सुषमा स्वराज का निधन, उनका राजनीतिक सफर कैसा रहा जानें

     बीती रात पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का निधन दिल्ली के एम्स में दिल का दौरा पड़ने से हो गया। वह‌ बहुत दिनों से बीमार चल रही थी, जिस कारण 2019 का‌ लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ी। बहुत पहले से डायबिटीज से भी पीड़ित थी, उसके बाद किडनी प्रोब्लम हो गई। 2016 में किडनी फेल के कारण कुछ दिन डायलिसिस पर रही। फिर किडनी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌transplant हुआ। लेकिन पहले के जैसे स्वास्थ नहीं हुआ। कल एकाएक दिल का दौरा पड़ा और गुजर‌ गई। इनका राजनीतिक सफर बहुत सुंदर रहा।

     सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफर

    सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक के अहम सदस्यों में गिने जाते थे हरदेव शर्मा और माता लक्ष्मी देवी के घर में हुआ। जन्मस्थान हरियाणा के अंबाला कैंट में है। माता पिता का संबंध पाकिस्तान के लाहौर के धर्मपुर से था। इन्होंने अंबाला‌ के सनातन धर्म काॅलेज से संस्कृत और राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। चंडीगढ़ से लाॅ की। 1970 में काॅलेज के सर्वश्रेष्ठ छात्रा का सम्मान मिला।

    तीन साल तक लगातार एसडी कॉलेज कैंट की एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट्स और तीन साल तक पंजाब की श्रेष्ठ वक्ता चुनी गई। 1973 में सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में पद ज्वाइन की। वहां इनकी मुलाकात स्वाराज कौशल से हुई जो वहीं सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता थे।

    सुषमा स्वराज के राजनीतिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से हुई थी। अच्छी प्रवक्ता तो थी ही ‌‌‌‌‌जिस कारण वह 1977 में मात्र 25 साल की उम्र में हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं। अंबाला कैंट अपने यहां से सबसे पहले विधायक पद जीता। फिर 1977-79 तक हरियाणा की श्रम राज्य मंत्री रहे। आपातकाल के बाद वो‌ भाजपा में शामिल हुई। जयप्रकाश आंदोलन में भी सक्रिय रहीं।

    1987-90 तक हरियाणा की शिक्षा मंत्री भी रही। 1990 में राष्ट्रीय राजनीति में आई। राज्यसभा की सदस्य बनीं। 1996 में दिल्ली से सांसद बनी। अटल जी की 13 दिनों की सरकार में सुचना एवं प्रसारण मंत्री रही।‌ हालांकि वो इस पद पर 19 मार्च 1998 से 12 अक्टूबर 1998 तक रही। 1998 में दिल्ली की कैबिनेट मंत्री से इस्तीफा दे दिया। दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। लेकिन फिर इस्तीफा दे वो राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की।

    भाजपा ने सुषमा स्वराज को सोनिया गांधी के खिलाफ कर्नाटक के बेल्लारी से चुनाव मैदान में उतारा। यहां उन्होंने कन्नर भाषा में ही भाषण दिया। लेकिन 7% मार्जिन से मात्र वो हार गए। फिर 2000 में उत्तर प्रदेश के राज्यसभा सदस्य के रूप में लौटी। फिर उत्तर प्रदेश के विभाजन पर उत्तराखंड में तबादला किया। पुनः केंदीय मंत्रीमंडल में सुचना एवं प्रसारण मंत्री रही। जहां वो 2000-03 तक रही।

     2003 में फिर उन्हें संसदीय मामलों एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री बनाया गया। जहां उन्होंने 6 एम्स खोलने की हरी झंडी दिखाई। 2009 में विपक्ष की पहली महिला नेता बनी जो लाल कृष्ण आडवाणी के बाद पद संभाला। फिर मोदी सरकार में विदेश मंत्री का पद संभाला।

 
    
     

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