हिंदू धर्म में जब किसी की मृत्यु होती है तो 13 दिनों में उनका श्राद्ध कर दिया जाता है। लेकिन उनको पिंड या तर्पन के लिए एक नियत समय बताया गया है जिसे पितृपक्ष कहते हैं। यह 15 दिनों तक चलने वाला पितृपक्ष भादो पुर्णिमा से शुरू हो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के अमावस्या तक चलती है। इस बार पितृपक्ष 13 सितंबर से शुरू हो 28 सितंबर तक पितृपक्ष चलता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसमें हम अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते हैं। इससे देवता भी खुश होते हैं। इस 15 दिनों में हमारे पितर धरती पर आते हैं और हम उनको पिंड देते। जिनको पिंड नहीं पड़ता उनकी आत्मा तड़पती रहती है। कहा जाता है कि जब कोई पिंड देने जाता है तो गांव के सारे पुर्वजों को पुकारता है कि कोई छुटे तो नहीं है। वहां जाकर एक अनाम पिंडी बना तब उसका पूजा करते।
हर जगह कोई ना कोई ऐसा जरूर होता जो मर गए या कहीं कुछ एक्सीडेंट हो गया उनकी आत्मा तो तड़पती हैं। इसलिए गांव से कोई भी जाता तो अपने इष्ट पितृों को पिंड देने देता कि जो जहां है उनकी आत्मा को शांति मिले।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसमें हम अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते हैं। इससे देवता भी खुश होते हैं। इस 15 दिनों में हमारे पितर धरती पर आते हैं और हम उनको पिंड देते। जिनको पिंड नहीं पड़ता उनकी आत्मा तड़पती रहती है। कहा जाता है कि जब कोई पिंड देने जाता है तो गांव के सारे पुर्वजों को पुकारता है कि कोई छुटे तो नहीं है। वहां जाकर एक अनाम पिंडी बना तब उसका पूजा करते।
हर जगह कोई ना कोई ऐसा जरूर होता जो मर गए या कहीं कुछ एक्सीडेंट हो गया उनकी आत्मा तो तड़पती हैं। इसलिए गांव से कोई भी जाता तो अपने इष्ट पितृों को पिंड देने देता कि जो जहां है उनकी आत्मा को शांति मिले।
श्राद्ध परंपरा की शुरुआत
श्राद्ध की परंपरा की शुरुआत महाभारत के अनुसार " जब महाभारत में उतने लोग मारे गए तब भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा - ये सब अकाल मृत्यु से मरे हैं, इनकी आत्मा भटकेगी, इसलिए इनका श्राद्ध जरुरी है। भीष्म पितामह ने कहा - सबसे पहले अत्रि मुनि ने महर्षि निमी को श्राद्ध का उपदेश दिया। यह सुनते के बाद महर्षि निमी ने श्राद्ध शुरू किया और उन्हें पितृ ऋण से मुक्ति मिल गई।
इसके बाद ऋषि निमी ने और भी ऋषि मुनियों को श्राद्ध के बारे में बतलाया। अन्य ऋषि भी पितृदोष से मुक्त होने के लिए श्राद्ध करने लगे और ये प्रचलन शुरू हो गया। रामायण में भी पिंड देने का उल्लेख किया गया है। दशरथ की मृत्यु के बाद माता सीता ने पहले पिंड दिया था। वो कहानी अगले भाग में बताएंगे। ये बातें पौराणिक कथाओं और लोगों के सुन कर हम लिखे हैं।
इसके बाद ऋषि निमी ने और भी ऋषि मुनियों को श्राद्ध के बारे में बतलाया। अन्य ऋषि भी पितृदोष से मुक्त होने के लिए श्राद्ध करने लगे और ये प्रचलन शुरू हो गया। रामायण में भी पिंड देने का उल्लेख किया गया है। दशरथ की मृत्यु के बाद माता सीता ने पहले पिंड दिया था। वो कहानी अगले भाग में बताएंगे। ये बातें पौराणिक कथाओं और लोगों के सुन कर हम लिखे हैं।
पिंड कहां कहां दिया जाता है
महाभारत में कहा गया है जो व्यक्ति फल्गू नदी के तट पर पिंडदान करता है उसे भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं। सबसे उत्तम गया का पिंड माना जाता है। फिर हरिद्वार, गंगासागर, पुरी, पुष्कर, बद्रीनाथ, कुरूक्षेत्र, चित्रकुट, काशी, कानपुर मुसानगर का यमुना तट पर, रूद्रप्रयाग, त्रियुगीनारायण या सरस्वती कुंड, अयोध्या सहित 55 जगह और है जहां पिंड दान होता है।
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