सितंबर माह व्रत का महीना कहा जा सकता है। पहले पति के लिए व्रत, फिर गणेश पूजन, तब पूर्वजों के लिए तर्पन, फिर बच्चों के लिए जितिया भी आने वाला है,और अंत में शारदीय नवरात्र की पूजा होगी। यह व्रत माता अपने बच्चों के लिए पुरा दिन निर्जल रहकर करती है। यह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी को मनाया जाता है। यह ख़ास कर बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है।
जितिया कब है
जितिया पर्व इस बार 2019 में 21 सितंबर शनिवार को हैं। 21 को नहाय-खाय है और 22 को निर्जल व्रत और 23 को पारण। अष्टमी तिथि 21 सितंबर को रात 8.15 में शुरू होकर 22 के रात 7.50 में खत्म होगा।( समय अलग अलग भी हो सकता है)
अष्टमी तिथि में ही मुख्य तौर पर निर्जल व्रत मान्य होोता है। नहाय-खाय के दिन बिहार में आम तौर पर सब कुछ खाया जाता है। नमक भी खाते है। कुछ जगहों पर तो जितने
बच्चे उतनी मछली खाते हैं। इचना मछली जो छोटी छोटी आती है। और शाकाहारी लोग पिट्ठा बना कर निगलते।
फिर पारण के दिन नोनी सांग, कुशिया मटर, मक्के या बाजरे की रोटी से पारण करते हैं। खीरा और मटर लेकर चिल्ह और सियार के नाम पर अर्पित करते हैं। इस दिन महिलाएं अपने पूर्वजों को सरसों की खल्ली( तेल निकालने के बाद जो अवशेष बचता) और तेल भी अर्पित करते हैं।
अष्टमी तिथि में ही मुख्य तौर पर निर्जल व्रत मान्य होोता है। नहाय-खाय के दिन बिहार में आम तौर पर सब कुछ खाया जाता है। नमक भी खाते है। कुछ जगहों पर तो जितने
बच्चे उतनी मछली खाते हैं। इचना मछली जो छोटी छोटी आती है। और शाकाहारी लोग पिट्ठा बना कर निगलते।
फिर पारण के दिन नोनी सांग, कुशिया मटर, मक्के या बाजरे की रोटी से पारण करते हैं। खीरा और मटर लेकर चिल्ह और सियार के नाम पर अर्पित करते हैं। इस दिन महिलाएं अपने पूर्वजों को सरसों की खल्ली( तेल निकालने के बाद जो अवशेष बचता) और तेल भी अर्पित करते हैं।
जीतिया व्रत कथा..
नर्मदा नदी के तट पर कंचनवटी नाम का एक शहर था। नदी किनारे एक पाकड़ पेड़ के कोटर में चिल्ह रहता था उसी पेड़ के नीचे खोह बना सियारिन रहती थी। दोनों में मित्रता भी थी। जीतिया पर्व होने वाला था दोनों ने विचार किया और व्रत रखा। दोनो ने पुरे नियम निष्ठा से व्रत रखा।
उसी दिन उस शहर के एक आदमी की मृत्यु हो गई। जिसका दाह संस्कार उसी नदी के तट पर हुआ। सियार के नाक में मूर्दा जलने की गंध तैरने लगी। भूख से तो हाल खराब था ही ऊपर से मुर्दा का गंध सियार अपने आप को रोक ना सकी और व्रत छोड़ खा ली। चिल्ह पुरे नियम के साथ व्रत पालन कर दुसरे दिन पारण की।
कुछ दिन बाद दोनों की मृत्यु हुई। दोनों एक ब्राह्मण के घर पैदा हुई। पिता का नाम भास्कर, चिल्ह बड़ी बहन शीलवती हुई और उसका विवाह बुद्धिसेन से हुआ। सियारन छोटी बहन कपुरावती जिसकी शादी मलयकेतु के साथ हुई।शीलवती के भगवान जीतवाहंन की कृपा से 7 बेटे हुए और कपुरावती के बच्चे होते और मर जाते।
शीलवती के सातों बच्चे बड़े हुए और सभी काम करने लगे। ये देख कपुरावती को जलन होने लगा। एक दिन उसने गुस्से में सातों का सर काट थाल में सजा लाल कपड़े से ढककर भेज दिया। शीलवती के सामने जैसे ही थाल पहुंचा सभी मिट्टी के सर हो गए। इधर कपुरावती को अभी तक शीलवती के यहां से रोने की कोई आवाज ना आई।
वो हैरानी से बढ़ते हुए शीलवती के घर पहुंचे तो सातों बेटे खेल रहे, कपुरावती को यह देख होश आया। भगवान जीवितवाहन नेउसके सातों पुत्रों को जिंदा कर दिया था। शीलवती को सारी बात बता मांफी मांगी। दोनों को अपना पिछला जन्म याद आ गया था। पाकड़ के पेड़ के पास जा दोनों ने भगवान से माफी मांगी और कपुरावती के गोद भरने की भगवान जीवितवाहन से मिन्नत की। भगवान खुश रहने के वरदान देकर अंतर्धयान हो गए।
उसी दिन उस शहर के एक आदमी की मृत्यु हो गई। जिसका दाह संस्कार उसी नदी के तट पर हुआ। सियार के नाक में मूर्दा जलने की गंध तैरने लगी। भूख से तो हाल खराब था ही ऊपर से मुर्दा का गंध सियार अपने आप को रोक ना सकी और व्रत छोड़ खा ली। चिल्ह पुरे नियम के साथ व्रत पालन कर दुसरे दिन पारण की।
कुछ दिन बाद दोनों की मृत्यु हुई। दोनों एक ब्राह्मण के घर पैदा हुई। पिता का नाम भास्कर, चिल्ह बड़ी बहन शीलवती हुई और उसका विवाह बुद्धिसेन से हुआ। सियारन छोटी बहन कपुरावती जिसकी शादी मलयकेतु के साथ हुई।शीलवती के भगवान जीतवाहंन की कृपा से 7 बेटे हुए और कपुरावती के बच्चे होते और मर जाते।
शीलवती के सातों बच्चे बड़े हुए और सभी काम करने लगे। ये देख कपुरावती को जलन होने लगा। एक दिन उसने गुस्से में सातों का सर काट थाल में सजा लाल कपड़े से ढककर भेज दिया। शीलवती के सामने जैसे ही थाल पहुंचा सभी मिट्टी के सर हो गए। इधर कपुरावती को अभी तक शीलवती के यहां से रोने की कोई आवाज ना आई।
वो हैरानी से बढ़ते हुए शीलवती के घर पहुंचे तो सातों बेटे खेल रहे, कपुरावती को यह देख होश आया। भगवान जीवितवाहन नेउसके सातों पुत्रों को जिंदा कर दिया था। शीलवती को सारी बात बता मांफी मांगी। दोनों को अपना पिछला जन्म याद आ गया था। पाकड़ के पेड़ के पास जा दोनों ने भगवान से माफी मांगी और कपुरावती के गोद भरने की भगवान जीवितवाहन से मिन्नत की। भगवान खुश रहने के वरदान देकर अंतर्धयान हो गए।
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