उत्पन्ना एकादशी कब है जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

        साल में 24 एकादशी होती है, उनमें से कुछ मास की एकादशी बहुत महत्वपूर्ण होती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी व्रत कहते हैं। यह इस बार 11 दिसंबर को है। हम इस पोस्ट में एकादशी कब है, शुभ मुहूर्त और कथा, पूजा विधि बताने जा रहे हैं।

       उत्पन्ना एकादशी कब है और शुभ मुहूर्त......


      उत्पन्ना एकादशी 11 दिसंबर 2020 को शुक्रवार दिन है। सूबह पूजा का शुभ मुहूर्त 5.15 से 06.25 तक है। और शाम 5.43 से 07.05 तक है। एकादशी का पारण द्वितीय तिथि में होना चाहिए इसलिए पारण 12 दिसंबर 2020 को सुबह 07.04 से 09.08 तक है।

       उत्पन्ना एकादशी का महत्व.....


       माना जाता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन ही माता एकादशी का जन्म हुआ था। पुराणों में वर्णित है कि मां एकादशी भगवान विष्णु के शक्ति का ही एक रूप है। यह एकादशी करने से पूर्व जन्म और इस जन्म के सभी पाप कट जाते हैं। ये एकादशी व्रत करने से की हजार अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

      
       उत्पन्ना एकादशी का पूजन विधि....

     
      सुबह स्नान ध्यान कर सबसे पहले तुलसी पूजन करें। फिर पीपल वृक्ष में दूध और जल चढ़ाएं। भगवान विष्णु की पूजा करें, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करें। घी का‌ दिया जलाएं उनके आगे, तुलसी पत्ता या तुलसी मंजर का भोग लगाएं। इस दिन पुरा दिन फलाहार या निर्जल उपवास कर सकते हैं।

       

          उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा.....


     पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार सतयुग में एक दैत्य रहा करता था जिसका नाम था मूल। वह बहुत बलशाली और खतरनाक था। उसने आकाश, पाताल हर जगह तबाही मचाई हुई है। इंद्र, वायू, अग्नि आदि देवताओं को हरा कर‌ स्वर्ग, इंद्रप्रस्थ सबको कब्जा कर देवता आदि को उनके स्थान से भगा दिया था। सभी देवता त्राहि-त्राहि करते भगवान शिव के पास पहुंचे।

        भगवान शिव ने कहा - हे देवता आप सभी तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु के पास जाइए। वहीं आपके समस्या का हल निकाल सकते हैं। सभी देवता क्षीरसागर में भगवान के पास गए। भगवान विष्णु उसी समय शेषनाग पर योगनिद्रा में थे। सभी देवता उनको जगाने के लिए उत्तम श्लोकों से भगवान विष्णु का स्तुति करने लगे।

        भगवान विष्णु जगे और इंद्र आदि देवता से आने का कारण पूछा, इंद्र ने असूर मुर के आतंक का सारा वृत्तांत कह सुनाया। भगवान विष्णु मुर के संहार करने के लिए चंद्रावती राज्य की ओर चल दिए। वहां भगवान विष्णु मुर की सेना को मारते चले गए। असुरों के तीर को तृण की तरह तोड़ सारी असूर सेना मारी गई लेकिन मुर जिंदा था। दस हजार सालों तक भगवान विष्णु और मुर का युद्ध चलते रहा। बाहु युद्ध भी हजारों साल तक चला लेकिन मुर नहीं मरा।


         सालों तक जब कोई निर्णय नहीं हुआ तो भगवान विश्राम करने हेमवती गुफा में जाकर योगनिद्रा की गोद में सो गये। असुर मुर भी भगवान विष्णु का पीछा करते करते गुफा में घुसा और भगवान विष्णु को सोया मान उनपर प्रहार करने को आगे बढ़ा कि भगवान विष्णु के शरीर से उज्जवल, कांतिमय रूप धारण किए एक देवी प्रकट हुए। उस देवी ने मुर को मार गिराया। तभी भगवान विष्णु जगे देवी से बोले आपका जन्म आज एकादशी के दिन हुआ आज से इस दिन को उत्पन्ना एकादशी नाम से जाना जाएगा। आपकी पूजा मतलब मेरी पूजा....

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