8 मार्च को अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पुरे दुनिया में महिलाओं के अधिकार, महिलाओं के प्रति सम्मान, महिला के लिए बहुत से कार्यक्रम, स्कूल, ऑफिस, कालेजों में मनाया जाता है। अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत सबसे पहले सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने 28 फरवरी 1909 की। फिर सोवियत संघ में महिलाओं के वोटिंग अधिकार मिलने पर 8 मार्च को छुट्टी दिया गया। लेकिन 1975 से संयुक्त राष्ट्र ने हर साल एक थीम पर महिला दिवस मनाने लगे।
महिलाओं के इक्वलिटी की बात पुरी दुनिया हो रही, पुरी दुनिया में शायद महिला और पुरुष इक्वल हो लेकिन क्या भारत में इक्वल है। हम भारत में रहते हैं यहां आज भी महिलाओं की स्थिति वैसी ही है जैसे सदियो पहले थी। हां बस अब महिलाओं के रखने के ढंग में थोड़ा बदलाव आया है। महिलाएं आज भी पुरुष के बराबर नहीं है, आज भी समाज में उनको वो दर्जा नहीं मिला है। आज भी बहुत पिछड़ा हुआ है महिला वर्ग, मनाने को तो महिला दिवस मना रहे उस दिन भी ना जाने कितनी महिला पुरुष के पैरों तले कुचली जाएगी।
महिला पुरुष कैसे बराबर माने जाएं हमारे यहां, सबसे पहले एक लड़की को पैदा होने के लिए ना जाने कितने कठिन पड़ाव से गुजरती है, पहले मां बाप तैयार हैं या नहीं बेटी है, फिर घर वाले और समाज। उसके बाद पैदा हो गई तो पढ़ाई लिखाई के लिए फिर उसको हर किसी से कहना पड़ता। किसी तरह पढ़ भी ली तो आगे पढ़ाई और नौकरी के लिए घर वाले तैयार होंगे या नहीं।
फिर शादी कर दी जाती है जहां पति घर वाले उसको भी बस एक घर में रखे सामान से ज्यादा महत्व नहीं रहता। लड़की कितना पढ़ लिख लें उसको अपने पति के आगे आज भी झुकना पड़ता, आज भी बिना पति को बताए वो काम पर नहीं जा सकती, अपने मां बाप का मदद नहीं कर सकती। आज भी उसे समाज पर निर्भर रहना पड़ता है।
आज के समय में लड़की कहीं सुरक्षित नहीं है 3 महीने से 80 साल की महिला का बलात्कार हो रहा वो कही अकेले आ जा नहीं सकती है। उनको अधिकार बस नाम के मिले है उनका सही उपयोग नहीं हो रहा।
साल 2020 का थीम है - मैं जनरेशन इक्वलिटी- महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हुं। " I am Generation Equality: Realizing Women's Right"
महिलाओं के इक्वलिटी की बात पुरी दुनिया हो रही, पुरी दुनिया में शायद महिला और पुरुष इक्वल हो लेकिन क्या भारत में इक्वल है। हम भारत में रहते हैं यहां आज भी महिलाओं की स्थिति वैसी ही है जैसे सदियो पहले थी। हां बस अब महिलाओं के रखने के ढंग में थोड़ा बदलाव आया है। महिलाएं आज भी पुरुष के बराबर नहीं है, आज भी समाज में उनको वो दर्जा नहीं मिला है। आज भी बहुत पिछड़ा हुआ है महिला वर्ग, मनाने को तो महिला दिवस मना रहे उस दिन भी ना जाने कितनी महिला पुरुष के पैरों तले कुचली जाएगी।
महिला पुरुष कैसे बराबर माने जाएं हमारे यहां, सबसे पहले एक लड़की को पैदा होने के लिए ना जाने कितने कठिन पड़ाव से गुजरती है, पहले मां बाप तैयार हैं या नहीं बेटी है, फिर घर वाले और समाज। उसके बाद पैदा हो गई तो पढ़ाई लिखाई के लिए फिर उसको हर किसी से कहना पड़ता। किसी तरह पढ़ भी ली तो आगे पढ़ाई और नौकरी के लिए घर वाले तैयार होंगे या नहीं।
फिर शादी कर दी जाती है जहां पति घर वाले उसको भी बस एक घर में रखे सामान से ज्यादा महत्व नहीं रहता। लड़की कितना पढ़ लिख लें उसको अपने पति के आगे आज भी झुकना पड़ता, आज भी बिना पति को बताए वो काम पर नहीं जा सकती, अपने मां बाप का मदद नहीं कर सकती। आज भी उसे समाज पर निर्भर रहना पड़ता है।
आज के समय में लड़की कहीं सुरक्षित नहीं है 3 महीने से 80 साल की महिला का बलात्कार हो रहा वो कही अकेले आ जा नहीं सकती है। उनको अधिकार बस नाम के मिले है उनका सही उपयोग नहीं हो रहा।
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