हरतालिका तीज व्रत कब है और इसका महत्व

          सुहागन महिलाओं का पर्व‌ है हरियाली तीज। जिसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही। बाजार में ‌‌‌‌अभी हर सारी दुकान, श्रृंगार दुकान पर महिलाओं का तांता लगा है। तीज पति की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। इसमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इसमें निर्जल उपवास रहकर पूजा करती है। व्रत को ले इतना उमंग रहता कि कब दिन गुजर जाता पता ही नहीं चलता।

    तीज के एक दिन पहले नहाय खाय करते हैं। इसमें हम सब कुछ मीठा खाते, नमक नहीं खाते। फल का सेवन भी करते हैं। अच्छी से सबकुछ अमनियाा बनाया जाता।  यह मुख्यत बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में मनाया जाता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में तीज को गौरी हब्बा कहा जाता है।

     तीज का शुभ मुहूर्त-

   तीज भादो मास के शुक्ल पक्ष के तृतीय तिथि को मनाया जाता है। यह अक्सर अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार अंतिम अगस्त या सितंबर महीन पड़ता है। इस बार तीज 2 सितंबर को है। तीज गणेश चतुर्थी के ठीक एक दिन पहले मनाते हैं। इस बार तीज बहुत सुंदर समय में है, चतुर्थी युक्त तृतीय जो बहुत उत्तम संयोग है।

    तीज का महत्व

  तीज का महत्व सुहागन महिलाओं के लिए बहुत है। इस दिन भगवान शिव और पार्वती से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त करती है। हरतालिका दो शब्द से बना है हरत और आलिका। हरत मतलब हरण करना और आलिका मतलब सखी। माता पार्वती के पिता जब उनकी शादी भगवान विष्णु से कराने की सोचें तो उनकी सखियों ने उनका हरण कर जंगल में छुपा दिया। जहां माता ने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्राप्त किया।

     हरतालिका तीज का नियम....

    * यह व्रत निर्जल रहकर किया जाता है। लेकिन अगर ना संभले तो पानी या दूध पी सकते हैं।
    * यह सुहागन महिलाओं और कुंवारी लड़की भी करती है।
   * यह व्रत एक बार शुरू किया तो जिंदगी भर करना चाहिए। अगर किसी कारण वश में टुट गया तो फिर किसी बाबा भोलेनाथ के मंदिर में विशेष पूजा कर शुरू कर दें।
   * महिलाएं को सोलहों श्रृंगार करना चाहिए। मेंहदी, चुड़ी, नयी साड़ी, सिंदुर सब करना चाहिए। रतजगा करना चाहिए। रात भर भजन-कीर्तन या पूजा करना चाहिए।
   * सास अपनी बहू को इस दिन सरगी देती है।‌ या फिर एक दूसरे को सुहाग की निशानी सिंदूर, चुड़ी देना चाहिए।

      तीज व्रत का पूजा

   तीज का पूजा दो दिन होता है। शादी के पहले साल बहुत धुमधाम से मनाते हैं। नहाय-खाय के दिन बगल के नदी या तालाब से मिट्टी लाकर शिव पार्वती जी की मूर्ति बनाई जाती है। ओल के डंठल से फुलोरा या चौड़ा बनाते हैं। उसमें मूर्ति रख पूजा करते हैं।

     तीज के दिन शाम से ही पुजा शुरू किया जाता है। शिव पार्वती जी को बेलपत्र, आक, धतुरा, शमि के फूल, केला का पत्ता, तुलसी, मंजरी, वस्त्र, मौसमी फल ये सब चीजें पूजा में चढ़ती है।
    

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