धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि ब्राह्मण दो तरह के थे। एक याचक और दूसरा अयाचक। याचक मतलब जो ब्राह्मण भिक्षा मांगे या दान दें। यह वह ब्राह्मण बने जो घर घर जा कर पुजा पाठ करते और भिक्षा मांग जीवन गुजर बसर करते। इनको पुजा पाठ, होम आहुति, दान भिक्षा कर जीवन गुजर बसर करना होता है।
अयाचक मतलब जो खेती-बाड़ी, जमींदारी, राजपाट देखें वो अयाचक ब्राह्मण कहलाएं। मतलब भूमिहार ब्राह्मण ही अयाचक ब्राह्मण हुए। जिनका पुरोहिताई से कोई मतलब नहीं हो। बाकी सारा चीज रहन-सहन, कर्म सब ब्राह्मण जैसा ही हो। इसलिए भूमिहार को ब्राह्मण कहा जाता है।
एक कथा में कहा गया है कि भगवान परशुराम ने जब पृथ्वी पर के राजाओं को हराकर सारा राजपाट ब्राह्मण को देकर तप करने जाने लगे तो सारे ब्राह्मण ने कहा आप अगर यहां से चले गए तो हमारी रक्षा कौन करेगा। तब भगवान परशुराम ने बताया कि एक शंख मैं तुम सबको देता हूं, जब कोई परेशानी हो तो बजा देना मैं तुरंत आ जाउंगा।
कुछ दिन बीतने पर कुछ ब्राह्मणों ने विचार किया कि भगवान परशुराम कह कर चले तो गये लेकिन अगर शंख बजाने पर नहीं आए भगवान तो हमारी रक्षा कौन करेगा। तब कुछ लोगों ने मिलकर शंख बजाया कि तुरंत भगवान परशुराम आ गये। तब इन लोगों ने कहा मैं बस देख रहा था आप आते हैं या नहीं। बस परशुराम जी को बहुत क्रोध आया उन्होंने उनको शाप दे दिया कि तुम लोग राज करने लायक ही नहीं हो, तुम गरीब के गरीब ही रहोगे।
जो ब्राह्मण उन लोगों का साथ देने नहीं आए उनको राज करने का आशीर्वाद दे कर चले गए। वही ब्राह्मण सब भूूमिहार ब्राह्मण के नाम से मशहूर हुए।
0 Comments