अगर चश्में का नंबर बार-बार बदल रहा है और चश्मा लगाने के बाद भी साफ़ साफ़ दिखाई नहीं पड़ता है तो आपको सावधान होने की जरूरत है।
ये समस्या केराटोकोनस के कारण हो सकता है। जो लोग बार बार अपनी आंखें रगड़ते हैं या किसी तरह की एलर्जी से यह समस्या हो सकती है।
जो लोग कोनटेक्ट लेंस पहनते हैं उनको भी खतरों हो सकता है। इस बीमारी का जांच स्लिट लैंप से की जा सकती है। लेकिन केराटोकोनस का पता लगाने के लिए पेंटाकम पर जांच की जाती है।
इसका इलाज डाॅक्टर इकेदा लाल नेत्ररोग विशेषज्ञ कहते हैं कि सबसे पहले मरीज को रिबोफ्लेविन विटामिन बी 2 का टेबलेट देते हैं और यूवी किरणों का इस्तेमाल करते हैं। फिर कोलोजन क्रास लिकिंग प्रक्रिया की मदद से काॅर्निया के कोलोजन फाइबर के बीच को बढ़ाया और मजबूत किया जाता है।यह प्रक्रिया काॅर्निया को मजबूत करने के साथ चश्मा के नंबर को भी घटाने में मददगार है। बचे हुए नंबर को लेजर विधि से कम किया जा सकता है।
इसमें ध्यान रखें कि इलाज के बाद मरीज को एक साल तक डाॅक्टर से चेकअप कराते रहना चाहिए। आंखों में अगर खुजली हो रहा हो तो रगड़ने के बजाय ठंडे पानी से धोएं और जल्द डाक्टर से सलाह लें।
ये समस्या केराटोकोनस के कारण हो सकता है। जो लोग बार बार अपनी आंखें रगड़ते हैं या किसी तरह की एलर्जी से यह समस्या हो सकती है।
जो लोग कोनटेक्ट लेंस पहनते हैं उनको भी खतरों हो सकता है। इस बीमारी का जांच स्लिट लैंप से की जा सकती है। लेकिन केराटोकोनस का पता लगाने के लिए पेंटाकम पर जांच की जाती है।
इसका इलाज डाॅक्टर इकेदा लाल नेत्ररोग विशेषज्ञ कहते हैं कि सबसे पहले मरीज को रिबोफ्लेविन विटामिन बी 2 का टेबलेट देते हैं और यूवी किरणों का इस्तेमाल करते हैं। फिर कोलोजन क्रास लिकिंग प्रक्रिया की मदद से काॅर्निया के कोलोजन फाइबर के बीच को बढ़ाया और मजबूत किया जाता है।यह प्रक्रिया काॅर्निया को मजबूत करने के साथ चश्मा के नंबर को भी घटाने में मददगार है। बचे हुए नंबर को लेजर विधि से कम किया जा सकता है।
इसमें ध्यान रखें कि इलाज के बाद मरीज को एक साल तक डाॅक्टर से चेकअप कराते रहना चाहिए। आंखों में अगर खुजली हो रहा हो तो रगड़ने के बजाय ठंडे पानी से धोएं और जल्द डाक्टर से सलाह लें।
0 Comments