4 अप्रैल चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है। इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। माता चंद्रघंटा की पूजा के दिन दुर्गा सप्तशती के पांचवां अध्याय का पाठ करना चाहिए। चंद्रघंटा माता को दूध का भोग लगाना चाहिए।इस दिन गरीबों को दूध दान करने से पुण्य मिलता है।दुखो से मुक्ति मिलती है। माता की उपासना से भौतिक, आत्मिक और आध्यात्मिक सुख-शांति मिलती है।
मां चंद्रघंटा का स्वरुप शांतिदायक और कल्याणकारी है। माता के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विद्यमान है। इसलिए इनको चंद्रघंटा कहा गया। इनके हाथों से ढाल, त्रिशूल, चक्र,पाश,गंदा,खड्ग, तलवार, धनुष और बाण से भरा तरकस है। इनका मुख शांत, सौम्य लेकिन सुर्य के समान तेज है। इनके घंटे के कंपन से सारे दैत्यों में हाहाकार मच जाती है।
मां चंद्रघंटा की पूजा
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
मां चंद्रघंटा का स्वरुप शांतिदायक और कल्याणकारी है। माता के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विद्यमान है। इसलिए इनको चंद्रघंटा कहा गया। इनके हाथों से ढाल, त्रिशूल, चक्र,पाश,गंदा,खड्ग, तलवार, धनुष और बाण से भरा तरकस है। इनका मुख शांत, सौम्य लेकिन सुर्य के समान तेज है। इनके घंटे के कंपन से सारे दैत्यों में हाहाकार मच जाती है।
मां चंद्रघंटा की पूजा
सबसे पहले गुलाबी कपड़े पर माता का फोटो रख विधिवत पूजा अर्चना करें। माता को लाल गुलाब के फूल चढ़ाएं। गुलाब की अगरबत्ती, गुलाल,इत्र,लाल सेब या अनार और गुड़ की खीर चढ़ाएं। घंटा बजाकर या ढोल नगाड़ों से भी माता की आरती होती है। इस दिन दीप में नारियल तेल डालकर जलाएं। गाय का दूध अवश्य चढ़ाएं और दान करें। ब्राह्मणों या कन्या को दूध पिलाएं।
माता का मंत्र-
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
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