होली का हुड़दंग

       कल होली पुरे भारत में बहुत अच्छी तरह मस्ती भरी रही। होली में हुड़दंग तो हमलोग करते ही हैं। सबसे अच्छी होली हम बिहार के लोग खेलते हैं।जो मन के सच्चे और सच्चे होते हैं।हम लोग आज भी अपने जमीन से जुड़े हुए हैं। सादगी और सरलता भरी होली होती है हमारी। बड़े बड़े शहर वाले तो पानी बचाओ होली खेलते, स्कीन खराब ना हो रंग बचाओ होली खेलते। अबीर गुलाल से बस टीका लगाने में विश्वास रखते हैं।

      हम लोग तो होली के रंगों में सराबोर हो कर होली खेलते। पानी बचाने का अभियान होली के बाद, स्कीन खराब होने की फिक्र नहीं। बस होली के रंगों में डुब जातें। आइए हमारी ‌‌‌‌‌‌‌होली के बारे में जानें कुछ... आपके यहां भी ऐसा ही होली होता है तो कमेंट में बताइए...

    होली के दिन सबसे पहले हमलोग के घर में पुआ सुबह 4 बजे से बनने लगता है। हमलोग उसी समय से खाने भी लगते हैं। फिर 8-9 बजे तक सारे लोग अपने बरामदे पर एक बड़ा सा गड्ढा कर फुली कीचड़ बनाते हैं। इसे मड थेरेपी कर सकते हैं। उस कीचड़ में सबको डुबाया जाता, सारे लोग नायक‌ फिल्म के अनिल कपूर बन‌ जाते।‌ जो खुद एक दूसरे को नहीं पहचान पाते। उसमें कपड़े तो ऐसे फाड़ देते जैसे पत्ते के कपड़े हों।

     उसके बाद सब नहा धोकर हल्का खा कर रंग खेलने निकलते हैं। हम लोग केवल बड़े शहरों की तरह लाल रंग नहीं खेलते। लाल‌, हरा, काला‌ रंग हाथों में रखकर मुंह, दांत पर घिसकर भुत बना देते, अगर वो बच के निकलने की कोशिश भी करता तो 2-4 लोग पकड़ कर उसको दबोच लेते हैं। फिर बाल्टी में रंग घोल कर उसके ऊपर 2-4 बाल्टी पानी गिरा देते। अगले 4-5 दिन रंग फिर नहीं उतरता।

     बेचारा फिर 10 बाल्टी पानी रंग छुड़ाने में युज करता है। ऐसा हर किसी के साथ करते हैं। फिर शाम होने लगती,तब अबीर निकालते हैं। अबीर गुलाल से तो पुरे भारत खेलती है। उसमें हम अपने से बड़ों के पैर पर आदर सम्मान से अबीर रख कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती है। आपको कैसा लगा मेरा ये पोस्ट बतायें जरुर। अपना ईमेल अड्रेस डाल कर सब्सक्राइब करें।
 
    

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