Holi की शुरुआत तो महाशिवरात्रि से ही शुरू हो जाती है। बाबा बैद्यनाथ को अबीर गुलाल चढ़ा होली लोगों को लगने लगता है। होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है लेकिन हमारे यहां तो फागुन शुरू होते ही लोगों के दिल पर भांग और ठंडाई बिना पीएं ही खुमारी चढ़ने लगती। सब कहते हैं होली लग गया उसको.. हर जगह फाग और होली गीत गाते हैं, देर रात तक हंसी ठिठोली चलती है। होलिका दहन की भी तैयारी साथ साथ चलती है, बच्चे सब चंदा इकट्ठा करने में लग गए हैं। मस्ती से होली मनाएं और मजे लें। आइए पहले जानें कि होली कब है 2021 में....और होलिका दहन के बारे में विस्तार से जानें.....
होली कब है Holi kab hai.....
Holi kab hai.. Holi 2021 kab hai...होली कब है, होली 2021 कब है, होलिका दहन कब है... होलिका दहन का शुभ मुहूर्त जानें.... होलिका दहन का महत्व...
होलिका फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली ठीक उसके एक दिन बाद मनाई जाती है। होलिका दहन 28 मार्च को है और होली 29 मार्च को मनाया जायेगा।होली पर्व बुराई पर से अच्छाई के जीत का पर्व है। होली बरसाने, मथुरा और वृंदावन की फेमस होती है लेकिन होली के सबसे ज्यादा गीत भगवान राम के अयोध्या की होली है। बरसाने, मथुरा में 40 दिन की होली होती है। पिछले साल और इस साल भी लगता है ये कोरोना इंजाय करने नहीं देगा।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और महत्व जानें....
होलिका दहन 28 मार्च को है और होली 29 मार्च को। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6.37 से रात 8.56 तक है। होली के कुछ दिन पहले होलाष्टक होता है जो 21 मार्च से शुरू होगी। इस होलाष्टक अवधि में कोई शुभ कार्य वर्जित है। शादी, विवाह, नया व्यवसाय या किसी तरह का शुभ कार्य बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
होलिका दहन का धार्मिक महत्व....
होलिका दहन का धार्मिक महत्व है। इस दिन शाम में गोबर के उपले, घास फूस, सुखी लकड़ी सब को जमा कर शाम में आग लगाया जाता है। किसी घर से पुआ बन के आता है वो भी डाला जाता है। इस होलिका दहन के पीछे एक कहानी है। पौराणिक कथा के अनुसार एक राजा हुआ करता था जिसका नाम हिरण्यकश्यप था। वो खुद को भगवान समझने लगा था। अपनी प्रजा से किसी भगवान की नहीं खुद की पूजा करने कहता अगर कोई दुसरे भगवान की पूजा करता तो उसको सजा देता था। होली में त्वचा की खास देखभाल
उसका एक पुत्र था जिसका नाम ध्रुव था। ध्रुव भगवान विष्णु का भक्त था। इस बात से हिरण्यकश्यप बहुत गुस्सा था, उसने अपने पुत्र को भी मारने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार भगवान विष्णु उसे बचा लेते। एक बार की बात है हिरण्यकश्यप बहुत गुस्से में था उसकी बहन होलिका आई जिसे वरदान में एक चादर मिला था। जिसे ओढ़ने पर आग का कोई असर ना होता था। हिरण्यकश्यप को गुस्सा देख वो सारा कहानी पुछी और बोली इस बार मैं आपको ध्रुव को मारने में सहायता करुंगी।
उसने सुखी लकड़ी और घास फूस का ढेर लगाया और चादर ओढ़ ध्रुव को गोद ले आग में बैठ गई। आग बहुत तेज था। भगवान विष्णु की कृपा से चादर उड़ ध्रुव को ढक लिया और होलिका उसी में जल गई। तब से होलिका दहन मनाया जाता है। यह बुराई पर से अच्छाई की जीत का पर्व है।होली की शुभकामनाएं
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