कल भारत ने एक नया इतिहास रचा। इसरो के लिए कल वो पल हमेशा के लिए यादगार बन गया जब चंद्रयान 2 की लांचिंग सफल हुई। ये लांचिंग तो 15 जुलाई को ही होने वाली थी लेकिन कुछ तकनीकी problem के कारण कल यानी 22 जुलाई को दिन में 2.43 बजे लांच किया और सही सही पृथ्वी के कक्षा में प्रवेश किया।
यह आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से लांच किया गया था। इसे चांद की सतह पर उतरने में 50 दिन लगेगा, यह लगभग 6-8 सितंबर तक वहां स्थापित होगा। इस मिशन की खास बात यह है कि ये उस जगह पर जाएगा जहां अभी तक और कोई देश नहीं जा पाया है। जो भी देश आज तक गया है सब चांद के एक हिस्से यानी उत्तरी ध्रुव पर गया है। लेकिन भारत चंद्रयान दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा।
दक्षिणी ध्रुव ज्वालामुखी वाली जगह है। यहां का जमीन समतल नहीं उबर खाबड़ है, यहां उतरना जोखिम भरा है।इसी जोखिम भरे इलाके के कारण कोई भी देश वहां नहीं गया। उत्तरी ध्रुव समतल जगह है तो वहां सब गये है।
यह आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से लांच किया गया था। इसे चांद की सतह पर उतरने में 50 दिन लगेगा, यह लगभग 6-8 सितंबर तक वहां स्थापित होगा। इस मिशन की खास बात यह है कि ये उस जगह पर जाएगा जहां अभी तक और कोई देश नहीं जा पाया है। जो भी देश आज तक गया है सब चांद के एक हिस्से यानी उत्तरी ध्रुव पर गया है। लेकिन भारत चंद्रयान दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा।
दक्षिणी ध्रुव ज्वालामुखी वाली जगह है। यहां का जमीन समतल नहीं उबर खाबड़ है, यहां उतरना जोखिम भरा है।इसी जोखिम भरे इलाके के कारण कोई भी देश वहां नहीं गया। उत्तरी ध्रुव समतल जगह है तो वहां सब गये है।
चंद्रयान 2 का उपयोग-
चंद्रयान का पहला उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर उतरना है फिर सतह पर रोबोट रोबर चालु करना। फिर वो चांद पर पानी की मौजूदगी का सबुत निकालना। यह चांद की सतह का नक्शा भी तैयार करेगा। वहां कौन कौन से खनिज पदार्थ पाये जाते हैं और कितनी मात्रा में ये भी पता लगाएगा। पृथ्वी के विकासक्रम को जानने में सहायक होगा और हमारी सौर व्यवस्था का भी जानकारी मिलेगी।
चंद्रयान बनाने में इसरो को कुल 978 करोड़ रुपए लगे। इतना रुपया जुटाने में एल एंड टी और गोदरेज जैसे कुछ और निजी कंपनियों ने मदद की। 1974 के परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर पश्चिम देशों ने प्रतिबंध लगा दिया था। तब भारत ने खुद तकनीक और राकेट बनाने पर फोकस किया। बाहर से सामन इंपोर्ट करना कम कर दिया।
देश के अंदर ही प्राइवेट सेक्टरों से हेल्प लेने लगा। इसलिए जब चंद्रयान 2 बनाने की बात हुई तो प्राइवेट सेक्टरों ने बखुबी अपना मदद किया। गोदरेज ,L&T जैसी कंपनियों ने हार्डवेयर और टेस्टिंग साल्युशन उपलब्ध कराएं।
चंद्रयान बनाने में इसरो को कुल 978 करोड़ रुपए लगे। इतना रुपया जुटाने में एल एंड टी और गोदरेज जैसे कुछ और निजी कंपनियों ने मदद की। 1974 के परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर पश्चिम देशों ने प्रतिबंध लगा दिया था। तब भारत ने खुद तकनीक और राकेट बनाने पर फोकस किया। बाहर से सामन इंपोर्ट करना कम कर दिया।
देश के अंदर ही प्राइवेट सेक्टरों से हेल्प लेने लगा। इसलिए जब चंद्रयान 2 बनाने की बात हुई तो प्राइवेट सेक्टरों ने बखुबी अपना मदद किया। गोदरेज ,L&T जैसी कंपनियों ने हार्डवेयर और टेस्टिंग साल्युशन उपलब्ध कराएं।
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