कल से यानी 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहा है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष आरंभ होता है। कल विक्रम संवत 2081 नया साल शुरू होगा। चैत्र नवरात्र प्रतिपदा से आरंभ हो रामनवमी तक चलता है। नौ दिन माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है, माता के पसंद का भोग अर्पित कर और सच्चे मन से पूजा करने से माता अपना आशीर्वाद हमेशा बनाएं रखती हैं। हम इस पोस्ट में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, माता के नौ दिनों के नौ रूप और नौ दिनों तक भोग के बारे में बता रहे हैं। माता को कौन सा फूल चढ़ाएं ये भी जानें..... आपको मेरा ब्लॉग कैसा लगा कमेंट कर अवश्य बताएं और सब्सक्राइब अवश्य करें।
चैत्र नवरात्र कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त....
चैत्र नवरात्र के कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6.11 से 10.23 तक और 11.57 से 12.48 है। 8 अप्रैल की रात्रि को सुर्य ग्रहण भी है जो कि भारत में नहीं है इसलिए इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। रात्रि 2.22 तक सुर्य ग्रहण समाप्त हो जाएगा। इसलिए बिना कोई संकोच किए आप सुबह 9 अप्रैल को कलश स्थापना कर सकते हैं। चैत्र मास की प्रतिपदा 8 अप्रैल रात 11.50 से शुरू होगी और 9 अप्रैल रात 8.30 तक रहेगी। इस बार 9 दिनों की नवरात्र है 9 अप्रैल से शुरू हो 17 अप्रैल को रामनवमी के दिन समाप्त होगी।
कलश स्थापना और पूजा विधि....
नवरात्र में कलश स्थापना करने से पहले पुरे घर को अच्छी तरह धो लें, गंगा जल छिड़क लें। फिर स्नान ध्यान कर पूजा रूम में तैयारी शुरू करें। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर माता की मुर्ति रखें फिर उसके सामने मिट्टी का एक चौकोर बनाएं जिसमें कलश स्थापित करना है। मिट्टी हल्की भूर-भूरी हो सख्त ना हो तब उसमें जौ मिला कर कलश स्थापित कर दे। कलश में लाल वस्त्र लपेट दें और उसमें कुछ पैसे और सप्तधान्य, पंचधातु, सप्तमृतिका , कौड़ी,डाल दें तब गंगा जल एक तिहाई भर दें। फिर आम पल्लव रख कलश का ढक्कन रखें। ढक्कन में चावल भर दे फिर उसके ऊपर नारियल लाल कपड़ा में लपेट रख दें। बाएं तरफ गणेश जी कार्तिक जी मिट्टी का बना स्थापित करें। दुर्गा सप्तशती किताब से मंत्र का सही सही उच्चारण कर पूजा शुरू करें।
माता की सवारी - चैत्र नवरात्र में माता की सवारी घोड़े पर आ रही है।
माता के नौ दिनों के नौं रूप और भोग....
* नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री का पूजा करते हैं। माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं इनका पसंदीदा रंग नारंगी और सफेद है। इसलिए इसदिन सफेद कपड़ा पहन कर पूजा करना चाहिए। इस दिन माता को गाय के घी से बनी सफेद चीज का भोग लगाना चाहिए। इस दिन माता को सफेद गुल्हड़ चढ़ाएं। इनकी पूजा चंद्रमा के प्रभाव को दूर करने के लिए अवश्य करें।
* नवरात्र के दुसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है जो तपस्वी रूप में विराजमान हैं। यह रूप इन्होंने इनका भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या किए थे तब का हैं। इस दिन सफेद पहन पूजा करें। माता को गुलदाउदी की फूल चढ़ाएं। इस दिन माता को शक्कर या पंचामृत भोग लगाना चाहिए। मंगल के प्रभाव को कम करने में माता मदद करती है।
* तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है जो शुक्र के प्रभाव को कम करती है। इनके सर पर आधा चंद्रमा घंटे के आकार का है। इसको दूध से बनी मिठाई या खीर भोग लगाएं। इनका पसंदीदा फूल कमल है और लाल रंग पहन इनकी पूजा करनी चाहिए।
* चौथा दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। समुचे ब्रह्मांड की उत्पत्ति माता कुष्मांडा के पेट से हुआ है। इनको मालपुआ की भोग लगाना चाहिए। इनको चमेली का फूल चढ़ाएं। नीला रंग इनका पसंदीदा रंग है। सुर्य की प्रभाव को कम करने के लिए इनका पूजा करें।
* स्कंदमाता पांचवां स्वरूप हैं,स्कंदमाता कुमार कार्तिकेय की माता है इनकी पूजा से सिद्धि मिलती है। अज्ञानी को ज्ञान मिलता है, इनको पीला फूल और केला का भोग लगाएं। बुध ग्रह के प्रभाव को दूर करती है माता।
* छठा दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है, इनकी पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनको गेंदा फूल चढ़ाएं और शहद का भोग लगाएं। इनका पसंदीदा रंग हरा है।
* सातवां दिन कालरात्रि माता की पूजा की जाती है। इनकी पूजा करने से सारी बुरी शक्तियां खत्म हो जाती है, सिद्धियां प्राप्त करने के लिए माता का उपासना करना चाहिए। इनको कमल का फूल चढ़ाएं और गुड़ का भोग लगाना चाहिए।
* अष्टमी के दिन महागौरी की पूजा की जाती है। माता को नारियल का भोग लगाया जाता है, इनको चमेली, बेला का फूल चढ़ाएं।
* नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। तिल का भोग लगाएं और चंपा फूल चढ़ाएं।
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