आज कल रिजल्ट का सीजन चल रहा ..सब पेरेंट्स अपने बच्चों को टाॅप पर ही देखना चाहते,अगर कम नंबर आता तो डांट फटकार जिस कारण बच्चे सुसाइड जैसा कदम उठाने पर मजबुर हो जाते..क्या फेल करने पर बच्चों को बुरा फील ना होता...उन लोगों ने भी बहुत मेहनत किया.. वो भी दिन रात एक कर पढ़ाई की..सब बच्चे का दिमाग एक जैसा नहीं होता,सब एक जैसा तो नहीं सीखते.. दुसरे बच्चों से कम्पेयर कर उनका दिल ना तोड़े..आप उनको ना समझेंगे तो और कौन समझे..जब घर में कोई साथ ना देता तब बच्चे हार कर कुसंगत या कुछ वैसा उल्टा सोचते...
फिर बात आता बच्चे पास करने के बाद पेरेंट्स उनको जबरदस्ती अपने मन का विषय दिलवा देते...सब पेरेंट्स अपने बच्चों को बस डाॅक्टर या इंजीनियर ही बनाना चाहते.. और हर बच्चे की अपनी खुद की भी ख्वाइश होती.. अपने मन का ना मिलता तो उसमें अपना बेटर दे ना पाते.. फिर आगे जाकर वहीं रिजल्ट.. I
फिर बात आता बच्चे पास करने के बाद पेरेंट्स उनको जबरदस्ती अपने मन का विषय दिलवा देते...सब पेरेंट्स अपने बच्चों को बस डाॅक्टर या इंजीनियर ही बनाना चाहते.. और हर बच्चे की अपनी खुद की भी ख्वाइश होती.. अपने मन का ना मिलता तो उसमें अपना बेटर दे ना पाते.. फिर आगे जाकर वहीं रिजल्ट.. I
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