हुआ। ग्रामीण इलाके में ज्यादा क्षति नहीं हुआ शहर में तो मुहल्ले सील कर दिए जाते थे, जिस घर में एक भी मरीज दिखता पुरा मुहल्ला सील कर दिया जाता था लेकिन गांव में लोग काढ़ा और पैरासिटामोल पर ही काम चला रहे थे। फिर 15 अप्रैल से 3 मई को दुसरा लाॅकडाउन लगा, 4 मई से 17 मई तीसरा लाॅकडाउन लगा।

   उस समय और कोई उपाय दिख नहीं रहा था तो लाॅकडाउन ही एक सहारा बचा था। अर्जेंटीना में दुनिया का सबसे लंबा लाॅकडाउन लगा जो 234 दिन चला। हमारे यहां भी जानें गईं लेकिन अमेरिका, रूस, फ्रांस आदि में मौतें सबसे ज्यादा रही, चीन में जान गई बहुत ज्यादा मात्रा में लेकिन उन्होंने आंकड़ा सही नहीं बताया, ऐसा मेरा मानना है।

   कोविड के लक्षण सर्दी, बुखार, गले में खराश के थे जो छूने से,‌ ये वायरस हवा में भी फ़ैल रहे थे। कोविड में मरने‌ वालों को PPe kit में लपेट कर लाश को रखते, जो छूता उसको भी पीपीई कीट पहनना पड़ता कि उससे कहीं फैल ना जाए.. वो‌ समय सोच आज‌ भी मन डर जाता लेकिन लोगों को अपने क्या होते वो एहसास भी वही कराया था। गांव‌ घर क्या होता वो भी उसी में पता चला, उसके बाद लोगों में एक अलग बदलाव नजर आया,‌ जो कभी 100 रूपए भी खर्च ना करते वो लोग अब जीने के ढंग में बहुत बदलाव किए। 

   आज हर जगह भीड़ देखते उसका एक कारण ये भी है जब कोविड आया लोगों को‌ लगा सब जमा किया यहीं रह जाता भगवान की बहुत कृपा हुई जो बच गए, अब हर मंदिर में, हर टूरिस्ट स्पॉट पर लोग घूमते, एसी कोच, फ्लाइट सब यूज करते कि जिंदा हैं इंजाय कर लेते कल क्या पता क्या हो....

      नोट-  ये बस‌ जानकारी है हम इसका पुरा पुष्टि नहीं करते... लोगों से पढ़ी सुनी जानकारी...  बिना डाॅ से राय लिए ना अपनाएं , कोई डाक्टर इसको ना बोला है।

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