नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के बाद नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। जानिए माता की पूजा कैसे होती है..
नवरात्र के प्रथम दिन स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान गणेश, नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ कलश स्थापन करें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। कलश स्थापन के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा घर के आंगन से पूर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज रखें। इसके उपरांत कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि डालें। फिर 'ॐ भूम्यै नमः' कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित रेत के ऊपर स्थापित करें।
कलश पूजन के बाद नवार्ण मंत्र 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे!' से सभी पूजन सामग्री अर्पण करते हुए मां शैलपुत्री की पूजा करें। मनोविकारों से बचने के लिए मां शैलपुत्री को सफेद कनेर का फूल भी चढ़ा सकते हैं।
माता का मंत्र ..
‘वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥’
मां की पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। नवरात्र के पहले दिन से आखिरी दिन तक घर में सुबह-शाम कपूर को जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
मां के इस पहले स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को दृढ़ता की प्रतीक माना जाता है। महिलाओं को इनकी पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
मां के इस पहले स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को दृढ़ता की प्रतीक माना जाता है। महिलाओं को इनकी पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
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