रोग भय से मुक्ति दिलाती है मां कात्यायनी... जानें इनकी पूजन विधि

       मां के छठे स्वरूप को कहते हैं मां कात्यायनी। कहते हैं इनकी अराधना से भय, रोगों से मुक्ति और सभी समस्याओं का समाधान होता है। ऐसा माना जाता है कि मां कात्यायनी का जन्म मह्रिषी कात्यायन के यहां हुआ था। ऐसी मान्यता है कि देवी दुर्गा ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि उनके घर पुत्री पैदा होगी जिसकी लोग पूजा करेंगे। महिषासुर राक्षस का वध करने के कारण इनका एक नाम महिषासुर मर्दिनी भी है।

 

  ‌‌‌‌‌‌    अपने सांसारिक स्वरूप में मां कात्यायनी शेर पर सवार रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं।इनके बांए हाथ में कमल और तलवार है।दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। नवरात्र के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है।



मां कात्यायनी की पूजा विधि...

गोधूलि वेला के समय यानी जब सूर्यास्त हो रहा हो, तब इनकी पूजा करना सबसे अच्छा होता है। मां को पीले फूल और पीली मिठाई अपर्ति करें।उन्हें चांदी या मिट्टी के पात्र के रखकर शहद अर्पित करना भी काफी शुभ होता है। घी का दीपक जलाएं।मां को लाल और पीले वस्त्र भी अर्पित करें. इसके बाद मंत्रों का जप करें।

   मंत्र

     चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना।कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि।।



भय से मुक्ति मान्यता के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को हमेशा भय बना रहता है और जरा सी बात पर पैर कांपने लगते हैं, साथ ही वह कोई निर्णय नहीं ले पाता है, तो व्यक्ति को छठे नवरात्र से इसका उपाय करना चाहिए। जानकारों के अनुसार इसके तहत व्यक्ति शुद्ध होकर घी का दीपक जलाए और 'ऊॅं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊॅं कात्यायनी देव्यै नम:' मंत्र का सुबह व शाम जाप करें। इसके बाद रात्रि में सोते समय पीपल के पत्ते पर इस मंत्र को केसर से पीपल की लकड़ी की कलम से लिखकर अपने सिरहाने रख ले और सुबह इसे मां के मंदिर में रखकर आ जाए। ऐसा करने से भय से छुटकारा मिल जाता है।
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