जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत कब है 2023,

        जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत जो बच्चों की लंबी आयु के लिए रखा जाता है, इस व्रत में मां पानी क्या ओस की बुंदे तक मुंह में नहीं जाने देती है। जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत बहुत कठिन व्रत माना जाता है , यह मुख्यतः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बंगाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। आइए इस पोस्ट में हम जितिया कब है, इसकी कहानी और पूजा विधि की पुरी जानकारी देंगे....


      जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत कब है 2023.....


        जितिया व्रत आश्विन के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, इस अष्टमी तिथि को हर मां को निर्जल उपवास पर रहना पड़ता है फिर नवमी तिथि को पारण किया जाता है। जितिया व्रत कभी कभी 36 घंटे तक हो जाता है और मां अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए खुशी खुशी यह व्रत करती है।

      जितिया व्रत तीन दिनों का व्रत होता है पहला दिन नहाय खाय, फिर व्रत तब तीसरे दिन पारण.... 05 अक्टूबर को नहाय खाय है, 06 को निर्जला उपवास है फिर 07 अक्टूबर को पारण है। 

   अष्टमी तिथि - अष्टमी तिथि 06 अक्टूबर को सुबह 06.34 से शुरू हो रही और 07 अक्टूबर के सुबह 08.10 तक रहेगी...

     सुबह सुर्योदय तक आप पानी, चाय, खाना आदि लें सकते हैं फिर 07 अक्टूबर को अपने पितरों की पूजा कर तब भोजन ग्रहण करें। इस दिन मतलब पारण के दिन महिलाएं अपने पितरों को तेल(सरसों का) और खल्ली (सरसो के पीसने पर जी बचता) उससे अपने पितरों का तर्पण करती है। 


     जितिया के नहाय खाय और पारण में क्या और क्यों खाया जाता है.....


       हमारे यहां बिहार में जितिया में मछली, मरुआ का रोटी, कुशिया मटर का झोड़, नोनी सांग, झिंगली, नहाय खाय में नमकीन खाना कुछ भी पुरे दिन खा सकते हैं फिर सुबह सुर्योदय के पहले जिसे ओठगन कहा जाता है उसमें चुरा, दही, पान खाने का रिवाज है.. बहुत जगह चुरा के बदले भूनें मक्के का मोटा आटा दही के साथ खाया जाता है।

      मछली - जितिया व्रत में कहा जाता है मछली या पिट्ठा को निगला जाता है उसका मतलब है जैसे  इन 32 दांत के बीच जैसे बिना कोई दिक्कत किए मछली निगल लिए उसी तरह भगवान हमारे बच्चे को हर मुश्किल से निकालता जाए... जैसे मछली पानी में जीवन काट लेती हमारे बच्चे का प्राण सात समुंदर तल में भी बचाए रखना...

    मरुआ और झोड़ - मरुआ का दाना बहुत छोटा और झोड़ मटर का होता है जो बहुत पावरफुल होता है तो मांए कहती हैं भगवान हमारे बच्चे का प्राण इस मरुआ के दाने जैसे रखना और कुशिया मटर जिसका झोड़ बनता बज्र के सामान होता है,कि कैसा भी दुख आए हर संकट से लड़ने की क्षमता हो..

     नोनी साग - नोनी साग का मतलब है इसको कहीं फेंक दीजिए बिना कोई मेहनत लाग-लपेट के अपना वृद्धि होते रहता है... उसी तरह हमारे बच्चे जहां रहे हर तरह में खुश रहे और उसका वंश बढ़ते जाएं...

     दही-चुरा, पान - दही चुरा शुभ माना जाता है कुछ भी शुरुआत करने से पहले दही शक्कर का रिवाज पुराना है और पान इसलिए कि उसके लाली के जैसे हमारे लाल के जीवन में हमेशा लाली बना रहे....
       
      ये सब हमारे यहां बुढ़े पुराण सुनाया करते थे लेकिन इन सबके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है नोनी में आयरन होता जो 24-36 घंटे के निर्जला उपवास के बाद शरीर मे ताकत बनाए रखता...मछली खाने से शरीर में एनर्जी बनी रहेगी निर्जला उपवास में दिक्कत नहीं होगा, दही ठंडक बनाए रखता और पान प्यास लगने नहीं देता.... 

        जितिया व्रत की कथा...


       नर्मदा नदी के तट पर कंचनवटी नाम का एक शहर था। नदी किनारे एक पाकड़ पेड़ के कोटर में चिल्ह रहता था उसी पेड़ के नीचे खोह बना सियारिन रहती थी। दोनों में मित्रता भी थी। जीतिया पर्व होने वाला था दोनों ने विचार किया और व्रत रखा। दोनो ने पुरे नियम निष्ठा से व्रत रखा।

     उसी दिन उस शहर के एक आदमी की मृत्यु हो गई। जिसका दाह संस्कार उसी नदी के तट पर हुआ। सियार के नाक में मूर्दा जलने की गंध तैरने लगी। भूख से तो हाल‌ खराब था ही ऊपर से‌ मुर्दा का‌‌ गंध सियार अपने आप को रोक ना सकी ‌‌‌‌और‌ व्रत ‌‌‌छोड़ खा‌ ली। चिल्ह पुरे नियम के साथ व्रत पालन कर‌ दुसरे दिन पारण की।

     कुछ दिन बाद दोनों की मृत्यु हुई। दोनों एक ब्राह्मण के घर पैदा हुई। पिता का नाम भास्कर, चिल्ह बड़ी‌ बहन शीलवती हुई और उसका विवाह बुद्धिसेन‌ से हुआ। सियारन‌ छोटी ‌‌‌‌बहन कपुरावती जिसकी शादी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌मलयकेतु के साथ हुई।शीलवती के भगवान जीतवाहंन‌ की‌ कृपा से 7 बेटे हुए और कपुरावती के‌ बच्चे होते ‌‌‌और मर जाते।

     शीलवती के सातों बच्चे बड़े हुए और सभी काम करने ‌‌‌‌लगे। ये देख कपुरावती को जलन होने लगा। एक दिन उसने गुस्से में सातों का‌ सर काट थाल‌ में सजा लाल कपड़े से ढककर भेज दिया। शीलवती के सामने जैसे ही थाल पहुंचा सभी मिट्टी के सर हो गए। इधर कपुरावती को अभी तक शीलवती के यहां से रोने‌ की कोई ‌‌‌‌‌‌आवाज‌ ना आई।

    वो हैरानी से बढ़ते हुए शीलवती के घर पहुंचे तो सातों बेटे खेल रहे, कपुरावती को यह देख होश आया। भगवान जीवितवाहन ने‌ उसके सातों पुत्रों को जिंदा कर दिया था। शीलवती को सारी बात बता मांफी मांगी। दोनों को अपना पिछला जन्म याद आ गया था। पाकड़ के पेड़ के पास जा दोनों ने भगवान से माफी मांगी और कपुरावती के गोद भरने की भगवान जीवितवाहन से मिन्नत की। भगवान खुश रहने के वरदान देकर अंतर्धयान हो‌ गए।

Post a Comment

0 Comments