कार्तिक मास की पूर्णिमा 8 नवंबर को है, इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और पूजा पाठ का विशेष महत्व है। सभी पूर्णिमा से उत्तम कार्तिक पूर्णिमा होता है। कार्तिक में एक मास लोग गंगा तट पर रह कर गंगा स्नान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इस दिन राधे कृष्ण की पूजा भी की जाती है। दान धर्म का भी विशेष महत्व है, कार्तिक पूर्णिमा पर किए गए दान का दोगुना फल मिलता है। इस दिन किसी भी पवित्र नदी या तालाब, पोखर में स्नान करना चाहिए। अनाज, कंबल ये सब दान करें।
कार्तिक पूर्णिमा कब है और कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथाएं.....
कार्तिक पूर्णिमा 8 नवंबर को है। इस दिन पुर्णिमा 7 नवंबर को 4.15 बजे शुरू होगा और 8 नवंबर के दिन में 4.31 बजे समाप्त होगा तो स्नान ध्यान की पूर्णिमा 8 को मानी जाएगी। इस दिन गुरु नानक देव जी की जयंती भी मनाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने अपना मत्स्य अवतार इसी दिन लिया था। जैन धर्म के लिए भी यह दिन विशेष है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक दैत्य था जिसका नाम तारकासुर था, उसके आतंक से भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने मुक्ति दिलाई। तारकासुर का तीन पुत्र था तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली... तीनों अपने पिता के मरने से अत्यंत दुखी था वो देवताओं से बदला लेने की ठानी। इसके लिए पहले तीनों कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमर होने का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्मा जी ने इसके अलावा कुछ और मांगने को कहा...
तीनों सोच विचार कर बोले हमें तीन ऐसी नगर दीजिए जिसमें बैठकर आकाश मार्ग से घूमते रहे।एक हजार साल बाद तीनों मिले तो सब एक हो जाएं और जो देवता हमें एक ही वाण से मार सके वही हमारे मरने का कारण हो.. ब्रह्मा जी ने वरदान दे दिया और मयदेव से कह कर तारकाक्ष को सोने का, कमलाक्ष को चांदी का और विद्युन्माली को लोहे का महल बनवा कर दे दिया।
बस तीनों का आतंक फिर बढ़ गया और तीनों ने तीनों लोक पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र सहित सभी देवता इसके आतंक से मुक्ति के लिए भगवान शिव के शरण में गए। भगवान शिव त्रिपुरा का नाश करने को तैयार हो गये। विश्वकर्मा जी ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ बनाया जो देवता सब से ही बने थे। इंद्र, यम, कुबेर, वरुण सब रथ के घोड़े बनें, चंद्रमा, सुर्य रथ के पहिए, हिमाचल धनुष और शेषनाग प्रत्यंचा, भगवान विष्णु बाण और अग्नि देव उसकी नोक, भगवान शिव जैसे ही उस रथ पर सवार होकर आगे बढ़े राक्षसों में हाहाकार मच गया।
भयंकर युद्ध हुआ, त्रिपुर जैसे एक सीध में आएं तो भगवान शिव ने दिव्य बाण चला तीनों का नाश कर दिया। त्रिपुर के अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाता है। जिस दिन तीनों का वध हुआ उस दिन कार्तिक पूर्णिमा था, भगवान शिव ने शांति और धर्म की फिर से स्थापना की, बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। इसलिए इस दिन काशी विश्वनाथ में वाराणसी में गंगा घाटों पर दिए जलाएं जाते हैं और इस दिन देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है।
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